Ray optics 12th Physics Notes Pdf Download किरण प्रकाशिकी chapter 11
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◆ प्रकाशिकी (Optics)◆
( 1) - किरण प्रकाशिकी
भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत प्रकाश की प्रकृति एवं प्रकाश के गुणों का अध्ययन किया जाता है
प्रकाशिकी की दो शाखाएं होती है( 1) - किरण प्रकाशिकी (2) - तरंग प्रकाशिकी
( 1) - किरण प्रकाशिकी (Rey Optics) : - इस शाखा के अंतर्गत हम प्रकाश की प्रकृति का अध्ययन करते हैंन्यूटन ने कनिकावाद सिद्धांत दिया जिसमे बताया कि प्रकाश कणीय प्रकृति रखता है एवं प्रकाश की घटनाएं परावर्तन अपवर्तन कर यह प्रकृति का समर्थन करती है
(2) - तरंग प्रकाशिकी : - इस शाखा के अंतर्गत हम प्रकाश की तरंग प्रकृति का अध्ययन करते हैं हाइगेन ने प्रकाश का तरंग सिद्धांत दिया जिसमें बताया कि प्रकाश तरंग प्रकृति दर्शाता हैप्रकाश की व्यतिकरण, विवर्तन,ध्रुवण प्रकाश की तरंग प्रकृति का समर्थन करती है
★प्रकाश (light) - प्रकाश एक विद्युत चुंबकीय तरंग हैप्रकाश के 7 रंग होते हैं (जिसको हम सामान्यतः समझने के लिए "VIBGYOR" कहते हैं )V - violetI - Indigo B - blueG - greenY - Yellow O - Orange R - Red
➡ प्रकाश वस्तुओं को देखने के काम आता है!➡ प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 400nm से 700nm होती है➡ हमारी आंखें सबसे अधिक संवेदनशील पीले रंग के लिए होती है एवं सबसे कम संवेदनशील लाल व बैंगनी रंग के लिए होती है➡ प्रकाश की अनुभूति आंखों के द्वारा की जाती है ➡ प्रकाश का पथ किरण कहलाता है।➡ प्रकाश को किसी सतह आपतित किया जाता है तो तीन प्रकार की प्रक्रिया होती है- प्रकाश का कुछ भाग अवशोषित हो जाता है, और कुछ भाग परावर्तित हो जाता है व शेष भाग अपवर्तित हो जाता है
★ प्रकाश की घटनाएं
(1) - परावर्तन (Reflection) :- जब किसी प्रकाश की किरण किसी परावर्तक सतह पर आपतित होती है तो आपतन के पश्चात वापस उसी माध्यम में लौट जाती है प्रकाश का टकराकर वापस उसी माध्यम में लौटना यह घटना परावर्तन कहलाती है।
(2) - परावर्तक सतह :- वह सतह जिस पर आपतित प्रकाश पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाता है तो यह सतह परावर्तक सतह कहलाती है
(3) - आपतित किरण :- परावर्तक सतह पर आने वाली किरण आपतित किरण कहलाती है
(4) - परावर्तित किरण :- परावर्तक सतह पर टकराकर पुनः उसी माध्यम में लौटने वाले किरण परावर्तित किरण कहलाती है
(5) - अभिलंब (N) :- परावर्तक सतह पर लंबवत रेखा अभिलंब कहलाती है यह आपतित किरण व परावर्तित किरण के मध्य उपस्थित होता है
(6) - आपतन कोण (i) :- अभिलम्ब व आपतित किरण के मध्य बनने वाला कोण आपतन कोण कहलाता है
(7) - परावर्तक कोण (r) :- अभिलम्ब व परावर्तित किरण के बीच बनने वाला कोण परावर्तक कोण कहलाता है
★ विचलन कोण (∆) :- आपतित किरण की मूल दिशा एवं परावर्तित किरण के बीच बनने वाला कोण विचलन कोण कहलाता है Note - इस टॉपिक को नीचे फोटो में समझाया गया है
Important question
इमेज
★ प्रतिबिम्बों की संख्या :- प्रतिबिंब की संख्या दो दर्पण के बीच के कोण पर निर्भर करती है
n = 360/θimage
Case -1 यदि n का मान सम हो तो प्रतिबिंब की संख्या = (n-1)
Case -2यदि n का मान विषम हो तो
(१) वस्तु सम्मित अवस्था में होप्रतिबिंब की संख्या = n-1
(२) वस्तु असम्मित अवस्था में होप्रतिबिंब की संख्या = n
important question
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परावर्तन के नियम :- परावर्तन के दो नियम होते हैं(1) - परावर्तन का प्रथम नियम - आपतन कोण का मान परावर्तन कोण के बराबर होता है (i) =(r)(2) - परावर्तन का द्वितीय नियम - आपतित किरण परावर्तित किरण अभिलंब तीनों एक ही तल में स्थित होते हैं
* परावर्तन से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु :-
(1) परावर्तन की घटना में कभी भी प्रकाश की चाल आवृत्ति,तरंग धैर्य नहीं बदलती है परंतु तीव्रता में परिवर्तन होता है जो पृष्ठ की प्रकृति पर निर्भर करती है
(2) - परावर्तन की घटनाएं सभी सतह से संभव होती हैं चाहे वह सतह समतल हो (उत्तल हो या अवतल हो)
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Important(3) - यदि कोई किरण अभिलंब से आते हुए किसी दर्पण पर आपतित होती है तो आपतन के पश्चात यह अपने पथ का दौरान करती है इस अवस्था में आपतन व परावर्तन कोण के मान शुन्य (0) होते हैं
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(4) - किसी भी बिम्ब से अनंत किरणें निकलती हैं परंतु प्रतिबिंब निर्माण के लिए कम से कम 2 किरणों का मिलना आवश्यक है (5) - किसी भी दर्पण को पानी में डूबने पर उस की फोकस दूरी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि फोकस दूरी गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या पर निर्भर करती है
(6) -समतल दर्पण आभाषी बराबर सीधा उत्तल दर्पण आभाषी छोटा सीधा अवतल दर्पण। [वास्तविक ] [उल्टा ] [ बड़ा ] [आभाषी ] [सीधा ] [ छोटा ]
* परावर्तन के प्रकार :- परावर्तन दो प्रकार का होता है(1) - नियमित परावर्तन (2) - विसरित परावर्तन
(1) - नियमित परावर्तन :- जब किसी प्रकाश को किसी सतह पर आपतित किया जाता है तो आपतित प्रकाश परावर्तित होकर एक निश्चित दिशा में का गमन करता है तो प्रकाश की यह घटना नियमित परावर्तन कहलाती है
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(2) - विसरित परावर्तन :- जब प्रकाश को खुरदरी सतह पर डाला जाता है तो वह परावर्तित प्रकाश सभी दिशाओं में फैल जाता है तो प्रकाश के सभी दिशाओं में फैलने की घटना विसरित परावर्तन कहलाती है
आकाश का नीला रंग विस्तृत परावर्तन के कारण होता है
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*दर्पण*(Mirror) पोलिस की गई वह सतह को परावर्तक का कार्य करती है तर्पण कहलाता हैदर्पण दो प्रकार का होता है(1) - समतल दर्पण(2) - गोलीय दर्पण
(1) - समतल दर्पण :- यदि परावर्तक सतह समतल हो तो वह समतल दर्पण कहलाता है
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समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब निर्माण :-
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- समतल दर्पण के द्वारा वस्तु का आभासी सीधा वह बराबर आकार का प्रतिबिंब बनता है- समतल दर्पण में वस्तु का दायां भाग बाया व बाया भाग दाया दिखाई देता है यह घटना पाश्र्व प्रतिलोमन कहलाती है
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★ गोलीय दर्पण :- गोलीय दर्पण एक खोखले गोले का भाग होता है जिसको काटकर गोलीय दर्पण का निर्माण किया जाता है
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैंimage
(1) - अवतल दर्पण (2) - उत्तल दर्पण
(1) - अवतल दर्पण :- यदि परावर्तन की घटना आंतरिक सतह से होती हैं तो दर्पण अवतल दर्पण कहलाता है
(2) - उत्तल दर्पण :- यदि परावर्तन की घटना बाह्य सतह पर हो तो दर्पण उत्तल दर्पण कहलाता है
★ गोलीय दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण - image
( 1 ) :- द्वार (AB) - दर्पण का आकार द्वारक कहलाता है जहां तक कि उसमें किरणे प्रवेश करती है
( 2 ) :- ध्रुव (p) - दर्पण का मध्य बिंदु ध्रुव कहलाता है इसे P से व्यक्त करते हैं
( 3 ) :- वक्रता केंद्र (C) - गोलीय दर्पण का केंद्र वक्रता केंद्र कहलाता है जिससे काटकर दर्पण बनाया गया है इसे C से व्यक्त करते हैं
( 4 ) :- वक्रता त्रिज्या(R) - गोलीय दर्पण की त्रिज्या वक्रता त्रिज्या कहलाती है इसे R से व्यक्त करते हैं
*imp*( 5 ) :- फोकस बिंदु - मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली किरणें दर्पण से परावर्तन के पश्चात जिस बिंदु पर मिलती है अथवा मिलती हुई प्रतीत होती हैं वह बिंदु फोकस बिंदु कहलाता है
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( 6 ) :- फोकस दूरी :- फोकस बिंदु से ध्रुव के बीच की दूरी फोकस दूरी कहलाती है इसे f से व्यक्त करते हैं
★ दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण के नियम1 - यदि कोई किरण मुख्य अक्ष के समांतर आती है तो दर्पण से परावर्तन के पश्चात फोकस बिंदु से गुजरती है अथवा गुजरती हुई प्रतीत होती है
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2 - यदि कोई किरण फोकस बिंदु से गुजरती हुई दर्पण पर आप भी तो होती है तो यह मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है
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3 - यदि कोई किरण वक्रता केंद्र से होते हुए दर्पण पर आपकी तो होती है तो परावर्तन के पश्चात यह अपने पथ का अनुसरण या दौरान करती है
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4 - यदि कोई किरण ध्रुव ऊपर जितने कोण से आपतित होती है तो यह इतनी ही कौन से परावर्तित हो जाती है
★ दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण★
[1] - अवतल दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण -
*अवतल दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण*
क्र/सः
बिम्ब
प्रतिबिम्ब
प्रतिबिम्ब की प्रकृति
आवर्धन क्षमता
1
∞
F
वास्तविक,उल्टा,बहुत छोटा
M<<-1
2
∞ - F
F - C
वास्तविक,उल्टा,छोटा
M< -1
3
C
C
वास्तविक,उल्टा,बराबर
M = -1
4
F - C
C - ∞
वास्तविक,उल्टा,बड़ा
-M> 1
5
F
∞
वास्तविक,उल्टा,बहुत बड़ा
-M >>1
6
F - P
दर्पण के पीछे
आभासी,सीधा,बड़ा
+M>>1
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-:- उत्तल दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण : - उत्तल दर्पण हमेशा आभासी एवं छोटा प्रतिबिंब बनाता है(1) - जब प्रतिबिंब उत्तल दर्पण के सामने स्थित होimage
(2)- यदि प्रतिबिंब उत्तल दर्पण से अनंत पर स्थित होimage
-:- चिन्ह परिपाटी :- image
Q- वास्तविक प्रतिबिंब एवं आभासी प्रतिबिंब में अंतर ?वास्तविक प्रतिबिंब - (1)- वास्तविक प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है(2)- वास्तविक प्रतिबिंब दर्पण के सामने बनता है(3)- वास्तविक प्रतिबिंब में किरणें मिलती है(4)- वास्तविक प्रतिबिंब की आवर्धन क्षमता(m) ऋण आत्मक होती है
आभासी प्रतिबिंब :- (1)- आभासी प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है(2)- आभासी प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है(3)- आभासी प्रतिबिंब में किरण मिलती हुई प्रतीत होती है(4)- आभासी प्रतिबिंब की आवर्धन क्षमता(m) धनात्मक होती है
imp*-:- फोकस दूरी(f) एवं वक्रता त्रिज्या (R) में संबंध :- माना की एक किरण mm' मुख्य अक्ष के समांतर आती हुई दर्पण पर बिंदु m' पर आपतित होती हैं आपतन के पश्चात फोकस बिंदु(F) से गुजरती हैं एक किरण जो वक्रता केंद्र से होते हुए दर्पण पर आपतित होती है तो अपने पथ का अनुसरण करती है माना कि दर्पण का द्वार छोटा है एवं M'P रेखा मुख्य अक्ष पर लंबवत है
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image
imp*दर्पण समीकरण अथवा दर्पण के लिए u, v, f में सम्बन्ध - माना कि एक बिंब A, B जिसकी ऊंचाई h1 है अवतल दर्पण के सामने अनंत पर C बीच स्थित है, ध्रुव से बिंब की दूरी u है, अवतल दर्पण के द्वारा इस प्रतिबिंब A',B' वास्तविक, उल्टा व छोटा f व c के मध्य प्राप्त होता है प्रतिबिंब को ध्रुव से दूरी v व अवतल दर्पण की फोकस दूरी व वक्रता त्रिज्या f व R है
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दर्पण की आवर्धन क्षमता (m) - प्रतिबिंब की ऊंचाई एवं बिंब की ऊंचाई का अनुपात आवर्धन क्षमता(m) कहलाता है
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Note - वास्तविक प्रतिबिंब के लिए m का मान ऋणात्मक वह आभासी प्रतिबिंब के लिए m का मान धनात्मक होता है।
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-:- दर्पण के उपयोग - (1)- समतल दर्पण - श्रंगार करने में,(2)- अवतल दर्पण - सेविंग बनाने में( नाई की दुकान में), दंत चिकित्सक के रूप में, वाहनो की हेडलाइट में, परावर्तक दूरदर्शी मै,(3)- उत्तल दर्पण- वाहनों मैं पार्श्व(साइड) दर्पण के रूप में
-:- अपवर्तन :- जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है माध्यमों की प्रथककारी सतह पर अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती है तो प्रकाश का अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाना अपवर्तन कहलाता है
=> अपवर्तन की दो स्थितिया होती है(1) जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सगन माध्यम में प्रवेश करती है तो अभिलंब की तरफ झुक जाती है एवं इस स्थिति में आपतन कोण अपवर्तन कोण से बडा होता है
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(2) जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करता है तो अभिलंब से दूर हट जाती है इस स्थिति में अपवर्तन कोण आपतन कोण से बडा होता है
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=> अपवर्तन का कारण - अलग-अलग माध्यम में प्रकाश के वेग का अलग अलग होना अपवर्तन का कारण हैजब प्रकाश का वेग घट जाता है तो किरण अभिलंब की तरफ झुक जाती है जब प्रकाश का वेग बट जाता है तो किरण अभिलंब से दूर हट जाती है
Imp*नोट:- अपवर्तन की घटना में कभी भी प्रकाश की आर्वति नहीं बदलती है परंतु प्रकाश का वेग, तरंग धैर्य व तीव्रता में परिवर्तन आता है
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-:- अपवर्तन के नियम - => आपतित किरण, अपवर्तित कीरण, अभिलम्ब तीनों एक ही तल में स्थित होते हैं=> इसे स्नेल का नियम भी कहते हैं इस नियम के अनुसार आपतन कोण की ज्या (sin0) एवं अपवर्तन कोण की ज्या का मान नियत रहता है अथवा अपवर्तनांक एवं आपतन कोण की ज्या का गुणनफल नियत रहता है
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-:- अपवर्तनांक (n) - निर्वात में प्रकाश का वेग एवं माध्यम में प्रकाश के वेग का अनुपात अपवर्तनांक कहलाता है अपवर्तनांक यह व्यक्त करता है कि प्रकाश का वेग माध्यम में किस कारण से घटता है
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=> प्रथम माध्यम में प्रकाश का वेग -
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=> निर्वात में प्रकाश का वेग -
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-:- निरपेक्ष अपवर्तनांक - वह अपना मुझसे वायु के निरपेक्ष मापा जाता है निरपेक्ष अपवर्तनांक कहलाता है
Imp*-:- आपेक्षिक अपवर्तनांक :- यदि किसी माध्यम का अपवर्तनांक किसी दूसरे माध्यम के सापेक्ष मापा जाता है तो वह आपेक्षिक अपवर्तनांक कहलाता है=> प्रथम माध्यम का दूसरे माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक -
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-:- अपवर्तन के उदाहरण - (1) तारों का चमकना अथवा टिमटिमाना - तारों का चमकना अपवर्तन की घटना पर आधारित होता है जब तारों से निकलने वाले किरण पृथ्वी के बाह्य मंडल से गमन करती हुई हमारी आंखों तक पहुंचती है तो वायुमंडल की पर तो का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होने के कारण अपवर्तन की घटना होती है जिससे तारे चमकते हुए दिखाई देते हैं
(2) पानी के पेंदे में रखे सिक्के का ऊपर उठे हुए दिखाई देना -
Imageवस्तु का ऊपर उठा दिखाई देना अपवर्तन का कारण होता है अभिलम्ब विस्थापन - वस्तु की वास्तविक स्थिति एवं आभाषी स्थिति के बीच की दूरी अभिलम्ब विस्थापन कहलाता है
(3) किसी वस्तु अथवा छड़ का मुदा हुआ दिखाई देना जल में - छड़ से निकलने वाली किरण जब सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो अभिलम्ब से दूर हट जाती है एवं किरण प्रेक्षक की आंखों में तिरछी पहुंचती है फलस्वरुप हम वस्तु अथवा छड़ को मुड़ी हुई देखते हैं
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(4) किसी कांच की पट्टी का से अपवर्तन एवं पार्श्विक विस्थापन -
Imageजब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से आयताकार काच की पट्टीका से गुजरती है तो इसका दो बार अपवर्तन होता है प्रथम वायु से कांच, दितीय कांच से वायु में प्रवेश करते समय इस स्थिति में आपतित किरण वह निर्गत किरण की दिशा एक दूसरे के समांतर होती है एवं आपतन कोण का मान निर्गत कोण के बराबर होता हैपार्श्विक विस्थापन - आपतित किरण की दिशा एवं निर्गत किरण की दिशा के बीच की लंबवत दूरी पार्श्विक विस्थापन कहलाता हैं
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(5) सूर्य का सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के पश्चात तक दिखाई देना -
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पृथ्वी के समीप वाली वायु का घनत्व उसके ऊपर वाली वायु की तुलना में ज्यादा होता है अत: प्रथ्वी के समीप वाली वायु सघन की तरह एवं ऊपर वाली वायु विरल की तरह कार्य करती है जब सूर्य की किरण निर्वात से चलकर वायुमंडल के विरल से सघन वायु की सतह से गुजरती है तो अभिलंब की तरफ झुक जाती है एवं इस कारण प्रेक्षक को सूर्य अपनी वास्तविक स्थिति से ऊपर दिखाई देता है अत: सूर्य उदय होने से पहले दो मिनट तथा अस्त होने से दो मिनट पश्चात तक दिखाई देता है अत: संपूर्ण दिन में 4 मिनट का अंतर महसूस होता है
Imp*-:- पूर्ण आंतरिक परावर्तन (TIP) - जब प्रकाश की किरण सघन से विरल माध्यम में परिवेश करती है तो अभिलम्ब से दूर हट जाती है एवं इस स्थिति में अपवर्तन कोण,आपतन कोण से ज्यादा होता है आपतन कोण का मान बढ़ने पर अपवर्तन कोण का मान भी बढ़ता है परंतु एक स्थिति ऐसी आती है जब परावर्तित किरण समकोण पर होती है।
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-:- क्रान्तिक कोण (थीटाc) - जब प्रकाश की किरण सघन से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो वह आपतन कोण जिस पर आप परिवर्तित किरण अभिलम्ब से 90° का कोण बनाती हैं क्रान्तिक कोण कहलाता है
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-:- पूर्ण आंतरिक परिवर्तन - जब प्रकाश कि किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो यदि अपवर्तन कोण का मान क्रान्तिक कोण से ज्यादा है तो अपवर्तित किरण पुण: उसी माध्यम में लोट आती है अपवर्तित किरण का पुण: उसी माध्यम में लोट आना पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहलाता है
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=> पूर्ण आंतरिक परावर्तन की शर्तें -
(1) प्रकाश की किरण सघन से विरल माध्यम में प्रवेश करती है(2) आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से अधिक होता है (i >थिटाc)
:-: भिन्न - भिन्न माध्यमो के लिए क्रान्तिक कोण ज्ञात करना - (1) - कांच से वायु के लिए
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(2) - यदि प्रकाश की किरण जल से वायु में प्रवेश करें तो क्रान्तिक कोण -
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(3) - यदि प्रकाश की किरण काच से जल में प्रवेश करें -
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Imp*Note :- यदि कोई भी माध्यम नहीं दिया जाए तो दूसरे माध्यम की जगह वायु माना जाता है
:-: पूर्ण आंतरिक परावर्तन के उद्धारण -
(1) हीरे का चमकना - हीरे का चमकना पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना पर आधारित होता है धीरे का अपवर्तनांक 2.42 क्रान्तिक कोण 24.41° होता है हीरे की कटिंग इस प्रकार की जाती है कि इसकी सतह से बाहर निकलने वाले किरण का अपवर्तन कोण क्रान्तिक कोण से ज्यादा हो इस प्रकार हीरे में पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना बार-बार होती है जिसे हीरे में जितना अधिक पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है उसकी चमक एवं कीमत दोनों ही ज्यादा होती है
नोट:- पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना में प्रकाश की तीव्रता अथवा उर्जा में कोई हानी नहीं होती है अतः बनने वाला प्रतिबिंब बिंब की तरह चमकीला ही बनता है
(2) मरीचिका -
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रेगिस्तानी क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में पृथ्वी के समीप वाली वायु का घनत्व घट जाता है एवं इसके ऊपर वाली वायु का घनत्व बड़ जाता है अतः ऊपर वाली सघन एवं नीचे वाली वायु विरल का कार्य करती है,यदि किसी बिम्ब से निकलने वाली किरण सघन से विरल माध्यम में प्रवेश करती है एवं आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से ज्यादा होने पर प्रेक्षक को उस बिंब का उसके नीचे उल्टा प्रतिबिंब प्राप्त होता है या ऐसा प्रतीत होता है कि बिंब किसी जलाशय स्रोत अथवा किसी तालाब के किनारे स्थित है
(3) प्रकाशिक तंतु - प्रकाशिक तंतु वह युक्ति है जो श्रव्य अथवा दृश्य संकेतों को बिना उर्जा हानि के उच्च दूरी तक संचरित करने के काम आती है, प्रकाशिक तंतु क्वार्ट्ज अथवा कांच के तंतु ओ से मिलकर बने होते हैं
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प्रकाशिक तंतु के निम्न भाग होते है
(१) क्रोड - यह प्रकाशिक तंतु का सबसे यांत्रिक बेलना कार भाग होता है इसका अपवर्तनांक n1 होता है क्रोड़ का अपवर्तनांक अधिपटन से ज्यादा होता है
(२) अधिपटन - यह क्रोड़ का बाहरी भाग होता है इसका अपवर्तनांक क्रोड़ से कम होता है
(३) आवरण - अधिपटन को बाहर से एक प्लास्टिक आवरण से दिखा जाता है
:-: प्रकाशिक तंतु की कार्य विधि -
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सर्वप्रथम प्रकाश की किरण को क्रोड़ के रास्ते से प्रवेश करवाया जाता है जब प्रकाश की किरण क्रोड़ से अधिपटन में प्रवेश करती है तो आपतन कोण क्रान्तिक कोण से ज्यादा रखा जाता है तो किरण पुण: उसी माध्यम में लोट जाती है इसी प्रकार प्रकाशिक तंतु मैं बार-बार पूर्ण आंतरिक परिवर्तन की घटना होती है एवं किरण को क्रोड़ के दूसरे रास्ते से बाहर निकाल लिया जाता है
:-: प्रकाशिक तंतु के उपयोग - > श्रव्य अथवा दृश्य संकेतों को स्थानांतरण करने में> चिकित्सालय में> एंडोस्कोपी में आंत्र की जांच के लिए> दूर-संचार में
-:- किसी गोलीय पृष्ठ द्वारा अपवर्तन - गोलीय पृष्ठ दो प्रकार का होता है(१) अवतल गोलीय पृष्ठ (२) उत्तल गोलीय पृष्ठ
उत्तल पृष्ठ के द्वारा अपवर्तन का अध्ययन -
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माना कि एक गोली उत्तल पृष्ठ जिसका धुव्र p है वक्रता केंद्र C व त्रिज्या R है इस उत्तल पृष्ठ से u दूरी पर एक बिम्ब को रखा गया है इस बिम्ब से निकलने वाली की गोलीय पृष्ठ पर बिंदु m पर आपतित होती है यदि बाहर का अपवर्तनांक n1 एवं गोलीय पृष्ठ का अपवर्तनांक n2 हो तो आपतित किरण विरल से सघन माध्यम में प्रवेश करते समय अभिलम्ब की तरफ झुक जाती है जहां i बिंदु पर हमें V दूरी पर प्रतिबिंब प्राप्त होगा यदि आपतन कोण r होतो ।
स्नेल के समीकरण द्वारा n1sin(i) = n2sin(r) समीकरण (1)
यदि कोणों के मान अल्प हो तो sin(थीटा) = 0 tan(थीटा) = 0 n1(i )= n2(r) समीकरण (2)
किसी भी त्रिभुज के बाह्य कोणों के मान दोनों अंत: कोणों के योग के बराबर होता है
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imp*-:- किसी पतले लेंस द्वारा अपवर्तन अथवा लेंस निर्माता (मेकर्स) सूत्र -
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माना कि एक पतला उत्तल लेंस जिसकी दो वक्रीय पृष्ठ LMN व LM'N है जिसकी वक्रता त्रिज्याए R1 व R2 लेंस के बाहर का अपवर्तनांक n1 व लेंस का अपवर्तनांक n2 है किसी बिंदु को सतह LMN से u दूरी पर रखा गया है
सर्वप्रथम बिम्ब वसे निकलने वाली किरण सतह LMN पर आपतित होती है व अपवर्तित होकर बिंदु I' पर मिलती है बिंदु I' की दूरी V' हो तो अपवर्तन सूत्र द्वारा
(n2/n1) - (n1/n2) = (n2 - n1)/R1 समी. (1)
LMN सतह से अपवर्तित किरण जब n2 अपवर्तनांक से n1 अपवर्तनांक में प्रवेश करती है तो सतह LM'N पर आपतित होती है एवं अपवर्तित होकर बिंदु i पर मिलती है अत: LM'N के लिए अपवर्तन सूत्र
(n1/V1) - (n2/V1) = (n1 - n2)/R2 समी. (2)
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-:- लेंस - लेंस एक समांगी पारदर्शी माध्यम होता है जिसकी दोनों अपवर्तक सतह वक्रीय अथवा एक सतह वक्रीय व दूसरी सतह समतल हो सकती है लेंस कहलाता है
लेंस दो प्रकार के होते हैं - (1) उत्तल लेंस - यह लेंस बीच में से मोटा व किनारों से पतला होता है
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यह लेंस आने वाली समांतर किरणो को एक बिंदु पर केंद्रित करता है अतः इसे अभिसारी लेंस भी कहा जाता है
=> उत्तम लेंस के प्रकार - उत्तर लेंस चार प्रकार के होते हैं(१) अभयोतल(द्वीउत्तल)
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(२) सम्योत्तलImage
(३) समतलोत्तल(समतल + उत्तल)
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(४) अवतलोतल(अवतल + उत्तल)
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:-: लेंस से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु -
(1) द्वारक - लेंस का आकार द्वारक कहलाता है
(2) प्रकाशिक केंद्र - लेंस के बीच की वह बिंदु जिससे गुजरने वाली प्रकाश की किरण बिना किसी विचलन के सीधी निकल जाती है, प्रकाशिक केंद्र कहलाता है इसे O से व्यक्त करते हैं
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(3) प्रथम फोकस f1 - वह बिंदु जिससे गुजरने वाली प्रकाश की किरण अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है प्रथम फोकस बिंदु कहलाता है
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Imp(4) द्वितीयक फोकस बिंदु - वह बिंदु जहां मुख्य अक्ष के समांतर आती हुई किरणें मिलती हैं अथवा मिलती हुई प्रतीत होती है द्वितीयक फोकस बिंदु कहलाता है
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(5) वक्रता केंद्र - लेंस के दोनों वक्र प्रष्टो का केंद्र वक्रता केंद्र कहलाता है
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(6) मुख्य अक्ष - लेंसो के दोनों वक्रता केंद्रो को मिलाने वाली रेखा मुख्य अक्ष कहलाती है
Note - लेंस के द्वितीयक फोकस बिंदु को मुख्य फोकस बिंदु कहा जाता है उत्तर लेंस की फोकस दूरी धनात्मक व अवतल लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक मानी जाती है
-:- लेंस से प्रतिबिंब बनाने की नियम -
पहला नियम - यदि कोई किरण प्रकाशिक केंद्र से बिना विचलन के निकल जाती है
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दूसरा नियम - यदि कोई किरण मुख्य अक्ष के समांतर आती है तो यह फोकस बिंदु से गुजरती है अथवा गुजराती हुई प्रतीत होती है
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तीसरा नियम - यदि कोई किरण फोकस बिंदु से गुजरती है तो यह मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है
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-:- लेंस के चिह्न परीपार्टी -
(1) सभी दूरियां प्रकाशिक केंद्र से माफी जाती है
(2) प्रकाश की दिशा में माफ़ी गई दूरी धनात्मक व प्रकाश की दिशा के विपरीत मापी गई दूरी ऋणात्मक ली जाती है
(3) मुख्य अक्ष के ऊपर की दूरी धनात्मक वह नीचे की दूरी ऋणात्मक ली जाती है
-:- लेंस से प्रतिबिंब निर्माण -
(1) उत्तम लेंस के लिए प्रतिबिंब निर्माण सारणी -
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-:- अवतल लेंस से प्रतिबिंब निर्माण - अवतल लेंस हमेशा आभाषी,सीधा व छोटा प्रतिबिंब बनाता है बनने वाला प्रतिबिंब बिम्ब की तरफ ही बनता है।
(1) बिम्ब अनंत पर हो
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(2) बिम्ब लेंस के सामने स्थित हो -
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Imp*-:- लेंस सूत्र अथवा लेंस के लिए u,v,f में संबंध - माना कि एक बिंदु AB है जिसकी ऊंचाई h1 है यह उत्तल लेंस के प्रकाशिक केंद्र से v दूरी पर स्थित है यदि उत्तल लेंस की फोकस दूरी f है,
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-:- लेंस की आवर्धन क्षमता (m) - लेंस द्वारा बनने प्रतिबिंब की ऊंचाई व बिम्ब की ऊंचाई का अनुपात लेंस की आवर्धन क्षमता कहलाती है इसे m से व्यक्त करते हैं
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V.imp*Q- यदि किसी लेंस को जलने डुबो दिया जाए तो f पर क्या प्रभाव पड़ेगा
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-:- दो पतले लेंस का संयोजन - माना कि दो पतले उत्तर लेंस जिनकी फोकस दूरीया f1, f2 है इनके प्रकाशिक केंद्र O1, O2 है एक दूसरे के अत्यधिक समीप हैं किसी बिंदुवत बिम्ब o को प्रथम लेंस से u दूरी पर रखा जाता है
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Imp*-:- लेंस की शक्ति - किसी भी लेंस द्वारा आपतित किरण को मोड़ने की क्षमता लेंस की शक्ति कहलाती है
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Imp*-:- प्रिज्म (Priam) -
प्रिज्म एक पारदर्शी सामांगी माध्यम होता है जिसमें दो समतल अपवर्तक पृष्ठ होती हैप्रिज्म की दोनों अपवर्तक पृष्ठ एक दूसरे के समांतर नहीं होनी चाहिएइन दोनों अपवर्तक प्रष्ठो के बीच बनने वाला कोण प्रिज्म कोण अथवा उपवर्तक कोण कहलाता है जिसको A से व्यक्त किया जाता हैअपवर्तक प्रष्ठ के तल के लंबवत गुजरने वाला क्षेत्रफल प्रिज्म का मुख्य परिच्छेद (क्षेत्रफल) कहलाता है
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-:- किसी प्रिज्म द्वारा अपवर्तन - माना कि एक त्रिभुजाकार प्रिज्म ABC है जिसका प्रिज्म कोण A है AB व AC अपवर्तक प्रष्ठ है सर्वप्रथम प्रकाश की एक किरण PQ सतह AB पर i कोण आपतित होती है एवं QR दिशा में अपवर्तित होकर RS दिशा में निर्गत हो जाती है यदि प्रिज्म का अपवर्तनांक n2 व प्रिज्म के बाहर का अपवर्तनांक n1 है
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आपतन कोण एवं विचलन कोण के मध्य ग्राफ - Image
-:- वर्ण विक्षेपण :- जब किसी श्वेत प्रकाश की किरण को पारदर्शी प्रिज्म पर आपतित की जाती है तो यह सात रंगों में विभक्त हो जाती है श्वेत प्रकाश का साथ रंगों में विभक्त होने की घटना वर्ण विक्षेपण कहलाती है
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-:- कोणीय विक्षेपण (थिटा) -बैंगनी रंग के कोणीय विचलन एवं लाल रंग के कोणीय विचलन का अंतर कोणीय विक्षेपण कहलाता है इसे थिटा() से व्यक्त करते हैं
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-:- विक्षेपण क्षमता (w) - कोणीय विक्षेपण एवं मध्य रंग (पीले रंग) के कोणीय विचलन का अनुपात विक्षेपण क्षमता कहलाती हैं
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-:- सूर्य के प्रकाश के कारण होने वाली प्राकृतिक घटनाएं
प्रकाश का प्रकीर्णन - जब सूर्य का प्रकाश पुंज वायुमंडल के गुणों पर अपतित होता है तो यह एक निश्चित दिशा में परिवर्तित न होकर भिन्न-भिन्न दिशाओं में वितरित को जाता है प्रकाश की यह घटना प्रकीर्णन कहलाती है=> प्रकीर्णन की मात्रा अपतित प्रकाश की तरंग धैर्य एवं वायुमंडल के गुणों के आकार पर निर्भर करती है=> रैले के अनुसार यदि कणों का आकार (a) तरंगधैर्य की तुलना में अधिक छोटा हो तो प्रकीर्णन की मात्रा तरंगधैर्य की चतुर्थ घात के जीत व्यु्क्रमानुपाती होती है इसे रेलवे का प्रकीर्णन नियम भी कहा जाता है (a<<<<तरंगधैर्य)प्रकीर्णन की मात्रा {व्यु्क्रमानुपाती} 1/(तरंगधैर्य)4
-:- प्रकीर्णन के कारण होने वाली घटनाए -
(1) आकाश का नीला रंग दिखाई देना - जब सूर्य का वेद प्रकाश वायुमंडल के कणों पर आपतित होता है तो रेल के अनुसार कणों का आकार (a) तरंगधैर्य की तुलना में अधिक छोटा हो तो प्रकीर्णन की मात्रा तरंगधैर्य की चतुर्थ घात के जीत व्यु्क्रमानुपाती होती है लाल रंग की तरंग धैर्य ज्यादा होने के कारण इसका प्रकीर्णन कम मात्रा में होता है परंतु नीले रंग की रंग धैर्य कम होने के कारण नीले रंग का प्रकीर्णन ज्यादा मात्रा में होता है एवं यह है आसमान में फैल जाता है वास्तव में बैंगनी रंग का प्रकीर्णन सबसे ज्यादा होता है परंतु हमारी आंखें बैंगनी रंग के लिए कम सुग्राही एवं नीले रंग के लिए ज्यादा सुग्राही होती है इसी कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है
(2) बादलों का श्वेत दिखाई देना - जब वायुमंडल में कणो का आकार तरंगधैर्य की तुलना में ज्यादा बढ़ा हो, जैसे वायुमंडल में वर्षा के कण, हिम के कण, धूल के कण, उपस्थित हो तो रैले प्रकीर्णन की घटना नहीं होती है इस अवस्था में सात रंगों का प्रकीर्णन समान मात्रा में होता है जिसके कारण बादल हमेशा श्वेत दिखाई देते हैं।
(3) सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल रंग अथवा रक्ताभ जैसा दिखाई देना -
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सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों को पृथ्वी के वायुमंडल तक पहुंचने में अत्यधिक दूरी तय करनी पड़ती है लाल रंग की तरंग धैर्य अधिक होने के कारण इसका प्रकीर्णन सबसे कम मात्रा में होता है अत: लाल रंग का प्रकीर्णन कम मात्रा में होने के कारण लाल रंग हमारी आंखों तक पहुंच जाता है एवं सूर्य हमें लाल जैसा दिखाई देता है
-:- इंद्रधनुष का बनना -सूर्य का श्वेत प्रकाश जब वर्षा की हल्की बूंदों पर आपतित होता है तो विक्षेपण पूर्ण आंतरिक परावर्तन अपवर्तन के संयुक्त प्रभाव के कारण रंगों की डीस्कनुमा संरचना प्राप्त होती है जिसे इंद्रधनुष कहा जाता है
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=> इंद्रधनुष बनने की सर्ते -(1) प्रेक्षक पीठ सूर्य की तरफ होनी चाहिए (2) सूर्य का प्रकाश चमकीला होना चाहिए(3) वर्षा के पश्चात आसमान साफ होना चाहिए(4) आसमान में वर्षा की हल्की बूंदे होनी चाहिए(5)
=> (1) इंद्रधनुष दो प्रकार का होता है प्राथमिक इंद्रधनुष व द्वितीयक इंद्रधनुष प्राथमिक इंद्रधनुष:- यह तीन चरणीय प्रक्रम होता है(2) इसमें दो बार अपवर्तन व एक बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है(3) इसमें लाल रंग बाहर की तरफ 42° पर बैंगनी रंग अंदर की तरफ 40° पर प्राप्त होता है(4) प्राथमिक इंद्रधनुष की कोणीय चौड़ाई 20° होती हैं
Imp*=> इंद्रधनुष दो प्रकार का होता है (1) प्रथम इंद्रधनुष :-=> यह तीन चरणीय प्रक्रम होता है=> इसमें दो बार अपवर्तन व एक बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है=> इसमें लाल रंग बाहर की तरफ से 42° पर व बेंगनी रंग अंदर की तरफ से 40° पर प्राप्त होता है=> प्राथमिक इंद्रधनुष की चरणीय चौड़ाई 2° होती है
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=> प्राथमिक इंद्रधनुष द्वितीयक इंद्रधनुष के नीचे बनता है=> प्राथमिक इंद्रधनुष द्वितीयक इंद्रधनुष से ज्यादा चमकीला होता है
(2) द्वितीयक इंद्रधनुष :- —> यह चार चरणीय प्रक्रम है—> इसमें दो बार अपवर्तन व दो बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है—> इसने बैंगनी रंग बाहर की तरफ 53°पर व लाल रंग अंदर की तरफ 50° पर---> इसमें कोणीय चौड़ाई 3° की होती है
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---> द्वितीयक इंद्रधनुष प्रथम इंद्रधनुष के ऊपर बनता है---> द्वितीयक इंद्रधनुष प्राथमिक इंद्रधनुष की तुलना में कम चमकीला होता है।
-:- प्रकाशिक उपकरण - वह उपकरण जिनकी सहायता से वस्तुओं को आर्वधित एवं स्पष्ट देखा जा सकता है प्रकाशिक उपकरण कहलाता है
=> प्रकाशिक उपकरण निम्न प्रकार के होते है।
(1) नेत्र :- नेत्र की एक गोला का गंद की भाति संरचना होती है, इसके आगे का भाग अत्यधिक वक्रीय होता है जो एक पारदर्शी परत से ढका होता है जिसे कॉनिया कहा जाता है,कॉनिया के पीछे एक द्रव भरा होता है जिसे जलीय द्रव कहा जाता है जलीय द्रव के पीछे क्रिस्टलिय उत्तल लेंस होता है जिसके बीच का भाग कठोर वह किनारे से नर्म होता है लेंस दोनों तरफ से पक्ष्माभी पेशियो द्वारा जुड़ा होता है पक्ष्माभी पेशियों द्वारा लेंस की फोकस दूरी को परिवर्तित किया जा सकता हैलेंस के पीछे भी एक द्रव भरा होता है जिसे काचाभ द्रव कहा जाता है काचाभ द्रव के पीछे के भाग को रेटिना कहां जाता है
--> समंजन क्षमता :- पक्ष्माभी पेशियो द्वारा नेत्र के लेंस की फोकस दूरी को परिवर्तित करने की क्षमता आंख की समंजन क्षमता कहलाती है
--> निकट बिंदु :- वह न्यूनतम दूरी जिसे नेत्र द्वारा स्पष्ट देखा जा सकता है आंख का निकट बिंदु बनाता है इसका मान 25cm होता है जिसे D से व्यक्त करते हैं
--> दूर बिंदु :- वह अधिकतम दूरी जिससे किसी वस्तु को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है दूर बिंदु कहलाता है आंख का दूर बिंदु अनंत होता है।
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=> नेत्र की क्रियाविधि - बिम्ब से निकलने वाली किरण सर्वप्रथम कॉनियो पर आपतित होती है जिसका अधिकांश अपवर्तन कॉनिया द्वारा कर दिया जाता है कॉनिया के पश्चात किरण लेंस पर आपतित होती है लेंस द्वारा वस्तु का प्रतिबिंब वास्तविक उल्टा वह छोटा रेटीना पर प्राप्त होता है यदि कोई बिम्ब नेत्र के समीप होता है तो पक्ष्माभी पेशिया अधिक तनाव की अवस्था में रहती है यदि बिम्ब दूर होता है तो पक्ष्माभी पेशियों शिथिल/लचीली अवस्था में रहती हैं आंख पर बनने वाले प्रतिबिंब का आकार कोण पर निर्भर करता है
=> नेत्र दोष (eye defict) - नेत्र दोष 4 प्रकार का होता है
(a) निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) - इस नेत्र दोष में पास की वस्तु दिखाई देती हैं परंतु दूर की वस्तु साफ दिखाई नहीं देती हैदूर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटीना से पहले बनता है इस दोष को दूर करने के लिए अपसारी अथवा अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है
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(b) दूर दृष्टि दोष(हाइपरमेट्रोपिया) - > इस दोष में दूर की वस्तु साफ दिखाई देती है परंतु पास की वस्तु साफ दिखाई नहीं देती है> पास स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटीना के पीछे बनता है> इस दोष को हाइपरमेट्रोपिया भी कहते हैं> इस दोस्त को दूर करने के लिए अभीसारी अथवा उत्तर लेंस का प्रयोग किया जाता है
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(c) जरा दृष्टि दोष(प्रेस वायोपिया) - उम्र बढ़ने के साथ-साथ पक्ष्माभी पेशियों उतनी ही प्रभावी नहीं रहती हैं इसका लचीलापन कम हो जाता है एवं अधिक आयु वाले व्यक्तियों का निकट बिंदु 200cm पर पहुंच जाता है जब अधिक आयु का व्यक्ति 25cm पालक चेयर किसी बिंदु को देखता है तो इसका प्रतिबिम्ब धुंधला दिखाई देता हैइस दोष को दूर करने के लिए अभीसारी लेंस का उपयोग किया जाता है Imp*(d) अति बिंदु दोष - इस दोष में व्यक्तियों को सामने स्थित क्षेतिज एवं उर्ध्वाधर रेखाएं एक साथ इस स्पष्ट दिखाई नहीं देती है इस दोष के कारण नेत्र लेंस की फोकस दूरियों में परिवर्तन अथवा नेत्र कॉनिया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता हैइस दोष को दूर करने के लिए एक विशेष प्रकार का बेलनाकार लेंस काम लिया जाता है
(2) सरल सूक्ष्मदर्शी :- वस्तुओं का आवर्धित प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है
सरल सूक्ष्मदर्शी का सिद्धांत - जब किसी वस्तु ओ को उत्तल लेंस के प्रकाशिक केंद्र व फोकस के बीच रखा जाता है तो वस्तुओं का आभासी सीधा व बड़ा प्रतिबिंब प्राप्त होता है
सरल सूक्ष्मदर्शी की बनावट - सरल सूक्ष्मदर्शी में एक कम फोकस दूरी वह छोटे द्वारक का उत्तल लेंस होता है जिसके प्रकाशिक केंद्र एवं फोकस के बीच एक बिम्ब AB को रखा जाता है एवं उत्तल लेंस के द्वारा आभासी सीधा वह बड़ा A'B' प्रतिबिंब प्राप्त होता है
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Imp*(3) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी :- सरल सूक्ष्मदर्शी से बड़ा प्रतिबिंब बनाने के लिए संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग किया जाता है इसमें दो या दो से अधिक उत्तल लेंसो का संयोजन काम में लिये जाने के कारण इसको संयुक्त सूक्ष्मदर्शी कहा जाता है
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की बनावट - इसमें एक बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर कम फोकस दूरी व छोटे द्वारा का उत्तल लेंस होता है इसको वस्तु के सामने रखा जाता है अतः इसे अभीदृश्य लेंस कहा जाता है बेलनाकार नली के दूसरे सिरे पर एक छोटी नली लगी होती है जिस पर अधिक फोकस दूरी वह बड़े द्वारक का उत्तल लेंस लगा होता है यह लेंस नेत्रिका के सामने होता है अतः इसे नेत्रिका कहा जाता है इसको आगे पीछे किसका ने की व्यवस्था होती है
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संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की कार्यविधि - सर्वप्रथम किसी बिम्ब AB को अभीदृश्यक लेंस के 2f० व f० के मध्य रखा जाता है अभीदृश्य लेंस द्वारा किसी बिंदु का प्रतिबिंब वास्तविक उल्टा व बड़ा 2f० व अनंत के बीच प्राप्त होता है बनने वाला प्रतिबिंब A'B' नेत्रिका के लिए बिम्ब का कार्य करता है नेत्रिका को आगे पीछे किसकाकर इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि प्रतिबिंब A'B' इसके प्रकाशिक केंद्र व फोकस बिंदु के बीच आ जाए तो नेत्रिका द्वारा इसका अंतिम प्रतिबिंब आभासी सीधा वह बड़ा A''B'' प्राप्त होता है परंतु बिम्ब A'B' की तुलना में अंतिम प्रतिबिंब आभासी व उल्टा प्राप्त होता है
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संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की स्थितियां -
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(4) दूरदर्शी :- दूर स्थित वस्तुओं का स्पष्ट एवं आवर्धित प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए दूरदर्शी का प्रयोग किया जाता हैEx- सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, तारे आदि को देखने के लिए
दूरदर्शी दो प्रकार का होता है(1) अपवर्तक दूरदर्शी अथवा खगोलीय दूरदर्शी - इसमें एक बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर अधिक फोकस दूरी हुए बड़े द्वारक का उत्तल लेंस होता है यह बिम्ब की तरह होता है इसे अभीदृश्यक लेंस कहा जाता हैइस बेलनाकार नली के दूसरे सिरे पर एक छोटी नन्ही लगी होती है जिस पर कम फोकस दूरी व छोटे द्वारा का उत्तल लेंस लगा होता है,नेत्र के सामने होता है जिसे नेत्रिका कहा जाता है इसे दंतुर दंड चक्र व्यवस्था द्वारा आगे पीछे खिसका सकते है।
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दूरदर्शी की कार्य विधि - सर्वप्रथम बिन अभीदृश्यक लेंस से अनंत दूरी पर स्थित होता है अभीदृश्यक लेंस द्वारा अनंत पर स्थित बिंब का वास्तविक उल्टा वह छोटा प्रतिबिंब A'B' प्राप्त होता है जो फोकस पर बनता है बनने वाला प्रतिबिंब नेत्रिका के लिए बिंब का कार्य करता है नेत्रिका को आगे पीछे खिसका कर इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि यह प्रकाशिक केंद्र व फोकस के बीच आजाए नेत्रिका द्वारा अंतिम प्रतिबिंब आभासी सीधा वह बड़ा A''B'' प्राप्त होता है जो बिंब की तुलना में उल्टा व बड़ा होता है
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=> दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता -
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=> दूरदर्शी की स्थितियां -
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(2) परावर्तक दूरदर्शी :- अपवर्तक दूरदर्शी द्वारा चमकीला प्रतिबिंब बनाने एवं दूरदर्शी की विवेदन क्षमता बढ़ाने के लिए अपवर्तक दूरदर्शी के अभीदृश्यक का आकार बड़ा होना चाहिए बड़े द्वारा का अभीदृश्यक बनाना कठिन होता है एवं इसमें वर्ण विपथन एवं गोलीय विपथन का दोष उपस्थित होता है अतः परावर्तक दूरदर्शी में इस कमी को दूर करने के लिए परवलयाकार अवतल दर्पण का प्रयोग किया जाता है
=> परावर्ती दूरदर्शी की संरचना - परावर्ती दूरदर्शी में अभीदृश्यक अधिक फोकस दूरी व बड़े द्वारक का अवतल दर्पण होता है जो एक अधिक फोकस दूरी व बड़े द्वारक का अवतल दर्पण होता है जो एक चौड़ी नली के सिरे पर लगा होता है नली का खुला सिरा वस्तु की ओर किया जाता है अवतल दर्पण की फोकस से कुछ पहले एक छोटा समतल दर्पण अवतल दर्पण की मुख्य अक्ष से 45° पर रखा होता है दूरदर्शी की नली के पास में एक पतली छोटी नली लगी होती है जिस पर कम फोकस दूरी छोटे द्वारा का उत्तल लेंस लगा होता है जिसे नेत्रिका कहा जाता है
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परावर्तक दूरदर्शी की कार्यविधि - दूर स्थित वस्तुओं से आने वाली समांतर किरणें पहले अवतल दर्पण पर स्थित होते हैं अवतल दर्पण इन किरणों को परावर्तित करके फोकस पर केंद्रित करता है यह किरण फोकस पर केंद्रित होने से पहले समतल दर्पण पर स्थित होती है समतल दर्पण इन किरणों को परावर्तित करके वस्तु AB का वास्तविक उल्टा वह छोटा प्रतिबिंब A'B' बनता है नेत्रिका को आगे पीछे किसका कर इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि यह प्रतिबिंब नेत्रिका के प्रकाशित केंद्र व फोकस के बीच आ जाए तो नेत्रिका द्वारा अंतिम प्रतिबिंब आभासी सीधा व बड़ा A''B'' प्राप्त होता है
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Imp*Q - (1) अपवर्तित दूरदर्शी एवं परावर्तित दूरदर्शी में अंतर ?Ans - अपवर्तित दूरदर्शी - अपवर्तित दूरदर्शी की विवेदन क्षमता कम होती हैइसमें अभीदृश्यक का आकार बड़ा व वजन में भारी मूल्यवान होता हैयह अपवर्तन घटना पर आधारित हैइसमें उत्तल लेंस अभीदृश्यक का कार्य करता हैइसमें वर्ण विपथन एवं गोलीय विपथन का ठोस उपस्थित होता है
परावर्तित दूरदर्शी - परावर्तित दूरदर्शी की विवेदन क्षमता ज्यादा होती हैइसका अभीदृश्यक बड़ा हल्का व कम कीमत का होता हैयह परावर्तन घटना पर आधारित होता हैइसमें अभीदृश्यक का कार्य अवतल दर्पण करता हैइसमें वर्ण विपथन एवं गोलीय विपथन का ठोस उपस्थित नहीं होता है
वर्ण विपथन :- जिसमे प्रकाश चमकीला नहीं होता है वर्ण विपथन कहलाता है
गोलीय विपथन :- जिसमें प्रकाश चमकीला होता है गोलीय विपथन कहलाता है
V.imp*Q - यदि एक बिम्ब का अपवर्तनांक cot(A/2) है एवं प्रिज्म कोण A है तो न्यूनतम विचलन कोण का मान बताइए?
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Keyword:-
◆ प्रकाशिकी (Optics)◆
( 1) - किरण प्रकाशिकी
भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत प्रकाश की प्रकृति एवं प्रकाश के गुणों का अध्ययन किया जाता है
प्रकाशिकी की दो शाखाएं होती है
( 1) - किरण प्रकाशिकी (2) - तरंग प्रकाशिकी
( 1) - किरण प्रकाशिकी (Rey Optics) : - इस शाखा के अंतर्गत हम प्रकाश की प्रकृति का अध्ययन करते हैं
न्यूटन ने कनिकावाद सिद्धांत दिया जिसमे बताया कि प्रकाश कणीय प्रकृति रखता है एवं प्रकाश की घटनाएं परावर्तन अपवर्तन कर यह प्रकृति का समर्थन करती है
(2) - तरंग प्रकाशिकी : - इस शाखा के अंतर्गत हम प्रकाश की तरंग प्रकृति का अध्ययन करते हैं हाइगेन ने प्रकाश का तरंग सिद्धांत दिया जिसमें बताया कि प्रकाश तरंग प्रकृति दर्शाता है
प्रकाश की व्यतिकरण, विवर्तन,ध्रुवण प्रकाश की तरंग प्रकृति का समर्थन करती है
★प्रकाश (light) - प्रकाश एक विद्युत चुंबकीय तरंग है
प्रकाश के 7 रंग होते हैं (जिसको हम सामान्यतः समझने के लिए "VIBGYOR" कहते हैं )
V - violet
I - Indigo
B - blue
G - green
Y - Yellow
O - Orange
R - Red
➡ प्रकाश वस्तुओं को देखने के काम आता है!
➡ प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 400nm से 700nm होती है
➡ हमारी आंखें सबसे अधिक संवेदनशील पीले रंग के लिए होती है एवं सबसे कम संवेदनशील लाल व बैंगनी रंग के लिए होती है
➡ प्रकाश की अनुभूति आंखों के द्वारा की जाती है
➡ प्रकाश का पथ किरण कहलाता है।
➡ प्रकाश को किसी सतह आपतित किया जाता है तो तीन प्रकार की प्रक्रिया होती है
- प्रकाश का कुछ भाग अवशोषित हो जाता है, और कुछ भाग परावर्तित हो जाता है व शेष भाग अपवर्तित हो जाता है
★ प्रकाश की घटनाएं
(1) - परावर्तन (Reflection) :- जब किसी प्रकाश की किरण किसी परावर्तक सतह पर आपतित होती है तो आपतन के पश्चात वापस उसी माध्यम में लौट जाती है प्रकाश का टकराकर वापस उसी माध्यम में लौटना यह घटना परावर्तन कहलाती है।
(2) - परावर्तक सतह :- वह सतह जिस पर आपतित प्रकाश पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाता है तो यह सतह परावर्तक सतह कहलाती है
(3) - आपतित किरण :- परावर्तक सतह पर आने वाली किरण आपतित किरण कहलाती है
(4) - परावर्तित किरण :- परावर्तक सतह पर टकराकर पुनः उसी माध्यम में लौटने वाले किरण परावर्तित किरण कहलाती है
(5) - अभिलंब (N) :- परावर्तक सतह पर लंबवत रेखा अभिलंब कहलाती है यह आपतित किरण व परावर्तित किरण के मध्य उपस्थित होता है
(6) - आपतन कोण (i) :- अभिलम्ब व आपतित किरण के मध्य बनने वाला कोण आपतन कोण कहलाता है
(7) - परावर्तक कोण (r) :- अभिलम्ब व परावर्तित किरण के बीच बनने वाला कोण परावर्तक कोण कहलाता है
★ विचलन कोण (∆) :- आपतित किरण की मूल दिशा एवं परावर्तित किरण के बीच बनने वाला कोण विचलन कोण कहलाता है
Note - इस टॉपिक को नीचे फोटो में समझाया गया है
Important question
इमेज
★ प्रतिबिम्बों की संख्या :- प्रतिबिंब की संख्या दो दर्पण के बीच के कोण पर निर्भर करती है
n = 360/θ
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Case -1
यदि n का मान सम हो तो प्रतिबिंब की संख्या = (n-1)
Case -2
यदि n का मान विषम हो तो
(१) वस्तु सम्मित अवस्था में हो
प्रतिबिंब की संख्या = n-1
(२) वस्तु असम्मित अवस्था में हो
प्रतिबिंब की संख्या = n
important question
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परावर्तन के नियम :- परावर्तन के दो नियम होते हैं
(1) - परावर्तन का प्रथम नियम - आपतन कोण का मान परावर्तन कोण के बराबर होता है
(i) =(r)
(2) - परावर्तन का द्वितीय नियम - आपतित किरण परावर्तित किरण अभिलंब तीनों एक ही तल में स्थित होते हैं
* परावर्तन से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु :-
(1) परावर्तन की घटना में कभी भी प्रकाश की चाल आवृत्ति,तरंग धैर्य नहीं बदलती है परंतु तीव्रता में परिवर्तन होता है जो पृष्ठ की प्रकृति पर निर्भर करती है
(2) - परावर्तन की घटनाएं सभी सतह से संभव होती हैं चाहे वह सतह समतल हो (उत्तल हो या अवतल हो)
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Important
(3) - यदि कोई किरण अभिलंब से आते हुए किसी दर्पण पर आपतित होती है तो आपतन के पश्चात यह अपने पथ का दौरान करती है इस अवस्था में आपतन व परावर्तन कोण के मान शुन्य (0) होते हैं
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(4) - किसी भी बिम्ब से अनंत किरणें निकलती हैं परंतु प्रतिबिंब निर्माण के लिए कम से कम 2 किरणों का मिलना आवश्यक है
(5) - किसी भी दर्पण को पानी में डूबने पर उस की फोकस दूरी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि फोकस दूरी गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या पर निर्भर करती है
(6) -
समतल दर्पण आभाषी बराबर सीधा उत्तल दर्पण आभाषी छोटा सीधा अवतल दर्पण। [वास्तविक ] [उल्टा ] [ बड़ा ]
[आभाषी ] [सीधा ] [ छोटा ]
* परावर्तन के प्रकार :- परावर्तन दो प्रकार का होता है
(1) - नियमित परावर्तन
(2) - विसरित परावर्तन
(1) - नियमित परावर्तन :- जब किसी प्रकाश को किसी सतह पर आपतित किया जाता है तो आपतित प्रकाश परावर्तित होकर एक निश्चित दिशा में का गमन करता है तो प्रकाश की यह घटना नियमित परावर्तन कहलाती है
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(2) - विसरित परावर्तन :- जब प्रकाश को खुरदरी सतह पर डाला जाता है तो वह परावर्तित प्रकाश सभी दिशाओं में फैल जाता है तो प्रकाश के सभी दिशाओं में फैलने की घटना विसरित परावर्तन कहलाती है
आकाश का नीला रंग विस्तृत परावर्तन के कारण होता है
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*दर्पण*(Mirror)
पोलिस की गई वह सतह को परावर्तक का कार्य करती है तर्पण कहलाता है
दर्पण दो प्रकार का होता है
(1) - समतल दर्पण
(2) - गोलीय दर्पण
(1) - समतल दर्पण :- यदि परावर्तक सतह समतल हो तो वह समतल दर्पण कहलाता है
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समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब निर्माण :-
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- समतल दर्पण के द्वारा वस्तु का आभासी सीधा वह बराबर आकार का प्रतिबिंब बनता है
- समतल दर्पण में वस्तु का दायां भाग बाया व बाया भाग दाया दिखाई देता है यह घटना पाश्र्व प्रतिलोमन कहलाती है
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★ गोलीय दर्पण :- गोलीय दर्पण एक खोखले गोले का भाग होता है जिसको काटकर गोलीय दर्पण का निर्माण किया जाता है
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं
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(1) - अवतल दर्पण (2) - उत्तल दर्पण
(1) - अवतल दर्पण :- यदि परावर्तन की घटना आंतरिक सतह से होती हैं तो दर्पण अवतल दर्पण कहलाता है
(2) - उत्तल दर्पण :- यदि परावर्तन की घटना बाह्य सतह पर हो तो दर्पण उत्तल दर्पण कहलाता है
★ गोलीय दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण -
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( 1 ) :- द्वार (AB) - दर्पण का आकार द्वारक कहलाता है जहां तक कि उसमें किरणे प्रवेश करती है
( 2 ) :- ध्रुव (p) - दर्पण का मध्य बिंदु ध्रुव कहलाता है इसे P से व्यक्त करते हैं
( 3 ) :- वक्रता केंद्र (C) - गोलीय दर्पण का केंद्र वक्रता केंद्र कहलाता है जिससे काटकर दर्पण बनाया गया है इसे C से व्यक्त करते हैं
( 4 ) :- वक्रता त्रिज्या(R) - गोलीय दर्पण की त्रिज्या वक्रता त्रिज्या कहलाती है इसे R से व्यक्त करते हैं
*imp*
( 5 ) :- फोकस बिंदु - मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली किरणें दर्पण से परावर्तन के पश्चात जिस बिंदु पर मिलती है अथवा मिलती हुई प्रतीत होती हैं वह बिंदु फोकस बिंदु कहलाता है
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( 6 ) :- फोकस दूरी :- फोकस बिंदु से ध्रुव के बीच की दूरी फोकस दूरी कहलाती है इसे f से व्यक्त करते हैं
★ दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण के नियम
1 - यदि कोई किरण मुख्य अक्ष के समांतर आती है तो दर्पण से परावर्तन के पश्चात फोकस बिंदु से गुजरती है अथवा गुजरती हुई प्रतीत होती है
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2 - यदि कोई किरण फोकस बिंदु से गुजरती हुई दर्पण पर आप भी तो होती है तो यह मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है
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3 - यदि कोई किरण वक्रता केंद्र से होते हुए दर्पण पर आपकी तो होती है तो परावर्तन के पश्चात यह अपने पथ का अनुसरण या दौरान करती है
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4 - यदि कोई किरण ध्रुव ऊपर जितने कोण से आपतित होती है तो यह इतनी ही कौन से परावर्तित हो जाती है
★ दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण★
[1] - अवतल दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण -
*अवतल दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण* |
क्र/सः | बिम्ब | प्रतिबिम्ब | प्रतिबिम्ब की प्रकृति | आवर्धन क्षमता |
1 | ∞ | F | वास्तविक,उल्टा,बहुत छोटा | M<<-1 |
2 | ∞ - F | F - C | वास्तविक,उल्टा,छोटा | M< -1 |
3 | C | C | वास्तविक,उल्टा,बराबर | M = -1 |
4 | F - C | C - ∞ | वास्तविक,उल्टा,बड़ा | -M> 1 |
5 | F | ∞ | वास्तविक,उल्टा,बहुत बड़ा | -M >>1 |
6 | F - P | दर्पण के पीछे | आभासी,सीधा,बड़ा | +M>>1 |
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-:- उत्तल दर्पण से प्रतिबिंब निर्माण : - उत्तल दर्पण हमेशा आभासी एवं छोटा प्रतिबिंब बनाता है
(1) - जब प्रतिबिंब उत्तल दर्पण के सामने स्थित हो
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(2)- यदि प्रतिबिंब उत्तल दर्पण से अनंत पर स्थित हो
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-:- चिन्ह परिपाटी :-
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Q- वास्तविक प्रतिबिंब एवं आभासी प्रतिबिंब में अंतर ?
वास्तविक प्रतिबिंब -
(1)- वास्तविक प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है
(2)- वास्तविक प्रतिबिंब दर्पण के सामने बनता है
(3)- वास्तविक प्रतिबिंब में किरणें मिलती है
(4)- वास्तविक प्रतिबिंब की आवर्धन क्षमता(m) ऋण आत्मक होती है
आभासी प्रतिबिंब :- (1)- आभासी प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है
(2)- आभासी प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है
(3)- आभासी प्रतिबिंब में किरण मिलती हुई प्रतीत होती है
(4)- आभासी प्रतिबिंब की आवर्धन क्षमता(m) धनात्मक होती है
imp*
-:- फोकस दूरी(f) एवं वक्रता त्रिज्या (R) में संबंध :- माना की एक किरण mm' मुख्य अक्ष के समांतर आती हुई दर्पण पर बिंदु m' पर आपतित होती हैं आपतन के पश्चात फोकस बिंदु(F) से गुजरती हैं एक किरण जो वक्रता केंद्र से होते हुए दर्पण पर आपतित होती है तो अपने पथ का अनुसरण करती है माना कि दर्पण का द्वार छोटा है एवं M'P रेखा मुख्य अक्ष पर लंबवत है
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दर्पण समीकरण अथवा दर्पण के लिए u, v, f में सम्बन्ध -
माना कि एक बिंब A, B जिसकी ऊंचाई h1 है अवतल दर्पण के सामने अनंत पर C बीच स्थित है, ध्रुव से बिंब की दूरी u है, अवतल दर्पण के द्वारा इस प्रतिबिंब A',B' वास्तविक, उल्टा व छोटा f व c के मध्य प्राप्त होता है प्रतिबिंब को ध्रुव से दूरी v व अवतल दर्पण की फोकस दूरी व वक्रता त्रिज्या f व R है
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दर्पण की आवर्धन क्षमता (m) - प्रतिबिंब की ऊंचाई एवं बिंब की ऊंचाई का अनुपात आवर्धन क्षमता(m) कहलाता है
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Note - वास्तविक प्रतिबिंब के लिए m का मान ऋणात्मक वह आभासी प्रतिबिंब के लिए m का मान धनात्मक होता है।
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-:- दर्पण के उपयोग -
(1)- समतल दर्पण - श्रंगार करने में,
(2)- अवतल दर्पण - सेविंग बनाने में( नाई की दुकान में), दंत चिकित्सक के रूप में, वाहनो की हेडलाइट में, परावर्तक दूरदर्शी मै,
(3)- उत्तल दर्पण- वाहनों मैं पार्श्व(साइड) दर्पण के रूप में
-:- अपवर्तन :- जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है माध्यमों की प्रथककारी सतह पर अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती है तो प्रकाश का अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाना अपवर्तन कहलाता है
=> अपवर्तन की दो स्थितिया होती है
(1) जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सगन माध्यम में प्रवेश करती है तो अभिलंब की तरफ झुक जाती है एवं इस स्थिति में आपतन कोण अपवर्तन कोण से बडा होता है
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(2) जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करता है तो अभिलंब से दूर हट जाती है इस स्थिति में अपवर्तन कोण आपतन कोण से बडा होता है
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=> अपवर्तन का कारण - अलग-अलग माध्यम में प्रकाश के वेग का अलग अलग होना अपवर्तन का कारण है
जब प्रकाश का वेग घट जाता है तो किरण अभिलंब की तरफ झुक जाती है जब प्रकाश का वेग बट जाता है तो किरण अभिलंब से दूर हट जाती है
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नोट:- अपवर्तन की घटना में कभी भी प्रकाश की आर्वति नहीं बदलती है परंतु प्रकाश का वेग, तरंग धैर्य व तीव्रता में परिवर्तन आता है
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-:- अपवर्तन के नियम -
=> आपतित किरण, अपवर्तित कीरण, अभिलम्ब तीनों एक ही तल में स्थित होते हैं
=> इसे स्नेल का नियम भी कहते हैं इस नियम के अनुसार आपतन कोण की ज्या (sin0) एवं अपवर्तन कोण की ज्या का मान नियत रहता है अथवा अपवर्तनांक एवं आपतन कोण की ज्या का गुणनफल नियत रहता है
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-:- अपवर्तनांक (n) - निर्वात में प्रकाश का वेग एवं माध्यम में प्रकाश के वेग का अनुपात अपवर्तनांक कहलाता है अपवर्तनांक यह व्यक्त करता है कि प्रकाश का वेग माध्यम में किस कारण से घटता है
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=> प्रथम माध्यम में प्रकाश का वेग -
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=> निर्वात में प्रकाश का वेग -
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-:- निरपेक्ष अपवर्तनांक - वह अपना मुझसे वायु के निरपेक्ष मापा जाता है निरपेक्ष अपवर्तनांक कहलाता है
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-:- आपेक्षिक अपवर्तनांक :- यदि किसी माध्यम का अपवर्तनांक किसी दूसरे माध्यम के सापेक्ष मापा जाता है तो वह आपेक्षिक अपवर्तनांक कहलाता है
=> प्रथम माध्यम का दूसरे माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक -
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-:- अपवर्तन के उदाहरण -
(1) तारों का चमकना अथवा टिमटिमाना - तारों का चमकना अपवर्तन की घटना पर आधारित होता है जब तारों से निकलने वाले किरण पृथ्वी के बाह्य मंडल से गमन करती हुई हमारी आंखों तक पहुंचती है तो वायुमंडल की पर तो का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होने के कारण अपवर्तन की घटना होती है जिससे तारे चमकते हुए दिखाई देते हैं
(2) पानी के पेंदे में रखे सिक्के का ऊपर उठे हुए दिखाई देना -
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वस्तु का ऊपर उठा दिखाई देना अपवर्तन का कारण होता है
अभिलम्ब विस्थापन - वस्तु की वास्तविक स्थिति एवं आभाषी स्थिति के बीच की दूरी अभिलम्ब विस्थापन कहलाता है
(3) किसी वस्तु अथवा छड़ का मुदा हुआ दिखाई देना जल में -
छड़ से निकलने वाली किरण जब सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो अभिलम्ब से दूर हट जाती है एवं किरण प्रेक्षक की आंखों में तिरछी पहुंचती है फलस्वरुप हम वस्तु अथवा छड़ को मुड़ी हुई देखते हैं
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(4) किसी कांच की पट्टी का से अपवर्तन एवं पार्श्विक विस्थापन -
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जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से आयताकार काच की पट्टीका से गुजरती है तो इसका दो बार अपवर्तन होता है प्रथम वायु से कांच, दितीय कांच से वायु में प्रवेश करते समय इस स्थिति में आपतित किरण वह निर्गत किरण की दिशा एक दूसरे के समांतर होती है एवं आपतन कोण का मान निर्गत कोण के बराबर होता है
पार्श्विक विस्थापन - आपतित किरण की दिशा एवं निर्गत किरण की दिशा के बीच की लंबवत दूरी पार्श्विक विस्थापन कहलाता हैं
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(5) सूर्य का सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के पश्चात तक दिखाई देना -
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पृथ्वी के समीप वाली वायु का घनत्व उसके ऊपर वाली वायु की तुलना में ज्यादा होता है अत: प्रथ्वी के समीप वाली वायु सघन की तरह एवं ऊपर वाली वायु विरल की तरह कार्य करती है जब सूर्य की किरण निर्वात से चलकर वायुमंडल के विरल से सघन वायु की सतह से गुजरती है तो अभिलंब की तरफ झुक जाती है एवं इस कारण प्रेक्षक को सूर्य अपनी वास्तविक स्थिति से ऊपर दिखाई देता है अत: सूर्य उदय होने से पहले दो मिनट तथा अस्त होने से दो मिनट पश्चात तक दिखाई देता है अत: संपूर्ण दिन में 4 मिनट का अंतर महसूस होता है
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-:- पूर्ण आंतरिक परावर्तन (TIP) -
जब प्रकाश की किरण सघन से विरल माध्यम में परिवेश करती है तो अभिलम्ब से दूर हट जाती है एवं इस स्थिति में अपवर्तन कोण,आपतन कोण से ज्यादा होता है आपतन कोण का मान बढ़ने पर अपवर्तन कोण का मान भी बढ़ता है परंतु एक स्थिति ऐसी आती है जब परावर्तित किरण समकोण पर होती है।
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-:- क्रान्तिक कोण (थीटाc) - जब प्रकाश की किरण सघन से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो वह आपतन कोण जिस पर आप परिवर्तित किरण अभिलम्ब से 90° का कोण बनाती हैं क्रान्तिक कोण कहलाता है
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-:- पूर्ण आंतरिक परिवर्तन -
जब प्रकाश कि किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो यदि अपवर्तन कोण का मान क्रान्तिक कोण से ज्यादा है तो अपवर्तित किरण पुण: उसी माध्यम में लोट आती है अपवर्तित किरण का पुण: उसी माध्यम में लोट आना पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहलाता है
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=> पूर्ण आंतरिक परावर्तन की शर्तें -
(1) प्रकाश की किरण सघन से विरल माध्यम में प्रवेश करती है
(2) आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से अधिक होता है (i >थिटाc)
:-: भिन्न - भिन्न माध्यमो के लिए क्रान्तिक कोण ज्ञात करना -
(1) - कांच से वायु के लिए
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(2) - यदि प्रकाश की किरण जल से वायु में प्रवेश करें तो क्रान्तिक कोण -
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(3) - यदि प्रकाश की किरण काच से जल में प्रवेश करें -
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Note :- यदि कोई भी माध्यम नहीं दिया जाए तो दूसरे माध्यम की जगह वायु माना जाता है
:-: पूर्ण आंतरिक परावर्तन के उद्धारण -
(1) हीरे का चमकना -
हीरे का चमकना पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना पर आधारित होता है धीरे का अपवर्तनांक 2.42 क्रान्तिक कोण 24.41° होता है हीरे की कटिंग इस प्रकार की जाती है कि इसकी सतह से बाहर निकलने वाले किरण का अपवर्तन कोण क्रान्तिक कोण से ज्यादा हो इस प्रकार हीरे में पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना बार-बार होती है जिसे हीरे में जितना अधिक पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है उसकी चमक एवं कीमत दोनों ही ज्यादा होती है
नोट:- पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना में प्रकाश की तीव्रता अथवा उर्जा में कोई हानी नहीं होती है अतः बनने वाला प्रतिबिंब बिंब की तरह चमकीला ही बनता है
(2) मरीचिका -
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रेगिस्तानी क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में पृथ्वी के समीप वाली वायु का घनत्व घट जाता है एवं इसके ऊपर वाली वायु का घनत्व बड़ जाता है अतः ऊपर वाली सघन एवं नीचे वाली वायु विरल का कार्य करती है,यदि किसी बिम्ब से निकलने वाली किरण सघन से विरल माध्यम में प्रवेश करती है एवं आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से ज्यादा होने पर प्रेक्षक को उस बिंब का उसके नीचे उल्टा प्रतिबिंब प्राप्त होता है या ऐसा प्रतीत होता है कि बिंब किसी जलाशय स्रोत अथवा किसी तालाब के किनारे स्थित है
(3) प्रकाशिक तंतु -
प्रकाशिक तंतु वह युक्ति है जो श्रव्य अथवा दृश्य संकेतों को बिना उर्जा हानि के उच्च दूरी तक संचरित करने के काम आती है, प्रकाशिक तंतु क्वार्ट्ज अथवा कांच के तंतु ओ से मिलकर बने होते हैं
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प्रकाशिक तंतु के निम्न भाग होते है
(१) क्रोड - यह प्रकाशिक तंतु का सबसे यांत्रिक बेलना कार भाग होता है इसका अपवर्तनांक n1 होता है क्रोड़ का अपवर्तनांक अधिपटन से ज्यादा होता है
(२) अधिपटन - यह क्रोड़ का बाहरी भाग होता है इसका अपवर्तनांक क्रोड़ से कम होता है
(३) आवरण - अधिपटन को बाहर से एक प्लास्टिक आवरण से दिखा जाता है
:-: प्रकाशिक तंतु की कार्य विधि -
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सर्वप्रथम प्रकाश की किरण को क्रोड़ के रास्ते से प्रवेश करवाया जाता है जब प्रकाश की किरण क्रोड़ से अधिपटन में प्रवेश करती है तो आपतन कोण क्रान्तिक कोण से ज्यादा रखा जाता है तो किरण पुण: उसी माध्यम में लोट जाती है इसी प्रकार प्रकाशिक तंतु मैं बार-बार पूर्ण आंतरिक परिवर्तन की घटना होती है एवं किरण को क्रोड़ के दूसरे रास्ते से बाहर निकाल लिया जाता है
:-: प्रकाशिक तंतु के उपयोग -
> श्रव्य अथवा दृश्य संकेतों को स्थानांतरण करने में
> चिकित्सालय में
> एंडोस्कोपी में आंत्र की जांच के लिए
> दूर-संचार में
-:- किसी गोलीय पृष्ठ द्वारा अपवर्तन - गोलीय पृष्ठ दो प्रकार का होता है
(१) अवतल गोलीय पृष्ठ (२) उत्तल गोलीय पृष्ठ
उत्तल पृष्ठ के द्वारा अपवर्तन का अध्ययन -
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माना कि एक गोली उत्तल पृष्ठ जिसका धुव्र p है वक्रता केंद्र C व त्रिज्या R है इस उत्तल पृष्ठ से u दूरी पर एक बिम्ब को रखा गया है इस बिम्ब से निकलने वाली की गोलीय पृष्ठ पर बिंदु m पर आपतित होती है यदि बाहर का अपवर्तनांक n1 एवं गोलीय पृष्ठ का अपवर्तनांक n2 हो तो आपतित किरण विरल से सघन माध्यम में प्रवेश करते समय अभिलम्ब की तरफ झुक जाती है जहां i बिंदु पर हमें V दूरी पर प्रतिबिंब प्राप्त होगा यदि आपतन कोण r होतो ।
स्नेल के समीकरण द्वारा
n1sin(i) = n2sin(r) समीकरण (1)
यदि कोणों के मान अल्प हो तो sin(थीटा) = 0
tan(थीटा) = 0
n1(i )= n2(r) समीकरण (2)
किसी भी त्रिभुज के बाह्य कोणों के मान दोनों अंत: कोणों के योग के बराबर होता है
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-:- किसी पतले लेंस द्वारा अपवर्तन अथवा लेंस निर्माता (मेकर्स) सूत्र -
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माना कि एक पतला उत्तल लेंस जिसकी दो वक्रीय पृष्ठ LMN व LM'N है जिसकी वक्रता त्रिज्याए R1 व R2 लेंस के बाहर का अपवर्तनांक n1 व लेंस का अपवर्तनांक n2 है किसी बिंदु को सतह LMN से u दूरी पर रखा गया है
सर्वप्रथम बिम्ब वसे निकलने वाली किरण सतह LMN पर आपतित होती है व अपवर्तित होकर बिंदु I' पर मिलती है बिंदु I' की दूरी V' हो तो अपवर्तन सूत्र द्वारा
(n2/n1) - (n1/n2) = (n2 - n1)/R1 समी. (1)
LMN सतह से अपवर्तित किरण जब n2 अपवर्तनांक से n1 अपवर्तनांक में प्रवेश करती है तो सतह LM'N पर आपतित होती है एवं अपवर्तित होकर बिंदु i पर मिलती है अत: LM'N के लिए अपवर्तन सूत्र
(n1/V1) - (n2/V1) = (n1 - n2)/R2 समी. (2)
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-:- लेंस -
लेंस एक समांगी पारदर्शी माध्यम होता है जिसकी दोनों अपवर्तक सतह वक्रीय अथवा एक सतह वक्रीय व दूसरी सतह समतल हो सकती है लेंस कहलाता है
लेंस दो प्रकार के होते हैं -
(1) उत्तल लेंस - यह लेंस बीच में से मोटा व किनारों से पतला होता है
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यह लेंस आने वाली समांतर किरणो को एक बिंदु पर केंद्रित करता है अतः इसे अभिसारी लेंस भी कहा जाता है
=> उत्तम लेंस के प्रकार -
उत्तर लेंस चार प्रकार के होते हैं
(१) अभयोतल(द्वीउत्तल)
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(२) सम्योत्तल
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(३) समतलोत्तल(समतल + उत्तल)
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(४) अवतलोतल(अवतल + उत्तल)
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:-: लेंस से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु -
(1) द्वारक - लेंस का आकार द्वारक कहलाता है
(2) प्रकाशिक केंद्र - लेंस के बीच की वह बिंदु जिससे गुजरने वाली प्रकाश की किरण बिना किसी विचलन के सीधी निकल जाती है, प्रकाशिक केंद्र कहलाता है इसे O से व्यक्त करते हैं
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(3) प्रथम फोकस f1 - वह बिंदु जिससे गुजरने वाली प्रकाश की किरण अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है प्रथम फोकस बिंदु कहलाता है
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(4) द्वितीयक फोकस बिंदु - वह बिंदु जहां मुख्य अक्ष के समांतर आती हुई किरणें मिलती हैं अथवा मिलती हुई प्रतीत होती है द्वितीयक फोकस बिंदु कहलाता है
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(5) वक्रता केंद्र - लेंस के दोनों वक्र प्रष्टो का केंद्र वक्रता केंद्र कहलाता है
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(6) मुख्य अक्ष - लेंसो के दोनों वक्रता केंद्रो को मिलाने वाली रेखा मुख्य अक्ष कहलाती है
Note - लेंस के द्वितीयक फोकस बिंदु को मुख्य फोकस बिंदु कहा जाता है उत्तर लेंस की फोकस दूरी धनात्मक व अवतल लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक मानी जाती है
-:- लेंस से प्रतिबिंब बनाने की नियम -
पहला नियम - यदि कोई किरण प्रकाशिक केंद्र से बिना विचलन के निकल जाती है
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दूसरा नियम - यदि कोई किरण मुख्य अक्ष के समांतर आती है तो यह फोकस बिंदु से गुजरती है अथवा गुजराती हुई प्रतीत होती है
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तीसरा नियम - यदि कोई किरण फोकस बिंदु से गुजरती है तो यह मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है
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-:- लेंस के चिह्न परीपार्टी -
(1) सभी दूरियां प्रकाशिक केंद्र से माफी जाती है
(2) प्रकाश की दिशा में माफ़ी गई दूरी धनात्मक व प्रकाश की दिशा के विपरीत मापी गई दूरी ऋणात्मक ली जाती है
(3) मुख्य अक्ष के ऊपर की दूरी धनात्मक वह नीचे की दूरी ऋणात्मक ली जाती है
-:- लेंस से प्रतिबिंब निर्माण -
(1) उत्तम लेंस के लिए प्रतिबिंब निर्माण सारणी -
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-:- अवतल लेंस से प्रतिबिंब निर्माण - अवतल लेंस हमेशा आभाषी,सीधा व छोटा प्रतिबिंब बनाता है बनने वाला प्रतिबिंब बिम्ब की तरफ ही बनता है।
(1) बिम्ब अनंत पर हो
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(2) बिम्ब लेंस के सामने स्थित हो -
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-:- लेंस सूत्र अथवा लेंस के लिए u,v,f में संबंध -
माना कि एक बिंदु AB है जिसकी ऊंचाई h1 है यह उत्तल लेंस के प्रकाशिक केंद्र से v दूरी पर स्थित है यदि उत्तल लेंस की फोकस दूरी f है,
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-:- लेंस की आवर्धन क्षमता (m) - लेंस द्वारा बनने प्रतिबिंब की ऊंचाई व बिम्ब की ऊंचाई का अनुपात लेंस की आवर्धन क्षमता कहलाती है इसे m से व्यक्त करते हैं
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V.imp*
Q- यदि किसी लेंस को जलने डुबो दिया जाए तो f पर क्या प्रभाव पड़ेगा
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-:- दो पतले लेंस का संयोजन -
माना कि दो पतले उत्तर लेंस जिनकी फोकस दूरीया f1, f2 है इनके प्रकाशिक केंद्र O1, O2 है एक दूसरे के अत्यधिक समीप हैं
किसी बिंदुवत बिम्ब o को प्रथम लेंस से u दूरी पर रखा जाता है
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-:- लेंस की शक्ति - किसी भी लेंस द्वारा आपतित किरण को मोड़ने की क्षमता लेंस की शक्ति कहलाती है
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-:- प्रिज्म (Priam) -
प्रिज्म एक पारदर्शी सामांगी माध्यम होता है जिसमें दो समतल अपवर्तक पृष्ठ होती है
प्रिज्म की दोनों अपवर्तक पृष्ठ एक दूसरे के समांतर नहीं होनी चाहिए
इन दोनों अपवर्तक प्रष्ठो के बीच बनने वाला कोण प्रिज्म कोण अथवा उपवर्तक कोण कहलाता है जिसको A से व्यक्त किया जाता है
अपवर्तक प्रष्ठ के तल के लंबवत गुजरने वाला क्षेत्रफल प्रिज्म का मुख्य परिच्छेद (क्षेत्रफल) कहलाता है
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-:- किसी प्रिज्म द्वारा अपवर्तन - माना कि एक त्रिभुजाकार प्रिज्म ABC है जिसका प्रिज्म कोण A है AB व AC अपवर्तक प्रष्ठ है सर्वप्रथम प्रकाश की एक किरण PQ सतह AB पर i कोण आपतित होती है एवं QR दिशा में अपवर्तित होकर RS दिशा में निर्गत हो जाती है यदि प्रिज्म का अपवर्तनांक n2 व प्रिज्म के बाहर का अपवर्तनांक n1 है
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आपतन कोण एवं विचलन कोण के मध्य ग्राफ -
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-:- वर्ण विक्षेपण :- जब किसी श्वेत प्रकाश की किरण को पारदर्शी प्रिज्म पर आपतित की जाती है तो यह सात रंगों में विभक्त हो जाती है श्वेत प्रकाश का साथ रंगों में विभक्त होने की घटना वर्ण विक्षेपण कहलाती है
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-:- कोणीय विक्षेपण (थिटा) -
बैंगनी रंग के कोणीय विचलन एवं लाल रंग के कोणीय विचलन का अंतर कोणीय विक्षेपण कहलाता है इसे थिटा() से व्यक्त करते हैं
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-:- विक्षेपण क्षमता (w) - कोणीय विक्षेपण एवं मध्य रंग (पीले रंग) के कोणीय विचलन का अनुपात विक्षेपण क्षमता कहलाती हैं
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-:- सूर्य के प्रकाश के कारण होने वाली प्राकृतिक घटनाएं
प्रकाश का प्रकीर्णन -
जब सूर्य का प्रकाश पुंज वायुमंडल के गुणों पर अपतित होता है तो यह एक निश्चित दिशा में परिवर्तित न होकर भिन्न-भिन्न दिशाओं में वितरित को जाता है प्रकाश की यह घटना प्रकीर्णन कहलाती है
=> प्रकीर्णन की मात्रा अपतित प्रकाश की तरंग धैर्य एवं वायुमंडल के गुणों के आकार पर निर्भर करती है
=> रैले के अनुसार यदि कणों का आकार (a) तरंगधैर्य की तुलना में अधिक छोटा हो तो प्रकीर्णन की मात्रा तरंगधैर्य की चतुर्थ घात के जीत व्यु्क्रमानुपाती होती है इसे रेलवे का प्रकीर्णन नियम भी कहा जाता है (a<<<<तरंगधैर्य)
प्रकीर्णन की मात्रा {व्यु्क्रमानुपाती} 1/(तरंगधैर्य)4
-:- प्रकीर्णन के कारण होने वाली घटनाए -
(1) आकाश का नीला रंग दिखाई देना -
जब सूर्य का वेद प्रकाश वायुमंडल के कणों पर आपतित होता है तो रेल के अनुसार कणों का आकार (a) तरंगधैर्य की तुलना में अधिक छोटा हो तो प्रकीर्णन की मात्रा तरंगधैर्य की चतुर्थ घात के जीत व्यु्क्रमानुपाती होती है
लाल रंग की तरंग धैर्य ज्यादा होने के कारण इसका प्रकीर्णन कम मात्रा में होता है परंतु नीले रंग की रंग धैर्य कम होने के कारण नीले रंग का प्रकीर्णन ज्यादा मात्रा में होता है एवं यह है आसमान में फैल जाता है
वास्तव में बैंगनी रंग का प्रकीर्णन सबसे ज्यादा होता है परंतु हमारी आंखें बैंगनी रंग के लिए कम सुग्राही एवं नीले रंग के लिए ज्यादा सुग्राही होती है इसी कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है
(2) बादलों का श्वेत दिखाई देना -
जब वायुमंडल में कणो का आकार तरंगधैर्य की तुलना में ज्यादा बढ़ा हो, जैसे वायुमंडल में वर्षा के कण, हिम के कण, धूल के कण, उपस्थित हो तो रैले प्रकीर्णन की घटना नहीं होती है इस अवस्था में सात रंगों का प्रकीर्णन समान मात्रा में होता है जिसके कारण बादल हमेशा श्वेत दिखाई देते हैं।
(3) सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल रंग अथवा रक्ताभ जैसा दिखाई देना -
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सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों को पृथ्वी के वायुमंडल तक पहुंचने में अत्यधिक दूरी तय करनी पड़ती है लाल रंग की तरंग धैर्य अधिक होने के कारण इसका प्रकीर्णन सबसे कम मात्रा में होता है अत: लाल रंग का प्रकीर्णन कम मात्रा में होने के कारण लाल रंग हमारी आंखों तक पहुंच जाता है एवं सूर्य हमें लाल जैसा दिखाई देता है
-:- इंद्रधनुष का बनना -
सूर्य का श्वेत प्रकाश जब वर्षा की हल्की बूंदों पर आपतित होता है तो विक्षेपण पूर्ण आंतरिक परावर्तन अपवर्तन के संयुक्त प्रभाव के कारण रंगों की डीस्कनुमा संरचना प्राप्त होती है जिसे इंद्रधनुष कहा जाता है
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=> इंद्रधनुष बनने की सर्ते -
(1) प्रेक्षक पीठ सूर्य की तरफ होनी चाहिए
(2) सूर्य का प्रकाश चमकीला होना चाहिए
(3) वर्षा के पश्चात आसमान साफ होना चाहिए
(4) आसमान में वर्षा की हल्की बूंदे होनी चाहिए
(5)
=> (1) इंद्रधनुष दो प्रकार का होता है प्राथमिक इंद्रधनुष व द्वितीयक इंद्रधनुष
प्राथमिक इंद्रधनुष:-
यह तीन चरणीय प्रक्रम होता है
(2) इसमें दो बार अपवर्तन व एक बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है
(3) इसमें लाल रंग बाहर की तरफ 42° पर बैंगनी रंग अंदर की तरफ 40° पर प्राप्त होता है
(4) प्राथमिक इंद्रधनुष की कोणीय चौड़ाई 20° होती हैं
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=> इंद्रधनुष दो प्रकार का होता है
(1) प्रथम इंद्रधनुष :-
=> यह तीन चरणीय प्रक्रम होता है
=> इसमें दो बार अपवर्तन व एक बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है
=> इसमें लाल रंग बाहर की तरफ से 42° पर व बेंगनी रंग अंदर की तरफ से 40° पर प्राप्त होता है
=> प्राथमिक इंद्रधनुष की चरणीय चौड़ाई 2° होती है
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=> प्राथमिक इंद्रधनुष द्वितीयक इंद्रधनुष के नीचे बनता है
=> प्राथमिक इंद्रधनुष द्वितीयक इंद्रधनुष से ज्यादा चमकीला होता है
(2) द्वितीयक इंद्रधनुष :-
—> यह चार चरणीय प्रक्रम है
—> इसमें दो बार अपवर्तन व दो बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है
—> इसने बैंगनी रंग बाहर की तरफ 53°पर व लाल रंग अंदर की तरफ 50° पर
---> इसमें कोणीय चौड़ाई 3° की होती है
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---> द्वितीयक इंद्रधनुष प्रथम इंद्रधनुष के ऊपर बनता है
---> द्वितीयक इंद्रधनुष प्राथमिक इंद्रधनुष की तुलना में कम चमकीला होता है।
-:- प्रकाशिक उपकरण -
वह उपकरण जिनकी सहायता से वस्तुओं को आर्वधित एवं स्पष्ट देखा जा सकता है प्रकाशिक उपकरण कहलाता है
=> प्रकाशिक उपकरण निम्न प्रकार के होते है।
(1) नेत्र :- नेत्र की एक गोला का गंद की भाति संरचना होती है, इसके आगे का भाग अत्यधिक वक्रीय होता है जो एक पारदर्शी परत से ढका होता है जिसे कॉनिया कहा जाता है,
कॉनिया के पीछे एक द्रव भरा होता है जिसे जलीय द्रव कहा जाता है जलीय द्रव के पीछे क्रिस्टलिय उत्तल लेंस होता है जिसके बीच का भाग कठोर वह किनारे से नर्म होता है लेंस दोनों तरफ से पक्ष्माभी पेशियो द्वारा जुड़ा होता है पक्ष्माभी पेशियों द्वारा लेंस की फोकस दूरी को परिवर्तित किया जा सकता है
लेंस के पीछे भी एक द्रव भरा होता है जिसे काचाभ द्रव कहा जाता है काचाभ द्रव के पीछे के भाग को रेटिना कहां जाता है
--> समंजन क्षमता :- पक्ष्माभी पेशियो द्वारा नेत्र के लेंस की फोकस दूरी को परिवर्तित करने की क्षमता आंख की समंजन क्षमता कहलाती है
--> निकट बिंदु :- वह न्यूनतम दूरी जिसे नेत्र द्वारा स्पष्ट देखा जा सकता है आंख का निकट बिंदु बनाता है इसका मान 25cm होता है जिसे D से व्यक्त करते हैं
--> दूर बिंदु :- वह अधिकतम दूरी जिससे किसी वस्तु को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है दूर बिंदु कहलाता है आंख का दूर बिंदु अनंत होता है।
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=> नेत्र की क्रियाविधि - बिम्ब से निकलने वाली किरण सर्वप्रथम कॉनियो पर आपतित होती है जिसका अधिकांश अपवर्तन कॉनिया द्वारा कर दिया जाता है कॉनिया के पश्चात किरण लेंस पर आपतित होती है लेंस द्वारा वस्तु का प्रतिबिंब वास्तविक उल्टा वह छोटा रेटीना पर प्राप्त होता है यदि कोई बिम्ब नेत्र के समीप होता है तो पक्ष्माभी पेशिया अधिक तनाव की अवस्था में रहती है यदि बिम्ब दूर होता है तो पक्ष्माभी पेशियों शिथिल/लचीली अवस्था में रहती हैं आंख पर बनने वाले प्रतिबिंब का आकार कोण पर निर्भर करता है
=> नेत्र दोष (eye defict) - नेत्र दोष 4 प्रकार का होता है
(a) निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) - इस नेत्र दोष में पास की वस्तु दिखाई देती हैं परंतु दूर की वस्तु साफ दिखाई नहीं देती है
दूर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटीना से पहले बनता है इस दोष को दूर करने के लिए अपसारी अथवा अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है
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(b) दूर दृष्टि दोष(हाइपरमेट्रोपिया) -
> इस दोष में दूर की वस्तु साफ दिखाई देती है परंतु पास की वस्तु साफ दिखाई नहीं देती है
> पास स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटीना के पीछे बनता है
> इस दोष को हाइपरमेट्रोपिया भी कहते हैं
> इस दोस्त को दूर करने के लिए अभीसारी अथवा उत्तर लेंस का प्रयोग किया जाता है
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(c) जरा दृष्टि दोष(प्रेस वायोपिया) - उम्र बढ़ने के साथ-साथ पक्ष्माभी पेशियों उतनी ही प्रभावी नहीं रहती हैं इसका लचीलापन कम हो जाता है एवं अधिक आयु वाले व्यक्तियों का निकट बिंदु 200cm पर पहुंच जाता है जब अधिक आयु का व्यक्ति 25cm पालक चेयर किसी बिंदु को देखता है तो इसका प्रतिबिम्ब धुंधला दिखाई देता है
इस दोष को दूर करने के लिए अभीसारी लेंस का उपयोग किया जाता है
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(d) अति बिंदु दोष - इस दोष में व्यक्तियों को सामने स्थित क्षेतिज एवं उर्ध्वाधर रेखाएं एक साथ इस स्पष्ट दिखाई नहीं देती है
इस दोष के कारण नेत्र लेंस की फोकस दूरियों में परिवर्तन अथवा नेत्र कॉनिया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता है
इस दोष को दूर करने के लिए एक विशेष प्रकार का बेलनाकार लेंस काम लिया जाता है
(2) सरल सूक्ष्मदर्शी :- वस्तुओं का आवर्धित प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है
सरल सूक्ष्मदर्शी का सिद्धांत - जब किसी वस्तु ओ को उत्तल लेंस के प्रकाशिक केंद्र व फोकस के बीच रखा जाता है तो वस्तुओं का आभासी सीधा व बड़ा प्रतिबिंब प्राप्त होता है
सरल सूक्ष्मदर्शी की बनावट - सरल सूक्ष्मदर्शी में एक कम फोकस दूरी वह छोटे द्वारक का उत्तल लेंस होता है जिसके प्रकाशिक केंद्र एवं फोकस के बीच एक बिम्ब AB को रखा जाता है एवं उत्तल लेंस के द्वारा आभासी सीधा वह बड़ा A'B' प्रतिबिंब प्राप्त होता है
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(3) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी :- सरल सूक्ष्मदर्शी से बड़ा प्रतिबिंब बनाने के लिए संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग किया जाता है इसमें दो या दो से अधिक उत्तल लेंसो का संयोजन काम में लिये जाने के कारण इसको संयुक्त सूक्ष्मदर्शी कहा जाता है
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की बनावट - इसमें एक बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर कम फोकस दूरी व छोटे द्वारा का उत्तल लेंस होता है इसको वस्तु के सामने रखा जाता है अतः इसे अभीदृश्य लेंस कहा जाता है बेलनाकार नली के दूसरे सिरे पर एक छोटी नली लगी होती है जिस पर अधिक फोकस दूरी वह बड़े द्वारक का उत्तल लेंस लगा होता है यह लेंस नेत्रिका के सामने होता है अतः इसे नेत्रिका कहा जाता है इसको आगे पीछे किसका ने की व्यवस्था होती है
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संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की कार्यविधि - सर्वप्रथम किसी बिम्ब AB को अभीदृश्यक लेंस के 2f० व f० के मध्य रखा जाता है अभीदृश्य लेंस द्वारा किसी बिंदु का प्रतिबिंब वास्तविक उल्टा व बड़ा 2f० व अनंत के बीच प्राप्त होता है बनने वाला प्रतिबिंब A'B' नेत्रिका के लिए बिम्ब का कार्य करता है नेत्रिका को आगे पीछे किसकाकर इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि प्रतिबिंब A'B' इसके प्रकाशिक केंद्र व फोकस बिंदु के बीच आ जाए तो नेत्रिका द्वारा इसका अंतिम प्रतिबिंब आभासी सीधा वह बड़ा A''B'' प्राप्त होता है परंतु बिम्ब A'B' की तुलना में अंतिम प्रतिबिंब आभासी व उल्टा प्राप्त होता है
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संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की स्थितियां -
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(4) दूरदर्शी :- दूर स्थित वस्तुओं का स्पष्ट एवं आवर्धित प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए दूरदर्शी का प्रयोग किया जाता है
Ex- सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, तारे आदि को देखने के लिए
दूरदर्शी दो प्रकार का होता है
(1) अपवर्तक दूरदर्शी अथवा खगोलीय दूरदर्शी - इसमें एक बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर अधिक फोकस दूरी हुए बड़े द्वारक का उत्तल लेंस होता है यह बिम्ब की तरह होता है इसे अभीदृश्यक लेंस कहा जाता है
इस बेलनाकार नली के दूसरे सिरे पर एक छोटी नन्ही लगी होती है जिस पर कम फोकस दूरी व छोटे द्वारा का उत्तल लेंस लगा होता है,नेत्र के सामने होता है जिसे नेत्रिका कहा जाता है इसे दंतुर दंड चक्र व्यवस्था द्वारा आगे पीछे खिसका सकते है।
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दूरदर्शी की कार्य विधि - सर्वप्रथम बिन अभीदृश्यक लेंस से अनंत दूरी पर स्थित होता है अभीदृश्यक लेंस द्वारा अनंत पर स्थित बिंब का वास्तविक उल्टा वह छोटा प्रतिबिंब A'B' प्राप्त होता है जो फोकस पर बनता है बनने वाला प्रतिबिंब नेत्रिका के लिए बिंब का कार्य करता है नेत्रिका को आगे पीछे खिसका कर इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि यह प्रकाशिक केंद्र व फोकस के बीच आजाए नेत्रिका द्वारा अंतिम प्रतिबिंब आभासी सीधा वह बड़ा A''B'' प्राप्त होता है जो बिंब की तुलना में उल्टा व बड़ा होता है
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=> दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता -
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=> दूरदर्शी की स्थितियां -
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(2) परावर्तक दूरदर्शी :- अपवर्तक दूरदर्शी द्वारा चमकीला प्रतिबिंब बनाने एवं दूरदर्शी की विवेदन क्षमता बढ़ाने के लिए अपवर्तक दूरदर्शी के अभीदृश्यक का आकार बड़ा होना चाहिए
बड़े द्वारा का अभीदृश्यक बनाना कठिन होता है एवं इसमें वर्ण विपथन एवं गोलीय विपथन का दोष उपस्थित होता है अतः परावर्तक दूरदर्शी में इस कमी को दूर करने के लिए परवलयाकार अवतल दर्पण का प्रयोग किया जाता है
=> परावर्ती दूरदर्शी की संरचना - परावर्ती दूरदर्शी में अभीदृश्यक अधिक फोकस दूरी व बड़े द्वारक का अवतल दर्पण होता है जो एक अधिक फोकस दूरी व बड़े द्वारक का अवतल दर्पण होता है जो एक चौड़ी नली के सिरे पर लगा होता है नली का खुला सिरा वस्तु की ओर किया जाता है अवतल दर्पण की फोकस से कुछ पहले एक छोटा समतल दर्पण अवतल दर्पण की मुख्य अक्ष से 45° पर रखा होता है दूरदर्शी की नली के पास में एक पतली छोटी नली लगी होती है जिस पर कम फोकस दूरी छोटे द्वारा का उत्तल लेंस लगा होता है जिसे नेत्रिका कहा जाता है
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परावर्तक दूरदर्शी की कार्यविधि - दूर स्थित वस्तुओं से आने वाली समांतर किरणें पहले अवतल दर्पण पर स्थित होते हैं अवतल दर्पण इन किरणों को परावर्तित करके फोकस पर केंद्रित करता है यह किरण फोकस पर केंद्रित होने से पहले समतल दर्पण पर स्थित होती है समतल दर्पण इन किरणों को परावर्तित करके वस्तु AB का वास्तविक उल्टा वह छोटा प्रतिबिंब A'B' बनता है नेत्रिका को आगे पीछे किसका कर इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि यह प्रतिबिंब नेत्रिका के प्रकाशित केंद्र व फोकस के बीच आ जाए तो नेत्रिका द्वारा अंतिम प्रतिबिंब आभासी सीधा व बड़ा A''B'' प्राप्त होता है
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Q - (1) अपवर्तित दूरदर्शी एवं परावर्तित दूरदर्शी में अंतर ?
Ans -
अपवर्तित दूरदर्शी - अपवर्तित दूरदर्शी की विवेदन क्षमता कम होती है
इसमें अभीदृश्यक का आकार बड़ा व वजन में भारी मूल्यवान होता है
यह अपवर्तन घटना पर आधारित है
इसमें उत्तल लेंस अभीदृश्यक का कार्य करता है
इसमें वर्ण विपथन एवं गोलीय विपथन का ठोस उपस्थित होता है
परावर्तित दूरदर्शी - परावर्तित दूरदर्शी की विवेदन क्षमता ज्यादा होती है
इसका अभीदृश्यक बड़ा हल्का व कम कीमत का होता है
यह परावर्तन घटना पर आधारित होता है
इसमें अभीदृश्यक का कार्य अवतल दर्पण करता है
इसमें वर्ण विपथन एवं गोलीय विपथन का ठोस उपस्थित नहीं होता है
वर्ण विपथन :- जिसमे प्रकाश चमकीला नहीं होता है वर्ण विपथन कहलाता है
गोलीय विपथन :- जिसमें प्रकाश चमकीला होता है गोलीय विपथन कहलाता है
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Q - यदि एक बिम्ब का अपवर्तनांक cot(A/2) है एवं प्रिज्म कोण A है तो न्यूनतम विचलन कोण का मान बताइए?
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Bro pdf download kaise kare
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