Nature of light 12th Physics Notes Pdf Download प्रकाश की प्रकृति chapter 12
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प्रकाश की प्रकृति,Nature of light,prakaash kee prakrti
प्रकाश की प्रकृति(Nature of light),prakaash kee prakrti
Lisson 12
प्रकाश की प्रकृति
प्रकाश की प्रकृति :- प्रकाश की प्रकृति को समझने के लिए अलग अलग वैज्ञानिकों ने अलग अलग सिद्धांत दिए
(1) - न्यूटन का कणिकावाद सिद्धांत :-
=> न्यूटन के इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी प्रकार स्रोत से असंख्य सूक्ष्म अदृश्य कण उत्सर्जित होते हैं इन कणों को कणिकाएं कहा जाता है|
=> यह कणिकाएं सभी दिशाओं में प्रकाश के वेग से गति करती हैं
=> जब यह कणिकाएं आंखों की रेटिना पर आपतित होती हैं तो हमें वस्तु अथवा रंग दिखाई देता है
=> अलग-अलग रंगों के लिए कणिकाओं का आकार अलग अलग होता है इसी कारण हमें अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं
=> इस सिद्धांत के द्वारा परावर्तन अपवर्तन आदि घटनाओं को सफलतापूर्वक समझाया जा सकता है परंतु व्यतीकरण विवर्तन एवं ध्रुवण आदि की व्याख्या नहीं की जा सकती है।
(2) - प्लांट का क्वांटम सिद्धांत :- इस सिद्धांत के अनुसार प्रकाश सतत रूप से गमन ना करके ऊर्जा के छोटे-छोटे पैकेट्स अथवा ऊर्जा बंडलो के रूप में गति करता है इन ऊर्जा बंडलो को फोटोन कहा जाता है
यह सिद्धांत प्रकाश की कनीय प्रकृति का समर्थन करता है
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Note - इस सिद्धांत के अनुसार प्रकाश विद्युत प्रभाव की सफलतापूर्वक व्याख्या की जा सकती है
(3) मैक्सवेल का विद्युत चुंबकीय सिद्धांत :- इस सिद्धांत के अनुसार जब किसी परिपथ में विद्युत क्षेत्र अथवा चुंबकीय क्षेत्र में आवृत्ति रूप से परिवर्तन होता है तो दोलित्र आवेश द्वारा एक विशेष प्रकार की तरंग उत्पन्न होती है जिसको विद्युत चुंबकीय तरंग कहा जाता है यह तरंगे निर्वात में प्रकाश के वेग से गति करती हैं
यह सिद्धांत के द्वारा जीमान प्रभाव स्टार्ट प्रभाव फैराडे प्रभाव आदि की व्याख्या सफलतापूर्वक करता है
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(4) हाइगेन का प्रकाश तरंग सिद्धांत:- पोलैंड के वैज्ञानिक हाइगेन 1678 में प्रकाश का तरंग सिद्धांत दिया
=> इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी प्रकाश स्रोत से प्रकाश तरंगों के रूप में उत्सर्जित होता है
=> यह तरंगे सभी दिशाओं में गमन करती हैं
=> तरंगों के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है अतः हाईगेन ने एक काल्पनिक माध्यम इधर की कल्पना की यह माध्यम भारहीनता अत्यधिक प्रत्यास्थ होता है माध्यम में तरंग का वेग v = √(E/d)
=> जब तरंगे आंखों की रेटिना पर आपतित होती हैं तो हमें रंग दिखाई देता है अलग-अलग रंगों के लिए तरंगों की लंबाईया अलग अलग होती है
तरंगाग्र :- माध्यम के कणों का ऐसा बिंदुपथ जिस में उपस्थित सभी करण किसी क्षण सामान कला में कंपन करते हो तरंगाग्र कहलाता है
तरंगाग्र का बनना प्रकाश स्रोत की आवर्ती पर निर्भर करता है
तरंगाग्र तीन प्रकार के होते हैं
(1) गोलीय तरंगाग्र :- यदि प्रकाश स्रोत की आवर्ती बिंदुवत होती है तो गोलिए तरंगाग्र प्राप्त होता है
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(2) बेलनाकार तरंगाग्र :- यदि प्रकाश स्रोत की आवृत्ति रेखीय हो तो बेलनाकार तरंगाग्र प्राप्त होता है
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(3) समतल तरंगाग्र :- यदि प्रकाश स्रोत बिंदुवत हो या रेखीय परंतु अत्यधिक दूरी पर अथवा अनंत दूरी पर स्थित हो तो समतल तरंगाग्र प्राप्त होता है
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हाईगेन के तरंगीका ओ का सिद्धांत :-
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=> प्रत्येक प्रकाश स्रोत से प्रकाश तरंगों के रूप में उत्सर्जित होता है एवं इसका बिंदुपथ प्राथमिक तरंगाग्र कहलाता है
=> प्राथमिक तरंगाग्र का प्रत्येक बिंदु नवीन विक्षोभ अथवा नए स्रोत की तरह कार्य करता है इन बिंदुओं से सभी दिशाओं में तिरंगीकाय उत्सर्जित होती हैं जिन्हें द्वितीयक तिरंगीकाय कहा जाता है यह तरंग की चाल से गति करती हैं
=> इन द्वितीयक तरंगीका ओ के उभयनिष्ठ स्पर्शिय पृष्ठ खींचने पर द्वितीयक तरंगाग्र बनता है
=> दिए गए चित्र में AB एक प्राथमिक तिरंगाग्र है तथा A'B' द्वितीयक तरंगाग्र है
=> तरंगाग्र के लंबवत दिशा में प्रकाश संचरण की दिशा होती है
हाइगेंन सिद्धांत की कमियां :-
(1) हाईगेन द्वितीय तरंगिका ओ से प्रकाश के पीछे की ओर संचरण का न होना इस बात का स्पष्टीकरण नहीं कर सका
(2) हाइगेन प्रकाश के ऋजु रेखिए संचरण को नहीं समझा सके
Note - हायगेन के तरंग सिद्धांत द्वारा परावर्तन अपवर्तन आदि की व्याख्या की जा सकती है वह साथ में व्यतीकरण विवर्तन ध्रुवण आदि की व्याख्या भी करता है।
हाइगेंन का तरंग सिद्धांत द्वारा परावर्तन की व्याख्या :-
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MM' एक परावर्तक सतह है जिस पर 2 किरण आपतित हो रही हैं दोनों किरणों का वेग V है AB एक समतल तरंगाग्र है जब बिंदु A सतह पर पहुंचता है तो B उसी माध्यम में रहता है जितने समय में B, C पर पहुंचता है उतने ही समय में A, D पर पहुंच जाता है
BC = AD = CT
हाइगेन के तरंग सिद्धांत द्वारा अपवर्तन की व्याख्या :-
इस सिद्धांत में अपवर्तन दो प्रकार से होता है
(1) जब किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है :- MN एक अपवर्तक सतह है जो दो माध्यम विरल व सघन को पृथक करती है विरल माध्यम में तरंग का वेग V1 व अपवर्तनांक n1 हैं सघन माध्यम में तरंग का वेग V2 व अपवर्तनांक n2 हैं
V1 > V2
जब सतह MN पर दो किरण आपतित होती हैं तो किरण 1 सतह पर पहले आपतित होती है AB एक समतल तरंगाग्र है जब तरंगाग्र बिंदु A सतह पर आपतित होता है तब B उसी माध्यम में रहता है। जितने समय में B, C पर पहुंचता है उतने ही समय में A दूसरे माध्यम बिंदु D पर पहुंचता है
BC = V1T AD = V2T
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(2) जब किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करें :- MN एक अपवर्तक सतह है जो दो माध्यम सघन व विरल को पृथक करती है सघन माध्यम में तरंग का वेग V1 व अपवर्तनांक n1 है एवं विरल माध्यम में वेग V2 व अपवर्तनांक N2 है जब सतह MN पर दो किरणें आपतित होती हैं तो किरण 1 पहले पहुंचेगी एवं 2 उसी माध्यम में रहती है जब B, C पर पहुँचेगी तब A, D पर पहुँचती हैं।
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Note - प्रकाश के संचरण की दिशा तरंगाग्र के लंबवत होती है
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अध्यारोपण का सिद्धांत :- जब दो या दो से अधिक तिरंगे किसी माध्यम में गति करती हुई किसी बिंदु पर मिलती हैं तो उनके संगम बिंदु पर परिणामी तरंग का विस्थापन सभी अलग-अलग तरंगों के विस्थापन के सदिश योग के बराबर होता है
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स्रोत :- स्रोत दो प्रकार के होते हैं
(1) कला असंबद्ध स्रोत - अति श्रोत जिनमें उत्सर्जित तरंगों के बीच कालांतर समय के साथ नियत ने रहे कला असंबद्ध स्रोत कहलाते हैं
जैसे दो बल्ब, दो ट्यूबलाइट
(2) कला संबद्ध स्रोत - वे स्रोत जिनमें उत्सर्जित तरंगों के बीच कालांतर समय के साथ नियत बना रहे कला संबद्ध स्रोत कहलाते हैं
Ex - यंग का द्वि स्लिट प्रयोग (दो छिद्र), LASER
व्यतिकरण :- जब दो या दो से अधिक सामान आवृत्ति की कला संबंध तरंगे जिनके आयाम लगभग बराबर हो एक ही माध्यम व एक ही दिशा में गति करती हुई अध्यारोपित होती है तो माध्यम के किन्हीं बिंदुओं पर तीव्रता अधिकतम व इन्हीं बिंदुओं पर तीव्रता न्यूनतम प्राप्त होती है प्रकाश की घटना व्यतीकरण कहलाती है
व्यतीकरण दो प्रकार का होता है
(1) - संतोषी व्यतीकरण :- यदि दो तरंगों के बीच कालांतर शून्य हो अथवा पाई का समगुणज हो तो इन तरंगों के अध्यारोपण के फल स्वरुप अधिकतम तीव्रता प्राप्त होती है
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(2) - विनाशी / विष्मपोषी व्यतीकरण :- यदि तरंगों के बीच का अंतर 180 डिग्री है अथवा पाई का विषम गुंज हो तो तरंगों के अध्यारोपण के फल स्वरुप न्यूनतम तीव्रता प्राप्त होती है यह घटना विनाशी व्यतीकरण कहलाती है
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व्यतीकरण की शर्तें :-
(1) प्रकाश स्रोत एक वर्णीय होना चाहिए
(2) दोनों तरंगों की आवृत्ति या समान होनी चाहिए
(3) आयाम लगभग बराबर होना चाहिए
(4) दोनों तरंगे एक ही माध्यम वह एक ही दिशा में गति करनी चाहिए
(5) प्रकाश स्रोत कला संबंध होना चाहिए
(6) तरंगे एक दूसरे पर अध्यारोपित होनी चाहिए
(7) तरंगों के बीच पथान्तर नियत वह ज्यादा नहीं होना चाहिए
यंग का द्वि-स्लिट प्रयोग :- यंग ने अपने प्रयोग में सूर्य के प्रकाश को एक सूची छिद्र में से गुजारा एवं इसके नियत प्रकाश को भी सूची छिद्र में से गुजारा एवं पर्दे पर व्यतीकरण प्रारूप प्राप्त किया तो यंग को पर्दे पर एककांतर क्रम में चमकीली वह काली फ्रिंज प्राप्त हुई
यंग के प्रयोग की व्यवस्था :- यंग के प्रयोग के लिए हम एक पर्दा L लेते हैं जिसमें एक रेखा स्लिट s है इस पर्दे के आगे दूसरा पर्दा m लेते हैं जिसमें स्लिप s के ऊपर व नीचे दो रेखा स्लीट S1 व S2 हैं। इस पर्दे के आगे एक तीसरा पर्दा n लेते हैं जिस पर हमें व्यतिकरण प्रारूप प्राप्त होता है
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फ्रिंज बनाने की व्याख्या :- सर्वप्रथम रेखा स्लिट s से तरंगाग्र उत्सर्जित होता है यह तरंगाग्र रेखा स्लिट s1 व s2 पर आपतित होता है एवं s1 व s2 द्वितीयक तरंगे उत्सर्जित करते हैं
यह तरंगे का एक पर्दे m व n के बीच अध्यारोपित होती है
=> m व n के बीच सतत चाप श्रंग को व असतत चाप गर्त को व्यक्त करता है।
=> जब एक तरंग का श्रंग दूसरी तरंग के श्रंग अथवा एक तरंग का गर्त दूसरी तरंग के गर्त के साथ अध्यारोपित होता है तो परिणामी तीव्रता प्राप्त होती है व पर्दे पर चमकीला फ्रिंज बनता है
=> जब एक तरंग का श्रंग दूसरी तरंग के गर्त के साथ अथवा दूसरी तरंग का श्रंग प्रथम तरंग के गर्त के साथ अध्यारोपित होता है तो न्यूनतम तीव्रता प्राप्त होती है वह पर्दे पर काली फ्रिंज बनती है
Imp*
व्यतिकरण का गणितीय विश्लेषण :- माना कि दो तरंगे जिनकी आवे रतिया सामान आयाम लगभग बराबर है एक ही माध्यम वह एक ही दिशा में गति करती हुई अध्यारोपित होती है इनके बीच में कालांतर फाई है तो ...
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व्यतीकरण में ऊर्जा वितरण अथवा व्यतीकरण तीव्रता ग्राफ :- संतोषी व्यतीकरण की अवस्था में अधिकतम तीव्रता दोनों तरंगों की तीव्रता के योग (I1 + I2) से (2√i1√i2) ज्यादा होती है जबकि न्यूनतम तीव्रता (I1 + I2) से 2√i1√i2 कम होती है जितनी उर्जा निम्नीस्ट पर लुप्त होती है उतनी ही ऊर्जा उत्तिष्ठ पर प्रकट होती हैं कार व्यतीकरण मैंने तो ऊर्जा उत्पन्न होती है और न ही उर्जा नष्ट होती है व्यतीकरण में केवल ऊर्जा का पुनर वितरण होता है
अतः व्यतीकरण में ऊर्जा संरक्षण नियम की पालन ना होती है
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*imp
व्यतीकरण में फ्रिंज चौड़ाई के लिए व्यंजक ज्ञात करना :-
फ्रिंज चौड़ाई (β) - यंग का द्वि-स्लिट प्रयोग दो क्रमागत चमकीली अथवा काली फ्रिंज के मध्य का अंतराल फ्रिंज चौड़ाई कहलाता है।
फ्रिंज चौड़ाई का मान ज्ञात करने के लिए हम एक पर्दा L लेते हैं जिसका रेखा स्लिट s है l के आगे एक पर्दा m लेते हैं जिसमें दो रेखा स्लिट s1 व s2 लेते हैं जिनके बीच की दूरी d है एवं इन दोनों स्लिटो से D दूरी पर एक पर्दा N लेते हैं जिस पर हमें व्यतीकरण प्रारूप प्राप्त होता है
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स्लिटो का मध्य बिंदु O हैं व पर्दे का मध्य बिंदु O' है पर्दे के मध्य बिंदु O' पर चमकीली फ्रिंज प्राप्त होती है क्योकी दोनों तरंगों के बीच पथान्तर का मान शून्य होता है
पर्दे पर x दूरी पर बिंदु p पर व्यतीकरण प्रारूप प्राप्त करने के लिए दोनों तरंगों के बीच पथान्तर का मान ज्ञात करते हैं
इसके लिए s1 से भुजा s2p पर एक लम्ब s1A डालते हैं
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फ्रिंज चौड़ाई को प्रभावित करने वाले कारक :-
(1) फ्रिंज चौड़ाई स्लिटो से पर्दे के बीच की दूरी के समानुपाती होती हैं β ∝ D
(2) फ्रिंज चौड़ाई स्लिटो के बीच की दूरी के व्यक्त कर मानुपाती होती है β ∝ 1/d
(3) फ्रिंज चौड़ाई तरंग धैर्य के समानुपाती होती है β ∝ λ
(4) यंग के प्रयोग को पानी में डुबोने पर तरंग धैर्य का मान घट जाता है अतः फ्रिंज चौड़ाई भी घट जाती है
(5) यंग के प्रयोग में एक वर्णीय प्रकाश काम में लेने पर फ्रिंज चौड़ाई का आकार अति परवलय होता है
(6) फ्रिंज की चौड़ाई फ्रिंज की संख्या के व्युत्क्रमानुपाती होती है
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श्वेत प्रकाश द्वारा व्यतीकरण प्रारूप प्राप्त करना :-
=> श्वेत प्रकाश में सात रंग होते हैं जिनकी तरंग धैर्य परास 3800 A° से 7800 A° होती है
=> श्वेत प्रकाश काम में लेने पर पर्दे के केंद्रीय भाग में श्वेत रंग प्राप्त होती है क्योंकि केंद्र पर पहुंचने वाले सभी तरंगों के बीच पथान्तर का मान शून्य होता है परंतु केंद्रीय फ्रिंज के दोनों और अलग-अलग रंगों की फ्रिंज प्राप्त होती है
=> यंग के प्रयोग में जब एक वर्णीय प्रकाश काम में लिया जाता हैं तो पर्दे पर प्राप्त सभी चमकीली अथवा काली फ्रिंज की तीव्रता सामान व सामान्य चौड़ाई की फ्रिंज प्राप्त होती हैं अतः केंद्रीय फ्रिंज की स्थिति ज्ञात करना मुश्किल होता है
=> श्वेत प्रकाश का उपयोग केंद्रीय फ्रिंज की स्थिति ज्ञात करने में किया जाता है
Q-1 2MM स्लिटो से 1 मीटर की दूरी पर पर्दा स्थित है यदि स्लिटो पर 8000 अंगस्ट्रोम का प्रकाश आपतित किया जाता है तो फ्रिंज की चौड़ाई का मान ज्ञात करो?
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Q -2 यंग के द्वि स्लिट प्रयोग में 6000 अंगस्ट्रोम पर 60 फ्रिंज बनती है तो 4000 अंगस्ट्रोम पर कितनी फ्रेंज बनेगी?
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Imp*
विवर्तन :- प्रकाश का किसी अवरोधक अथवा द्वारक के किनारों से टकराकर उसकी ज्यामितीय छाया में फैलने की घटना विवर्तन कहलाती है
विवर्तन की शर्तें :- विवर्तन के लिए द्वारा अथवा अवरोधक का आकार तरंग धैर्य की कोटि का होना चाहिए
d = λ ✔️
d <<< λ ✔️
d >>> λ ❌
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ध्वनि व प्रकाश का विवर्तन :- ध्वनि की तरंग धैर्य 1 मीटर की कोटी की होती है वह हमारे द्वारा भी लगभग इसी कोटि के होते हैं अतः ध्वनि का विवर्तन देखने को मिलता है
परंतु प्रकाश की तरंग धैर्य अत्यधिक छोटी (10 घाट-7) की कोटी की होती है व द्वारक बड़े होते हैं अतः विवर्तन देखने को नहीं मिलता है
विवर्तन दो प्रकार का होता है
1) फ्रेनल विवर्तन :- यदि प्रकाश स्रोत व पर्दा अवरोधक से सीमित दूरी पर स्थित है तो प्राप्त विवर्तन फ्रेनल विवर्तन कहलाता है इसमें आपतित व विवृतित तरंगाग्र दोनों ही गोली अथवा बेलनाकार होते हैं
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2) फ्रॉन हॉपर विवर्तन :- यदि स्त्रोत व पर्दा अवरोधक से अनंत दूरी पर स्थित है तो प्राप्त फ्रॉन हॉपर विवर्तन कहलाता है
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एकल झिर्री के कारण फ्रॉन हॉपर विवर्तन :-
एकल झिर्री के कारण फ्रॉन हॉपर विवर्तन की बनावट -
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फ्रॉन हॉपर विवर्तन मैं s एक प्रकाश स्रोत होता है जो उत्तल लेंस L1 के फोकस पर स्थित होता है जिसके द्वारा ww' समतल तरंगाग्र प्राप्त होता है
यह तरंगाग्र ww' एक झिर्री अथवा अवरोधक जिसमें चौड़ाई d है पर आपतित होता है व अवरोधक से टकराकर विवृतित हो जाता है व विवर्तित प्रतिरोध को L2 की सहायता से पर्दे पर विवर्तन प्रतिरूप प्राप्त किया जाता है
विवर्तन की व्याख्या :- पर्दे के केंद्रीय बिंदु o पर चमकीले फ्रिंज बनती है क्योंकि o पर पहुचने वाली सभी द्वितीयक तरंगिका ओ के बीच पथान्तर का मान शून्य होता है परंतु पर्दे पर स्थिति p पर विवर्तन प्रतिरूप प्राप्त करने के लिए विभिन्न द्वितीयक तरंगिका ओ के बीच पथान्तर का मान ज्ञात करते हैं
एकल स्लिट के दो सिरों के बीच पथान्तर
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1) निम्निस्ट की स्थिति के लिए :-
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2) उचिस्ट की स्थिति के लिए :-
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Q 1 व्यतिकरण और विवर्तन में अंतर लिखिए ?
Ans -
व्यतिकरण - व्यतिकरण दो तिरंगाग्रो के अध्यारोपण के फल स्वरुप बनता है
इसमें दो रेखा स्लिट होते हैं
इसमें पाथांतर nλ पर अधिकतम तीव्रता प्राप्त होती है
इसमें पाथांतर (2n + 1)λ/2 पर न्यूनतम तीव्रता प्राप्त होती है
इसमें सभी उच्च उत्तिष्टो की तीव्रता समान होती है
विवर्तन - इसमें द्वितीयक तरंगीकाए अध्यारोपित होती हैं
इसमें केवल एक अवरोधक या एक स्लिट होता है
इसमें पाथांतर nλ पर न्यूनतम तीव्रता प्राप्त होती है
इसमें पाथांतर (2n + 1)λ/2 पर अधिकत तीव्रता प्राप्त होती है
इसमें सभी उच्च उत्तिष्टो की तीव्रता अलग अलग होती है
विवर्तन तीव्रता वितरण ग्राफ (एकल स्लिट द्वारा) :-
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विभेदन :- दो निकटवर्ती विंबो को पृथक पृथक देखने को विभेदन कहते हैं
विभेदन सीमा :- दो निकटवर्ती विंबो कि वह न्यूनतम दूरी की इनके प्रतिबिंब किसे प्रकाशिक उपकरण के द्वारा स्पष्ट विभेदित दिखाई दे यह न्यूनतम दूरी विभेदन सीमा कहलाती है
विभेदन क्षमता :- विभेदन सीमा का व्रत क्रम विभेदन क्षमता कहलाता है
विभेदन क्षमता = 1/विभेदन सीमा
दूरदर्शी की विभेदन सीमा :- अनंत पर स्थित दो बिम्बो के बीच कि वह न्यूनतम दूरी की अभीदृश्यक लेंस द्वारा उनके प्रतिबिंब पृथक पृथक दिखाई दे। यह न्यूनतम दूरी दूरदर्शी की विभेदन सीमा कहलाती है।
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सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता :- यदि दो बिंबो के बीच की प्रथम कृति दूरी अथवा दो बिंब S दूरी द्वारा अलग-अलग हो व उत्तल लेंस की फोकस पर स्थित हो।
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धुर्वीत व अधुर्वीत प्रकाश :-
अधुर्वीत प्रकाश :- यदि विद्युत क्षेत्र सदिश के कंपन तरंग संचरण की दिशा के लंबवत सभी दिशाओं में सम्मित हो तो प्राप्त प्रकाश अधुर्वीत प्रकाश कहलाता है
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धुर्वीत प्रकाश :- यदि विद्युत क्षेत्र सदिश के कंपन तरंग संचरण की दिशा के लंबवत केवल एक ही दिशा में सम्मित हो धुर्वीत प्रकाश कहलाता है
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ध्रुवण :- यदि किसी प्रक्रिया द्वारा विद्युत सदिश के कंपनो को तरंग संचरण की दिशा के लंबवत एक विशेष दिशा में सम्मित कर दिया जाए तो यह प्रक्रिया ध्रुवण कहलाती है। व प्राप्त प्रकाश ध्रुवित प्रकाश कहलाता है
अधुर्वीत प्रकाश के ध्रुवित प्रकाश में बदलने की प्रक्रिया ध्रुवण कहलाती है
कंपन तल व ध्रुवण तल :-
कंपन तल :- तरंग संचरण की दिशा में वह तल जिसमें तरंग संचरण की दिशा व विद्युत क्षेत्र सदिस के घटक उपस्थित हो तो यह तल कंपन तल कहलाता है।
ध्रुवण तल :- कंपन तल के लंबवत वह तल जिसमें तरंग संचरण की दिशा तो उपस्थित हो परंतु विद्युत क्षेत्र सदिश के घटक शून्य हो ध्रुवण तल कहलाता है।
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ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करने की विधियां :-
(1) परावर्तन द्वारा (2) अपवर्तन द्वारा (3) द्विअपवर्तन द्वारा (4) द्विवर्णता द्वारा (5) प्रकीर्णन द्वारा
(1) परावर्तन द्वारा :- जब किसी ए द्रवित प्रकाश को किसी पारदर्शी माध्यम जैसे काँच अथवा जल पर आपतित किया जाता है तो परावर्तित प्रकाश ध्रुवित हो जाता है
=> ब्रूस्टर कोण अथवा ध्रुवण कोण - वह आपतन कोण जिस पर ध्रुवण की मात्रा अधिकतम होती है ब्रूस्टर अथवा ध्रुवण कोण कहलाता है।
इस अवस्था में परिवर्तित किरण व अपवर्तक किरण एक दूसरे के लंबवत होती है
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=> ब्रूस्टर का नियम - ब्रूस्टर के अनुसार ध्रुवण कोण की स्पर्शज्या माध्यम के अपवर्तनांक के बराबर होती है
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(2) अपवर्तन द्वारा :- जब किसी ध्रुवित प्रकाश को किसी पारदर्शी माध्यम पर आपतित किया जाता है तो परावर्तित प्रकाश पूर्णत: ध्रुवित हो जाता है परंतु अपवर्तित प्रकाश आंशिक रूप से ध्रुवित होता है अतः पूर्णत ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करने के लिए अपवर्तित प्रकाश को कही कांच की पट्टी का पर आपतित किया जाता है जिसके कारण परावर्तित प्रकाश को पूर्णत धुर्वीत व अपवर्तित प्रकाश में भी ध्रुवण की मात्रा बढ़ जाती है अतः अपवर्तित प्रकाश पूर्णतः धुर्वीत हो जाता हैं व इन पट्टिका ओ का समूह पट्टिका पुंज कहलाता है।
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(3) द्विअपवर्तन द्वारा :- जब किसी अध्रुवीत प्रकाश को किसी विशेष प्रकार के क्रिस्टल जैसे कैल्साइट (CaCo3)आइसलैंड इस्पात, क्वार्टर आदि पर आपतित किया जाता है तो अपवर्तित किरण दो भागों में विभक्त हो जाती है
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एक किरण जो अपवर्तन के नियम का पालन करती है इसको साधारण किरण कहा जाता है
दूसरी किरण जो अपवर्तन के नियम का पालन नहीं करती है उसे असाधारण किरण कहा जाता है
पोलेराइड के उपयोग :-
=> इसका उपयोग समतल ध्रुवित प्रकाश को प्राप्त करने एवं इसकी जांच करने में किया जाता है
=> कार एवं अन्य वाहनों के वाहक रोधी कांच पर पोलेराइड की परत चढ़ाई जाती है जिससे परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम हो जाती है
=> त्रिविमीय चित्र को देखने के लिए
=> इसका उपयोग ट्रक कार आदि की हेडलाइटो में किया जाता है
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मेलस का नियम :- जब किसी धुर्वीत प्रकाश को किसी ध्रुवक एवं विश्लेषक में से पार गमित किया जाता है तो निर्गत प्रकाश की तीव्रता ध्रुवक एवं विश्लेषक की अक्षो के मध्य कोण की कोज्या(Cos0) के वर्ग के समानुपाति होती है
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अधुर्वीत,धुर्वीत व आंशिक धुर्वीत प्रकाश का संसूचक :-
अधुर्वीत प्रकाश :- जब किसी निकोल प्रिज्म अथवा पोलेराइड को घुमाने पर निर्गत प्रकाश की तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो प्रकाश ध्रुवित होता है
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धुर्वीत प्रकाश :- जब निकोल प्रिज्म अथवा पोलेराइड को घुमाया जाता है तो एक संपूर्ण चक्कर में तीव्रता दो बार अधिकतम वह दो बार न्यूनतम होती है तो प्राप्त प्रकाश ध्रुवित प्रकाश होता है
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आंशिक प्रकाश :- जब निकोल प्रिज्म या पोलेराइड को घुमाने पर निर्गत प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन होता है परंतु तीव्रता किसी भी स्थिति में शून्य नहीं होती है तो प्राप्त प्रकाश आंशिक ध्रुवित प्रकाश कहलाता है।
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