अंग्रेजों और मराठों के बीच संघर्ष के कारणों और परिणामों का वर्णन 2021 Angrejo or maraatho ke beech sangharsh ke kaaranon aur parinaamon ka varnan

अंग्रेजों और मराठों के बीच संघर्ष के कारणों और परिणामों का वर्णन 2021 Angrejo or maraatho ke beech sangharsh ke kaaranon aur parinaamon ka varnan

 

Describe the Marathas' struggle with the British from 1775 to 1818 AD. What were the reasons for the failure of the Marathas in these conflicts?, 1775 se 1818 ee tak maraathon ke angrejon ke saath sangharsh ka varnan keejie . in sangharshon mein maraathon kee asaphalata ke kya kaaran the ?, angrejon aur maraathon ke beech sangharsh ke kaaranon aur parinaamon ka varnan keejie . in sangharshon mein maraathon kee asaphalata ke kya kaaran the ? Describe the causes and consequences of the conflict between the British and the Marathas. What were the reasons for the failure of the Marathas in these conflicts? , 1782 ee . se 1818 ee . ke beech maraathon aur eest indiya kampanee ke sambandhon ko ankit keejie . in ghatanaon ka donon shaktiyon par kya prabhaav pada ?, 1782 AD From 1818 A.D. Indicate the relationship between the Marathas and the East India Company. How did these events affect both powers?

 

 

Describe the Marathas' struggle with the British from 1775 to 1818 AD. What were the reasons for the failure of the Marathas in these conflicts?, 1775 se 1818 ee tak maraathon ke angrejon ke saath sangharsh ka varnan keejie . in sangharshon mein maraathon kee asaphalata ke kya kaaran the ?, angrejon aur maraathon ke beech sangharsh ke kaaranon aur parinaamon ka varnan keejie . in sangharshon mein maraathon kee asaphalata ke kya kaaran the ? Describe the causes and consequences of the conflict between the British and the Marathas. What were the reasons for the failure of the Marathas in these conflicts? , 1782 ee . se 1818 ee . ke beech maraathon aur eest indiya kampanee ke sambandhon ko ankit keejie . in ghatanaon ka donon shaktiyon par kya prabhaav pada ?, 1782 AD From 1818 A.D. Indicate the relationship between the Marathas and the East India Company. How did these events affect both powers?

 

1775 से 1818 ई  तक मराठों के अंग्रेजों के साथ संघर्ष का वर्णन कीजिए । इन संघर्षों में मराठों की असफलता के क्या कारण थे ? 

अथवा 

अंग्रेजों और मराठों के बीच संघर्ष के कारणों और परिणामों का वर्णन कीजिए । इन संघर्षों में मराठों की असफलता के क्या कारण थे ? 

अथवा 

1782 ई . से 1818 ई . के बीच मराठों और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सम्बन्धों को अंकित कीजिए । इन घटनाओं का दोनों शक्तियों पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

 

उत्तर - 

अंग्रेज सम्पूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे । वे मराठों को अपना प्रबल शत्रु मानते थे क्योंकि वे अंग्रेजों के साम्राज्य विस्तार के कार्य में बाधक बने हुए थे । अंग्रेजों ने कूटनीति से काम लेते हुए अपने राजदूत टामस मास्टिन को पेशवा माधवराव प्रथम के पास भेजा तथा उससे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने की इच्छा प्रकट की । इस प्रकार पेशवा माधवराव के समय में अंग्रेजों तथा मराठों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बने रहे । परन्तु 1772 ई . में पेशवा माधवराव की मृत्यु के पश्चात् मराठा संघ में फूट पड़ गई । अंग्रेजों ने मराठों की आपसी फूट का लाभ उठाकर मराठों की शक्ति का दमन करने का निश्चय कर लिया । इसके परिणामस्वरूप 1775 ई . में अंग्रेजों तथा मराठों के बीच प्रथम युद्ध शुरू हुआ । 

प्रथम आंग्ल - मराठा युद्ध के कारण - अंग्रेजों और मराठों के बीच प्रथम युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे 

1. मराठों की आपसी फूट -18 नवम्बर , 1772 ई . को पेशवा माधवराव प्रथम की मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका भाई नारायणराव पेशवा बना परन्तु उसका चाचा रघुनाथ राव स्वयं पेशवा बनना चाहता था । अतः 1773 में उसने नारायणराव की हत्या करवा दी और स्वयं पेशवा बन बैठा परन्तु नाना फड़नवीस तथा अन्य मराठा सरदारों ने रघुनाथ राव को पेशवा मानने से इन्कार कर दिया और उन्होंने नारायण राव के पुत्र माधवराव द्वितीय को पेशवा घोषित कर दिया । इस पर रघुनाथ राव पेशवा पद प्राप्त करने की लालसा से अंग्रेजों की शरण में चला गया । 

2. सूरत की सन्धि - रघुनाथ राव ने सूरत पहुँच कर बम्बई की सरकार से सहायता देने की प्रार्थना की । 6 मार्च , 1775 को बम्बई सरकार तथा रघुनाथ राव के बीच एक सन्धि हुई जिसे सूरत की सन्धि कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) अंग्रेज रघुनाथ राव को पेशवा बनाने में सहायता देंगे । ( ii ) इसके बदले में रघुनाथ राव अंग्रेजों को सालसेट , थाना , बसीन आदि के प्रदेश देगा । ( iii ) रघुनाथ राव अंग्रेजों के शत्रुओं से किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा । ( iv ) रघुनाथ राव सूरत तथा भड़ौंच जिलों के लगान का कुछ भाग अंग्रेजों को देगा । इस सन्धि के कारण अंग्रेजों तथा मराठों के बीच युद्ध होना अनिवार्य हो गया ।
 

3. लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज की महत्त्वाकांक्षा - भारत का तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिग्ज एक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था । वह मराठों की शक्ति का दमन करके भारत में अंग्रेजी राज्य का विस्तार करना चाहता था । उस समय परिस्थितियाँ भी उसके अनुकूल बनी हुई थीं । युद्ध की घटनाएँ - सूरत की सन्धि के अनुसार बम्बई सरकार ने रघुनाथ राव की सहायता के लिए एक अंग्रेजी सेना भेजी । 18 मई , 1775 को अंग्रेजी सेनाओं ने अरास नामक स्थान पर मराठों को परास्त कर दिया । इससे रघुनाथ राव का हौंसला बढ़ गया । बम्बई सरकार ने कलकत्ता कौंसिल से अनुमति लिए बिना ही सूरत की सन्धि की थी । रेग्यूलेटिंग एक्ट के अनुसार इस प्रकार की सन्धि करने का अधिकार केवल कलकत्ता कौंसिल को ही था । अत : लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज ने सूरत की सन्धि को भंग कर दिया तथा पूना सरकार से सन्धि - 

वार्ता शुरू की 

( 1 ) पुरन्दर की सन्धि - लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज ने 1 मार्च , 1776 को पूना सरकार ( मराठों ) के साथ एक नई सन्धि की जिसे पुरन्दर की सन्धि कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) सालसेट तथा बसीन पर अंग्रेजों का अधिकार बना रहेगा । रघुनाथ राव की सहायता नहीं करेंगे । ( iii ) रघुनाथ राव को 3 लाख 15 हजार रुपये वार्षिक की पेन्शन दी जायेगी । ( iv ) मराठे अंग्रेजों को युद्ध के हर्जाने के रूप में 12 लाख रुपये देंगे । ( 1 ) अंग्रेजों को भड़ौंच जिले की आय भी प्राप्त होगी । बम्बई की सरकार पुरन्दर की सन्धि से सन्तुष्ट नहीं थी । अतः उसने कम्पनी के संचालकों से पत्र - व्यवहार कर सूरत की सन्धि पर उनकी स्वीकृति प्राप्त कर ली । 

( 2 ) बड़गाँव की सन्धि – बम्बई की सरकार ने रघुनाथ राव का पक्ष लिया तथा एक अंग्रेजी सेना पूना पर आक्रमण करने के लिए भेजी । परन्तु 9 जनवरी , 1779 को मराठों ने पूना के निकट तेलगाँव नामक स्थान पर अंग्रेजी सेना को बुरी तरह से पराजित किया । अत : विवश होकर बम्बई की सरकार को 19 जनवरी , 1779 को मराठों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी जिसे बड़गाँव की सन्धि कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( 1 ) 1773 ई . के पश्चात् अंग्रेजों द्वारा मराठों के जीते हुए समस्त प्रदेश उन्हें लौटा दिये जायेंगे । ( ii ) रघुनाथ राव को पूना दरबार को सौंप दिया जायेगा । ( ii ) दो अंग्रेज अधिकारियों को बंधक के रूप में मराठों को सौंपा जाएगा । 

( 3 ) वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा बड़गाँव की सन्धि का विरोध - लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज ने बंड़गाँव की अपमानजनक सन्धि को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया । उसने सन्धि का विरोध करते हुए कहा कि “ इस सन्धि को पढ़कर मैं लज्जा से गड़ गया हूँ । " अतः लार्ड वारेन हेस्टिग्ज ने जनरल गोडार्ड को पूना पर तथा कैप्टन पोपहम को ग्वालियर पर आक्रमण करने के लिए भेजा । दूसरी ओर मराठा सरदार नाना फड़नवीस ने निजाम तथा हैदरअली को अपनी ओर मिलाकर एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया , परन्तु वारेन हेस्टिग्ज ने कूटनीति से काम लेते हुए निजाम को मराठों से अलग कर दिया । फरवरी , 1780 में जनरल गोडार्ड ने अहमदाबाद पर अधिकार कर लिया परन्तु नान फड़नवीस के नेतृत्व में मराठों ने अप्रैल , 1780 में जनरल गोडार्ड की सेनाओं को बुरी तरह से पराजित कर दिया । अगस्त , 1780 में कैप्टन पोपहम ने महादजी सिन्धिया को परास्त कर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया । 1781 में अंग्रेजों ने सिपरी नामक स्थान पर महादजी सिन्धिया को पराजित कर दिया । अन्त में 17 मई , 1782 को पूरा दरबार तथा अंग्रेजों के बीच एक सन्धि हो गई , जिसे सालबाई की सन्धि कहते हैं । 

( 4 ) सालबाई की सन्धि ( 17 मई , 1782 ई . ) -सालबाई की सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) सालसेट तथा भड़ौंच पर अंग्रेजों का अधिकार स्वीकार कर लिया गया । ( ii ) अंग्रेजों ने रघुनाथ राव का पक्ष छोड़ दिया तथा मराठों ने रघुनाथ राव को तीन लाख रुपये वार्षिक पेंशन के रूप में देना स्वीकार कर लिया । ( ii ) अंग्रेजों ने माधवराव द्वितीय को पेशवा स्वीकार कर लिया । ( iv ) मराठों व अंग्रेजों ने एक - दूसरे के जीते हुए प्रदेश वापस लौटाना स्वीकार कर लिया । ( v ) यमुना नदी के पश्चिमी प्रदेश पर महादजी सिन्धिया का अधिकार स्वीकार कर लिया गया । सालबाई की सन्धि का महत्त्व - सालबाई की सन्धि भारतीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना है । इस सन्धि से अंग्रेजों को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ । फिर भी इतिहासकार इसे अंग्रेजों की एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं । इस सन्धि के परिणामस्वरूप अंग्रेजों तथा मराठों के बीच लगभग 20 वर्षों तक शान्ति बनी रही । इस अवधि में अंग्रेज अपनी शक्ति को संगठित करने तथा निजाम एवं हैदरअली की शक्ति को कुचलने में सफल हुए । डॉ . वी . ए . स्मिथ का कथन है कि “ भारतीय इतिहास में सालबाई की सन्धि एक महत्त्वपूर्ण सीमा - चिह्न है क्योंकि इससे मराठों की दुर्जेय शक्ति के साथ 20 वर्ष के लिए शान्ति स्थापित हो गई और साथ ही इससे अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया , यद्यपि वे भारत में सर्वश्रेष्ठ शक्ति न बन सके । ” डॉ . जगन्नाथ मिश्र का कथन है कि “ सालबाई की सन्धि से मराठों को नहीं बल्कि कम्पनी को लाभ हुआ । 

द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध -1803 ई . में अंग्रेजों तथा मराठों के बीच द्वितीय युद्ध शुरू हुआ जिसमें मराठा सरदार सिन्धिया तथा भौंसले की निर्णायक पराजय हुई । 

द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध के कारण - द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे 

( 1 ) लार्ड वेलेजली की विस्तारवादी नीति - लार्ड वेलेजली एक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था । वह भारत में अंग्रेजी कम्पनी की सर्वोच्च सत्ता स्थापित करना चाहता था । अतः वह मराठों की शक्ति का दमन करके भारत में अंग्रेजी - राज्य का विस्तार करना चाहता था । 

( 2 ) मराठा - संघ में फूट -13 मार्च , 1800 ई . को मराठा सरदार नाना फड़नवीस की मृत्यु हो गई तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् मराठा संघ में फूट पड़ गई । दौलतराव सिन्धिया तथा जसवन्तराव होल्कर दोनों ही पेशवा तथा पूना दरबार पर अपना नियन्त्रण स्थापित करना चाहते थे । पेशवा बाजीराव द्वितीय ने सिन्धिया का पक्ष लिया तथा जसवन्तराव होल्कर के भाई बिठूजी होल्कर का वध करवा दिया । इस पर जसवन्तराव होल्कर बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने 1802 में पूना पर आक्रमण कर दिया तथा सिन्धिया और पेशवा की संयुक्त सेनाओं को पराजित कर दिया । पेशवा भागकर बसीन के द्वीप में अंग्रेजों की शरण में चला गया । 

( 3 ) बसीन की सन्धि - पेशवा बाजीराव द्वितीय ने लार्ड वेलेजली से सहायता देने की मार्थना की । उसने लार्ड वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर लिया जिस पर अंग्रेज उसकी सहायता करने के लिए तैयार हो गए । 31 दिसम्बर , 1802 को पेशवा बाजीराव अंग्रेजों के बीच एक सन्धि हो गई , जिसे ' बसीन की सन्धि ' कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शतें निम्नलिखित थीं ( 1 ) पेशवा ने अपने राज्य में अंग्रेजी सेना रखना स्वीकार कर लिया । पेशवा ने अंग्रेजी सेना के खर्चे के लिए 26 लाख रुपये वार्षिक देना भी स्वीकार कर ( 2 ) लिया । ( 3 ) पेशवा अंग्रेज विरोधी विदेशियों को अपने राज्य में नहीं रखेगा । ( 4 ) पेशवा अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी अन्य राज्य से युद्ध , सन्धि अथवा पत्र - व्यवहार नहीं करेगा । ( 5 ) निजाम तथा गायकवाड़ के झगड़ों में पेशवा अंग्रेजों को मध्यस्थ बनायेगा । बसीन की सन्धि अंग्रेजों की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी । इस सन्धि द्वारा पेशवा ने मराठों के सम्मान तथा स्वतन्त्रता को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया था । सिडनी ओवन का कथन है कि इस सन्धि ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी कम्पनी को भारत का साम्राज्य दिला दिया । " इस सन्धि के कारण अंग्रेजों तथा मराठों के बीच युद्ध अनिवार्य हो गया क्योंकि लार्ड वेलेजली को मराठों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल गया था । बसीन की सन्धि के अनुसार अंग्रेजों ने 13 मई , 1803 को बाजीराव को पुनः पूना में पेशवा की गद्दी पर बिठा दिया । परन्तु अनेक मराठा सरदारों ने बसीन की सन्धि का विरोध किया । सिन्धिया तथा भौंसले ने अंग्रेजों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बना लिया परन्तु होल्कर ने इस संयुक्त मोर्चे में मिलने से इन्कार कर दिया । गायकवाड़ भी तटस्थ रहा । अतः सिन्धिया तथा भौंसले ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी । इस पर लार्ड वेलेजली ने 7 अगस्त , 1803 को मराठों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । 

युद्ध की घटनाएँ 

( 1 ) भौंसले की पराजय - अगस्त , 1803 में अंग्रेजों तथा मराठों के बीच युद्ध शुरू हुआ । 12 अगस्त , 1803 को अंग्रेजी सेनाओं ने अहमदनगर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया । इसके पश्चात् 23 सितम्बर , 1803 को अंग्रेजों ने सिन्धियों तथा भौंसले की संयुक्त सेनाओं को असाई नामक स्थान पर पराजित किया । भौंसले को असीरगढ़ तथा अरगाँव नामक स्थानों पर पराजित होना पड़ा । अतः विवश होकर भौंसले को 17 दिसम्बर , 1803 को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी , जिसे देवगाँव की सन्धि कहते हैं । 

( 2 ) देवगाँव की सन्धि - इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) भौंसले ने कटक का प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिया । ( ii ) भौंसले ने वर्धा नदी के पश्चिम का प्रदेश भी अंग्रेजों को सौंपना स्वीकार कर लिया । ( iii ) भौंसले ने नागपुर में एक अंग्रेज रेजीडेन्ट रखना स्वीकार कर लिया । ( iv ) उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि वह अंग्रेज - विरोधी लोगों को अपने राज्य में नहीं रखेगा । ( ) निजाम तथा पेशवा के साथ होने वाले झगड़ों में भौंसले अंग्रेजों को मध्यस्थ बनायेगा । 

( 3 ) उत्तरी भारत में सिन्धिया की पराजय पराजय का मुंह देखना पड़ा । सितम्बर , 1803 में जनरल लेक ने सिन्धिया को पराजित करके दिल्ली य - उत्तरी भारत में सिन्धिया को अनेक स्थानों पर पर अधिकार कर लिया और मुगल सम्राट शाह आलम को अपने संरक्षण में ले लिया । शीघ्र ही अंग्रेजों ने आगरा पर भी अधिकार कर लिया । नवम्बर , 1803 में अंग्रेजों ने लासवाड़ी नामक स्थान पर सिन्धिया की सेना को बुरी तरह से पराजित किया । अन्त में 30 दिसम्बर , 1803 को सिन्धिया को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी , जिसे सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि कहते हैं । 

( 4 ) सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि – सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित ( i ) सिन्धिया ने गंगा - यमुना के मध्य का प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिया । उसने जयपुर , जोधपुर तथा गोहद पर अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया । ( ii ) सिन्धिया ने अहमदनगर , भड़ौंच तथा बुन्देलखण्ड का कुछ भाग भी अंग्रेजों को सौंप दिया । ( iii ) सिन्धिया ने वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर लिया । ( iv ) उसने पेशवा , निजाम तथा गायकवाड़ पर अपने समस्त दावे त्याग दिए । 

( 5 ) होल्कर से युद्ध -1804 में अंग्रेजों तथा होल्कर के बीच युद्ध हुआ जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे ( i ) होल्कर द्वारा सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार न करना - यद्यपि पेशवा बाजीराव द्वितीय , सिन्धिया तथा भौंसले लार्ड वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर चुके थे , परन्तु होल्कर ने सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया और अंग्रेजों का विरोध करना जारी रखा । अत : अंग्रेजों ने होल्कर की शक्ति का दमन करने का निश्चय कर लिया । ( ii ) होल्कर द्वारा जयपुर राज्य पर आक्रमण करना - जब होल्कर ने जयपुर राज्य पर आक्रमण करके वहाँ लूटमार की तो अंग्रेज बड़े नाराज हुए क्योंकि जयपुर राज्य उनका मित्र - राज्य था । अतः उन्होंने होल्कर को दण्डित करने का निश्चय कर लिया । 

( 6 ) युद्ध की घटनाएँ -16 अप्रैल , 1804 को अंग्रेजों तथा होल्कर के बीच युद्ध छिड़ गया । होल्कर ने कोटा के निकट मुकन्दरा नामक स्थान पर अंग्रेज सेनापति कर्नल मानयन को बुरी तरह से पराजित किया और उसने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया परन्तु उसे दिल्ली में सफलता नहीं मिली । नवम्बर , 1804 में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने होल्कर को डीग तथा फर्रुखाबाद नामक स्थानों पर पराजित किया । होल्कर भाग कर पंजाब चला गया । अतः इस युद्ध में होल्कर की शक्ति को पूरी तरह से नहीं कुचला जा सका । चूँकि म तपुर के राजा ने होल्कर की सहायता की थी , इस कारण अंग्रेज सेनापति जनरल लेक ने भरतपुर पर आक्रमण कर दिया और दुर्ग पर घेरा डाल दिया । उसने चार बार दुर्ग को जीतने का प्रयास किया , परन्तु उसे असफलता का मुँह देखना पड़ा । इन असफलताओं के कारण लार्ड वेलेजली को वापिस इंग्लैण्ड बुला लिया गया । 

द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध के परिणाम - द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध के निम्नलिखित 

( 1 ) द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजों की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई । उन्हें मराठों से अनेक प्रदेश प्राप्त हुए जिससे भारत में अंग्रेजी राज्य का काफी विस्तार हुआ । 

( 2 ) इस युद्ध ने मराठों की शक्ति तथा प्रतिष्ठा को प्रबल आघात पहुँचाया । इस युद्ध के परिणामस्वरूप स्वयं पेशवा बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों के संरक्षण में आ गया तथा सिन्धिया और भौंसले जैसे प्रमुख मराठा सरदारों की शक्ति पूरी तरह से कुचल दी गई । 

( 3 ) मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय भी अंग्रेजों के संरक्षण में आ गया । 

( 4 ) दक्षिणी भारत से फ्रांसीसियों का प्रभाव समाप्त हो गया 


तृतीय आंग्ल - मराठा युद्ध ( 1817-18 ई . ) 

( i ) पेशवा बाजीराव द्वितीय से युद्ध - पेशवा बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों के चंगुल से स्वतन्त्र होना चाहता था । उसने होल्कर , सिन्धिया , भौंसले आदि से गुप्त रूप से ए . वहार किया । जून , 1817 में अंग्रेजों ने पेशवा को एक नई सन्धि स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जिसके अनुसार पेशवा ने मराठा संघ का नेतृत्व त्याग दिया तथा सहायक सेना के खर्चे के लिए 33 लाख रुपये वार्षिक आय के भू - भाग उसे अंग्रेजों को सौंपने पड़े । इस पर पेशवा ने विद्रोह कर दिया और 5 नवम्बर , 1817 को उसने पूना की अंग्रेज रेजीडेन्सी पर आक्रमण कर उसे आग में फूंक दिया । रेजीडेन्ट एलफिन्स्टन जान बचाकर भाग गया तथा उसे किर्की नामक छावनी में शरण लेनी पड़ी । परन्तु कुछ समय बाद कोरगाँव तथा अष्टी के युद्धों में पराजित होकर जून , 1818 में पेशवा ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया । पेशवा को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी जिसके अनुसार पेशवा का पद समाप्त कर दिया गया । उसे आठ लाख रुपये वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के निकट बिठूर नामक स्थान पर भेज दिया गया । पेशवा का अधिकांश राज्य अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया तथा शेष राज्य ( सतारा ) की गद्दी पर शिवाजी के वंशज प्रतापसिंह को बिठाया गया । 

( ii ) भौंसले तथा होल्कर का दमन –1817 में अंग्रेजों ने नागपुर के अप्पा साहब भौंसले को सीतावल्दी नामक स्थान पर पराजित कर दिया तथा अप्पा साहब भौंसले जान बचाकर जोधपुर की ओर भाग गया जहाँ 1840 में उसकी मृत्यु हो गई । 1817 में अंग्रेजों ने होल्क हो महीदपुर नामक स्थान पर पराजित कर दिया । अत : 6 जनवरी , 1818 को होल्कर ने भी अंग्रेजों के साथ एक सन्धि कर ली जिसे मन्दसौर की सन्धि कहते हैं । 

तृतीय आंग्ल - मराठा युद्ध के परिणाम - तृतीय आंग्ल - मराठा युद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए 

( 1 ) इस युद्ध ने मराठों की शक्ति को प्रबल आघात पहुँचाया । पेशवा , अप्पा साहब भौंसले , होल्कर , गायकवाड़ आदि ने सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर लिया । अब मराठा शक्ति का सूर्य अस्त हो गया । मराठा - संघ छिन्न - भिन्न हो गया । 

( 2 ) भारत में अंग्रेजी कम्पनी की सर्वोच्च सत्ता स्थापित हो गई । अब अंग्रेजों को चुनौती देने वाली कोई शक्ति नहीं रही । 

( 3 ) राजपूत राज्यों से मराठों का प्रभाव समाप्त हो गया तथा राजपूत राज्य मराठों के प्रभुत्व से निकलकर अंग्रेजों के संरक्षण में चले गये ।

( 4 ) इस युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजी कम्पनी के राज्य का काफी विस्तार हुआ । मराठा सरदारों के अनेक प्रदेश अंग्रेजी - राज्य में मिला लिए गए । 

Describe the Marathas' struggle with the British from 1775 to 1818 AD. What were the reasons for the failure of the Marathas in these conflicts?, 1775 se 1818 ee tak maraathon ke angrejon ke saath sangharsh ka varnan keejie . in sangharshon mein maraathon kee asaphalata ke kya kaaran the ?, angrejon aur maraathon ke beech sangharsh ke kaaranon aur parinaamon ka varnan keejie . in sangharshon mein maraathon kee asaphalata ke kya kaaran the ? Describe the causes and consequences of the conflict between the British and the Marathas. What were the reasons for the failure of the Marathas in these conflicts? , 1782 ee . se 1818 ee . ke beech maraathon aur eest indiya kampanee ke sambandhon ko ankit keejie . in ghatanaon ka donon shaktiyon par kya prabhaav pada ?, 1782 AD From 1818 A.D. Indicate the relationship between the Marathas and the East India Company. How did these events affect both powers?

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