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Lisson 10
Alternating Curren/Direct Curren
प्रत्यावर्ती धारा / दिष्ट धारा
दिष्टकारी(D.C) :- वह धारा जिसकी दिशा समय के साथ नियत बनी रहती है दिष्ट धारा कहलाती है
दिष्ट धारा स्रोत में ध्रुवता समय के साथ नियत बनी रहती है
दिष्ट धारा स्रोत का चिन्ह
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दिष्ट धारा दो प्रकार की होती है :-
समान दिष्ट धारा (नियत दिष्ट धारा) - वह धारा जिसकी दिशा व परिमाण दोनों समय के साथ नियत रहते हैं समान दिष्ट धारा कहलाती है
असमान दिष्ट धारा - वह धारा जिसकी दिशा समय के साथ नियत परंतु परिमाण में परिवर्तन होता हो असमान दिष्ट धारा कहलाती है
प्रत्यावर्ती धारा (A.C) :- वह धारा जिसकी दिशा व परिमाण दोनों समय के साथ आवर्त रूप से परिवर्तित होते हैं प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है
प्रत्यावर्ती धारा स्रोत ध्रुवता समय के साथ बदलती रहती है
प्रत्यावर्ती धारा स्त्रोत का चिन्ह
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प्रत्यावर्ती धारा कहीं प्रकार की होती है
त्रिकोणमितीय प्रत्यावर्ती धारा -
वर्गाकार प्रत्यावर्ती धारा -
ज्यावक्रिय प्रत्यावर्ती धारा -
प्रत्यावर्ती वोल्टता एवं प्रत्यावर्ती धारा की तात्क्षणिक मान की समीकरण -
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=> प्रत्यावर्ती धारा का एक पूर्ण चक्कर में औसत मान शून्य होता है घरों में आने वाली धारा प्रत्यावर्ती धारा होती है भारत में आने वाली घरेलू वोल्टता 220 वोल्ट वह धारा की आवृत्ति 50Hz होती है अमेरिका रूस और जापान में घरेलू वोल्टता 110 वोल्ट तथा आवर्ती 60Hz होती है प्रत्यावर्ती धारा 1 सेकंड में 100 बार अधिकतम वह 100 बार शुन्य होती है
प्रत्यावर्ती वोल्टता एवं प्रत्यावर्ती धारा का तात्क्षणिक मान, शिखर मान, औसत मान, वर्ग माध्य मूल मान
तात्क्षणिक मान - किसी क्षण पर धारा तात्क्षणिक धारा कहलाती है
शिखर मान /आयाम - प्रत्यावर्ती धारा को उच्चतम मान शिखर मान कहलाता है
धारा के शिखर मान को i°/im से तथा वोल्टता के शिखर मान को V°/Vm से व्यक्त किया जाता है
औसत मान - प्रत्यावर्ती धारा का एक पूर्ण चक्कर में औसत को प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान कहा जाता है
=> एक पूर्ण चक्कर के लिए धारा का औसत मान
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=> अर्ध्य चक्कर के लिए धारा का औसत मान
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वर्ग माध्य मूल मान {rms} - प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग का एक पूर्ण चक्कर के लिए औसत का वर्गमूल प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान कहलाता है अथवा प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान उस दिष्ट धारा के बराबर होता है जो उतनी ही ऊष्मा उत्पन्न करें जितनी कि दिष्ट धारा।
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धारा का वर्ग माध्य मूल मान अपने अधिकतम मान का 1/√2 गुना होता है
Note - यदि किसी समीकरण के अलावा वोल्टता या धारा का मान दिया जाए तो वह वर्ग माध्य मूल मान ही होता है
=> प्रत्यावर्ती धारा दिष्ट धारा से ज्यादा श्रेष्ठ (अच्छी) होती है
=> प्रत्यावर्ती धारा पर आधारित उपकरण सरल व सस्ते होते हैं परंतु दिष्ट धारा पर आधारित उपकरण जटिल व महंगे होते हैं
=> प्रत्यावर्ती धारा को कम लागत पर प्रत्यावर्ती धारा को कम लागत पर उत्पन्न किया जा सकता है परंतु दिष्ट धारा का उत्पादन बहुत महंगा पड़ता है
प्रतिरोध आवृत्ति ग्राफ :- प्रतिरोध आवर्ती पर निर्भर नहीं करता है
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प्रतिरोध की उपस्थिति में शक्ति :- png image
जब प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत के साथ शुद्ध प्रेरकत्व L जुड़ा हो :-
माना कि एक शुद्ध प्रेरकत्व L प्रत्यावर्ती वोल्टता स्त्रोत के साथ श्रेणी क्रम में जोड़ा है प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत की समीकरण
V = Vo SinWt
जब प्रेरकत्व में धारा के मान में परिवर्तन होता है तो प्रकृति के सिरों पर प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है जो की धारा में परिवर्तन का विरोध करता है
=> किरचोप के द्वितीय नियम नियम से -
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=> प्रेरकत्व में धारा की समीकरण -
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=> धारा व वोल्टता के बीच का अंतर -
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=> धारा व वोल्टता का का ज्या-वक्रिय ग्राफ -
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=> धारा व वोल्टता का फ्रेजर ग्राफ -
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=> प्रेरणिक प्रीतिधात (Xl) - प्रेरकत्व के कारण धारा में उत्पन्न बाधा प्रेरणिक प्रतिघात कहा जाता है इसे एक्सएल(Xl) से व्यक्त किया जाता है इसका मात्रक ओम होता है
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=> प्रेरणिक प्रीतिधात व आवर्ति ग्राफ -
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=> प्रेरकत्व की उपस्थिति में शक्ति :-
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एकता में शक्ति हानि का मान्य होता है जितनी उर्जा उत्सर्जित होती है उतनी ही ऊर्जा अवशोषित होती है
जब प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत के साथ शुद्ध संधारित्र जुड़ा हो :-
माना कि एक संधारित्र C प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत के साथ श्रेणी क्रम में जोड़ा है किसी समय t पर जब संधारित्र में धारा प्रवाहित होती है तो संधारित्र के सिरों पर विभवांतर उत्पन्न होता है यदि विभवांतर Vc हो तो
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=> किरचोप के द्वितीय नियम नियम से -
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=> संधारित्र में धारा की समीकरण -
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=> संधारित्र में धारा व वोल्टता के बीच का अंतर -
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=> संधारित्र में धारा व वोल्टता का का ज्या-वक्रिय ग्राफ -
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=> संधारित्र में धारा व वोल्टता का फ्रेजर ग्राफ -
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=> संधारित्र में प्रेरणिक प्रीतिधात (Xl) -
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=> धारीतिय प्रीतिधात व आवर्ति ग्राफ -
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=> धारीतिय की उपस्थिति में शक्ति -
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=> शक्ति समय ग्राफ -
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RL अथवा LR परिपथ :-
माना कि प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत के साथ श्रेणी क्रम में प्रतिरोध और R तथा प्रेरकत्व L जुड़े हैं
प्रत्यावर्ती वोल्टता की समीकरण V=V०SinWt
किसी समय पर जब परिपथ में धारा i प्रवाहित होती है तो प्रतिरोध R एवं प्रेरकत्व L के सिरों पर विभांतर उत्पन्न होता है यदि प्रतिरोध का विभांतर Vr व प्रेरकत्व का विभांतर VL यदि इनकी परिणामी वोल्टता Vrl हो तो
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=> किरचोप के द्वितीय नियम नियम से -
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=> सदिश आरेख विधि द्वारा हल करने पर -
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=> RL परिपथ की परिणामी वोल्टता -
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=> Rl परिपथ में कालांतर -
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=> Rl परिपथ में धारा व वोल्टता का फ्रेजर ग्राफ -
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RC/CR परिपथ :- माना कि प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत के साथ प्रतिरोध तथा संधारित्र जुड़े हैं गोल्ड ताकि समीकरण V= SinWt है किसी समय t पर प्रतिरोध में धारा i प्रवाहित होती है तो प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर Vr तथा संधारित्र के सिरों पर विभांतर Vc उत्पन्न होता है
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=> किरचोप के द्वितीय नियम नियम से -
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=> सदिश आरेख विधि द्वारा हल करने पर -
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=> Rc परिपथ की परिणामी वोल्टता -
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=> Rc परिपथ में प्रतिरोध -
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=> Rc परिपथ का ज्यावक्रीय ग्राफ -
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=> Rl परिपथ में धारा व वोल्टता का फ्रेजर ग्राफ -
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V. imp*
LCR परिपथ :- जब किसी प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत के साथ श्रेणी क्रम में प्रेरकत्व L संधारित्र C व प्रतिरोध R जुड़े हैं जब किसी समय t पर परिपथ में धारा प्रवाहित होती है तो तीनों के सिरों पर विभवांतर क्रमश: Vl, Vc, Vr उत्पन्न होता है, यदि इनकी परिणामी वोल्टता VLR हो तो
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=> किरचोप के द्वितीय नियम नियम से -
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imp*
=> सदिश आरेख विधि द्वारा हल करने पर - प्रतिरोध के सिरों पर वोल्टता Vr धारा की सामान कला में L के सिरों पर वोल्टता धारा से 90° आगे रहती है तथा संधारित्र के सिरों पर वोल्टता धारा से 90° पीछे रहती है।
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=> LCR परिपथ की परिणामी वोल्टता -
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=> LCR परिपथ में धारा एवं वोल्टता के बीच कालांतर -
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=> LCR परिपथ की स्थितिया -
(1) XL > XC
जब प्रेणित प्रतिधात का मान धारीतिय प्रतिधात से ज्यादा होता है तो कलान्तर धनात्मक होता है तथा वोल्टता धारा से फाई कोण आगे रहती है
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=> XL > XC परिपथ का ज्यावक्रीय ग्राफ -
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XL > XC परिपथ का प्रतिबाधा ग्राफ -
(2) XC > XL
यदि धारीतिय प्रतिधात प्रेरणिक प्रतिधात से ज्यादा हो, जब धारीतीय प्रतिधात प्रेरणिक प्रतिधात से ज्यादा होता है तो कालांतर ऋणात्मक होता है तथा धारा वोल्टता से फाई कोण आगे रहती है।
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imp*
=> अनुनाद पर धारा -
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=> प्रतिबाधा आवृत्ति ग्राफ (Z) -
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विशेषता गुणांक अथवा तीक्ष्णता गुणांक (Q) :- अनुनादी आवृत्ति एवं बैंड चौड़ाई का अनुपात विशेषता गुणांक कहलाता है
Q = अनुनादी आवृत्ति / बैंड चौड़ाई
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अनुनादी वक्र का महत्व :- अनुनादी वक्र की तीक्ष्णता को विशेषता गुणांक व्यक्त करत है,
Q का मान जितना ज्यादा होता है वक्त उतना ही ज्यादा तीक्ष्ण होता है
Q का मान कम होता है तो ग्राफ कपटा होता है
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LCR परिपथ में शक्ति गुणांक :- शक्ति गुणांक Cos(0)=R/z परंतु जब LCR परिपथ अनुनाद की अवस्था में होता है तो Cos(0) का मान 1 होता हैं। तथा शक्ति अधिकतम होती है तथा इस अवस्था में विद्युत उपकरण जैसे पंखे मोटर आदि को ज्यादा शक्ति प्राप्त होती है तथा इसके धीरे चलने पर संधारित्र को बदला जाता है।
वाटहीन/कार्यहीन धारा :- धारा वह घटक जिसका शक्ति में कोई योगदान नहीं होता है वाटहीन शक्ति (कार्यहीन) कहलाती है
इसका मान Irms sin(0) अथवा (I०/√2)sin(0) होता है
कार्ययुक्त या वाटयुक्त धारा :- धारा का वह घटक जिसका शक्ति में योगदान होता है कार्ययुक्त शक्ति कहलाती है
इसका मान Irms Cos(0) अथवा (I०/√2)Cos(0) होता है
चोक कुंडली :- चोक कुंडली कार्यहीन धारा के सिद्धांत पर कार्य करती है इसका उपयोग प्रत्यावर्ती धारा को कम करने में किया जाता है चोक कुंडली को एक बेलनाकार नलिका पर विद्युत रोधी तांबे के तार से लपेट कर बनाया जाता है
चोक कुंडली में उच्च प्रेरकत्व तथा निम्न प्रतिरोध रखा जाता है
उच्च प्रेरकत्व व निम्न प्रतिरोध के कारण शक्ति हानि न्यूनतम होती है
ट्रांसफार्मर :- ट्रांसफार्मर व्यक्ति है जो प्रत्यावर्ती वोल्टता को परिवर्तित करने के काम आती है ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है
ट्रांसफार्मर की संरचना :- ट्रांसफार्मर को गर्म लोहे की पट्टिका ओ को एक के ऊपर एक रखकर बनाया जाता है इनका आकार पट्टीका के दोनों सिरों पर तांबे के तारों से बनी दो कुंडलियां होती है एक प्रथम कुंडली जिसे प्रत्यावर्ती वोल्टता द्वारा जोड़ा जाता है एवं द्वितीयक कुंडली जिस पर हमें निर्गत प्रत्यावर्ती वोल्टता प्राप्त होती है
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ट्रांसफार्मर की कार्य विधि :-
=>जब प्राथमिक कुंडली कोनी वैसी प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत से जोड़ा जाता है तो प्राथमिक कुंडली से चुंबकीय फ्लक्स परिवर्तित होता है जिसके फल स्वरुप द्वितीयक कुंडली से भी संबंध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है द्वितीयक कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है
=> यदि प्राथमिक कुंडली में फेरों की संख्या Np तथा द्वितीयक कुंडली के फेरों की संख्या Ns यदि इनमें उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल Ep व Es हो तो तथा फलक्स में परिवर्तन की दर समान हो तो फेराडे के द्वितीयक नियम से प्राथमिक कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल
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ट्रांसफार्मर के प्रकार :- ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं
(1) उच्चायी ट्रांसफार्मर :- यह ट्रांसफार्मर वोल्टता के मान को बढ़ाने का कार्य करता है इस ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुंडली से ज्यादा होती है जिसके कारण द्वितीयक कुंडली की वोल्टता बढ़ जाती है धारा कम हो जाती है
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(2) अपचायी ट्रांसफार्मर :- यह उच्च वोल्टता को निम्न वोल्टता में बदलता है इसकी द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुंडली से कम होती है
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Imp*
ट्रांसफार्मर की दक्षता :- द्वितीयक कुंडली की शक्ति एवं प्राथमिक कुंडली की शक्ति का अनुपात ट्रांसफार्मर की दक्षता कहलाता है
दक्षता = ( द्वितीयक कुंडली की शक्ति / प्राथमिक कुंडली की शक्ति)×100 %
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एक आदर्श ट्रांसफार्मर की शक्ति 100% होती है परंतु सामान्यतः प्राथमिक कुंडली की शक्ति द्वितीयक कुंडली की शक्ति के बराबर नहीं होती है अतः सामान्यतः ट्रांसफार्मर की दक्षता सत प्रतिसत न होकर लगभग 70 प्रतिशत होती है
ट्रांसफार्मर में होने वाली कार्य हानि एवं इसको रोकने के उपाय :- ट्रांसफार्मर में ऊर्जा हानि निम्न प्रकार से होती है
=> तांब्र हानि - ट्रांसफार्मर की दोनों कुंडलियां तांबे की बनी होती हैं जिनका प्रतिरोध अल्प होता है शुन्य नहीं होता है अतः जूल प्रभाव के कारण इनमें शक्ति क्षय होता है इसे तांब्र हानि कहते हैं
उपाय - इसे रोकने के लिए तांबे के मोटे तारों की कुंडली काम ली जाती है
=> चुंबकीय फ्लक्स क्षरण के कारण हानि - दोनों कुंडलियां के बीच वायु अंतराल होने के कारण प्राथमिक कुंडली का संपूर्ण फ्लक्स द्वितीयक कुंडली से नहीं गुजरता है
उपाय - इस फलक्स हानि को रोकने के लिए दोनों कुंडलियों को एक दूसरे के ऊपर लपेटा जाता है
=> भवर धाराओं के कारण होने वाली हानि - जब किसी धातु से संबंधित चुंबकीय क्षेत्र में समय के साथ परिवर्तन होता है तो भंवर धारा उत्पन्न होती है जिसके कारण ट्रांसफार्मर की आयताकार प्लेट एक गर्म हो जाती है जिसके कारण ऊष्मा हानि होती है
उपाय - भंवर धारा को कम करने के लिए आयताकार प्लेटों के बीच विद्युत रोधी पदार्थ का लेप किया जाता है ताकि भंवर धारा कम से कम उत्पन्न हो तथा प्लेटो का बीज से क्षेत्रफल कम कर दिया जाता है क्षेत्रफल कम होने से भंवर धारा का मान भी कम हो जाता है
=> शैथिल्य हानी - ट्रांसफार्मर में पदार्थ के चुम्बकन एवं वि चुम्बकन के दौरान शैथिल्य हानि होती है
उपाय - शैथिल्य हानि को कम करने के लिए नरम लोहे का उपयोग किया जाता है क्योंकि नरम लोहे में शैथिल्य हानी कम होती है नरम लोहे की धारण शीलता ज्यादा निग्राहिता कम होती है व शैथिल्य लूप का क्षेत्रफल भी कम होता है अतः शैथिल्य हानि भी कम होगी
ट्रांसफार्मर के उपयोग :-
=> प्रत्यावर्ती वोल्टता को परिवर्तित करने में यह उच्च वोल्टता को निम्न वोल्टता में तथा निम्न वोल्टता को उच्च वोल्टता में बदलता है
=> AC को DC में बदलने के लिए दिष्टकारी में ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है
=> एक स्थान से दूसरे स्थान तक कई किलोमीटर तक विद्युत शक्ति का संचरण में
Q - 1 यदि एक प्रत्यावर्ती वोल्टता समीकरण V = 200√2sin10πt है तो यदि इसमें से 10 ओम का प्रतिरोध तार जोड़ा जाए तो प्रत्यावर्ती धारा का मान बताइए
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Q - 2 एक प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 5Hz है तो धारा को अपने शून्य से अधिकतम मान तक पहुंचने में लिया गया समय बताइए
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Q - 3 एक प्रत्यावर्ती वोल्टता की समीकरण V =200√2sin100πt है यदि इसमें 2µf का संधारित्र जोड़ा जाए तो धारीतिय प्रतिधात व धारा का मान बताइए
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