Light electrical effects and fluid waves 12th Physics Notes Pdf Download प्रकाश विद्युत प्रभाव एवं द्रव्य तरंगे chapter 13
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Lisson - 13
प्रकाश विद्युत प्रभाव एवं द्रव्य तरंगे
प्रकाश विद्युत प्रभाव :- जब किसी धातु पर विशिष्ट आवृत्ति का प्रकाश आपतित किया जाता है तो धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है यह प्रभाव प्रकाश विद्युत प्रभाव कहलाता है
उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को फोटो इलेक्ट्रॉन कहते हैं एवं इनके कारण प्रवाहित धारा प्रकाश विद्युत धारा कहलाती है
प्रकाश विद्युत प्रभाव की खोज वैज्ञानिक हर्ट्ज (Hz) ने की थी परंतु क्वांटम सिद्धांत के आधार पर इसको वैज्ञानिक आइंस्टीन ने समझाया था
हर्ट्ज का प्रयोग -
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=> हर्ट्ज निर्वाचित कांच की नलिका पर विसर्जन प्रयोग के दौरान यह प्रेक्षित किया कि जब कैथोड धातु पर पराबैगनी प्रकाश को आपतित किया जाता है विधुत विसर्जन की क्रिया आसानी से होने लगती है व विसर्जन बढ़ जाता है
हॉल बॉक्स का प्रयोग :-
=> हॉल बॉक्स के अनुसार जब किसी ऋणात्मक जस्ते zn की प्लेट पर पराबैंगनी किरणों को आपतित किया जाता है तो इसका ऋण आवेश घटकर शून्य हो जाता है वह पुनः प्रकाश को आपतित करने पर जस्ते की प्लेट धन आवेशित हो जाती है
लेनार्ड का प्रयोग :- लेनार्ड के अनुसार किसी भी धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन के लिए एक न्यूनतम आवृत्ति का प्रकाश आवश्यक होता है जब कैथोड पर पराबैंगनी किरणों को आपतित किया जाता है व परिपथ को बंद करने पर धारा प्रवाहित होती है परंतु यदि यही प्रकाश जब एनोड पर डाला जाता है तो इलेक्ट्रॉन तो पहले की तरह ही उत्सर्जित होते हैं परंतु धाराप्रवाह नहीं होता है
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कार्यफलन :- आपतित प्रकाश की वह उत्तम ऊर्जा जो किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए आवश्यक होती है कार्यफलन कहलाती है इसे ɸ° से व्यक्त करते हैं
ɸ° = hvन्यूनतम = hc/λ अधिकतम
कार्यफलन का मान धातु की प्रकृति पर निर्भर करता है
=> देहली आवृत्ति - आपतित प्रकाश कि वह न्यूनतम आवृत्ति जो किसी धातु के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए आवश्यक होती है देहली आवृत्ति कहलाती है
=> देहली तरंग धैर्य - देहली आवृत्ति से संबंधित तरंग धैर्य देहली तरंगधैर्य कहलाती है।
=> निरोधी विभव अथवा अंतक विभव - वह न्यूनतम ऋणात्मक विभव जो अधिकतम गतिज ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों को रोक सके निरोधी विभव या अन्तक विभव कहते है।
निरोधी विभव को V₀ से व्यक्त करते हैं
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इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन की विधियां -
(1) प्रकाश विद्युत उत्सर्जन ( प्रकाश विद्युत प्रभाव
(2) तापायनिक उत्सर्जन - यदि ताप के द्वारा अथवा किसी धातु से ऊष्माशोषण के द्वारा इलेक्ट्रॉन का उत उत्सर्जित होना तापायनिक उत्सर्जन कहलाता है
(3) क्षेत्र उत्सर्जन - यदि किसी धातु पर विद्युत क्षेत्र आरोपित करने पर 10 (की घात 8) V/M तो इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जित होना क्षेत्र उत्सर्जन कहलाता है
(4) द्वितीयक उत्सर्जन - अधिकतम गतिज ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों को धातु पर आपतित करके इलेक्ट्रॉनों को उत्सर्जित करना दितीय उत्सर्जन कहलाता है
प्रकाश विद्युत प्रभाव का प्रायोगिकअध्ययन:-
प्रकाश विद्युत प्रभाव के अध्ययन के लिए हम एक निर्वाचित कांच की नली में धातु से बने दो इलेक्ट्रोड कैथोड और एनोड लेते हैं इसमें एक इलेक्ट्रोड C जो इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करता है वह दूसरा इलेक्ट्रोड यह जो संग्राहक का कार्य करता है दोनों इलेक्ट्रॉडो को एक बैटरी धारा नियंत्रक (Rh) विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर तथा धारा मापने के लिए माइक्रोमीटर जुड़ा होता है इलेक्ट्रोडो के विभवांतर के चिन्ह बदलने के लिए दिक् परिवर्तन लगाया जाता है
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प्रकाश विद्युत प्रभाव की कार्यविधि की :-
जब कैथोड पर उचित आवर्ती का प्रकाश आपतित किया जाता है तो कैथोड द्वारा इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है
Imp*
प्रकाश विद्युत प्रभाव पर एनोड के विभव का प्रभाव :-
प्रारंभ मैं जब एनोड का वैभव शुन्य होता है तो इलेक्ट्रॉन तो उत्सर्जित होते हैं परंतु एनोड की तरफ गति नहीं करते हैं
धारा का मान सुनने होता है परंतु यदि धीरे-धीरे एनुअल के वैभव को धीरे धीरे बढ़ाया जाता है तो उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की तरफ कती करते हैं एनोड के वैभव को अधिकतम करने पर प्रकाश विद्युत धारा बढ़कर संतृप्त हो जाती है
यदि एनोड को कैथोड के सापेक्ष ऋण विभव पर रखने पर इलेक्ट्रोन पहले की तरह उत्सर्जित होते हैं परंतु प्रति प्रसन्न होने के कारण रुक जाते हैं अतः इसको निरोधी विभव कहा जाता है
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नियत आवृत्ति तथा नियत प्रकाश की तीव्रता के लिए प्रकाशिक धारा व संगठन के मध्य ग्राफ
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Imp*
प्रकाश विद्युत धारा पर प्रकाश की तीव्रता का प्रभाव :-
यदि आवृत्ति को नियत रखते हुए आदित्य प्रकाश की तीव्रता बढ़ाई जाती है तो उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में वृद्धि होती है इलेक्ट्रॉनों की संख्या में वृद्धि होने के कारण प्रकाश विद्युत धारा का मान भी बढ़ जाता है परंतु तीव्रता बढ़ाने पर निरोधी विभव के मान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है
आपतित प्रकाश की तीव्रता ∝ प्रकाश विद्युत धारा
I ∝ i
भिन्न-भिन्न ने तीव्रता ओं के लिए प्रकाश विद्युत धारा व एनोड के वैभव के बीच ग्राफ
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Imp*
प्रकाश विद्युत धारा पर आवृत्ति का प्रभाव :-
यदि तीव्रता को नियत रखते हुए आपतित प्रकाश की आवृत्ति को बढ़ाया जाता है तो इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा के मान में वृद्धि होती है इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा बढ़ने के कारण निरोधी विभव का मान भी बढ़ता है परंतु प्रकाश विद्युत धारा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
किसी भी धातु से इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन के लिए आपतित प्रकाश की एक निश्चित न्यूनतम आवृत्ति की आवश्यकता होती है जिसे देहली आवृत्ति कहा जाता है यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति से कम होती है तो फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते हैं यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति के बराबर होती है तो इलेक्ट्रॉन तो उत्सर्जित होते हैं परंतु इनकी गतिज ऊर्जा का मान शुन्य होता है व देहली आवृत्ति के संगत निरोधी विभव का मान भी शून्य होता है आपतित प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति से ज्यादा करने पर निरोधी विभव का मान जाता है
नियत तीव्रता के आपतित प्रकाश की विभिन्न विभिन्न आवर्ती यों के लिए एनोड विभव में धारा ग्राफ़
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आपतित प्रकाश की आवृत्ति एवं निरोधी विभव ग्राफ
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प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियम / प्रकाश विद्युत प्रभाव का संक्षिप्त सार :-
=> यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति से कम होती है तो धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते हैं
=> यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति से ज्यादा होती है तो धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं
=> धातु पर प्रकाश आपतित होने व इलेक्ट्रॉन के बाहर निकलने में कोई समय अंतराल नहीं होता है
=> प्रकाशिक इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा शून्य से लेकर अधिकतम मान के मध्य कुछ भी हो सकती है
=> निरोधी विभव पर प्रकाश विद्युत धारा का मान शून्य होता है
=> आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर प्रकाश विद्युत धारा के मान में वृद्धि होती है परंतु विरोधी भी बहुत अप्रभावित रहता है
=> आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर निरोधी विभव बढ़ता है परंतु धारा अप्रभावित रहती है
प्रकाश के तरंग सिद्धांत की विफलता/असमर्थता/कमियां :-
तरंग सिद्धांत के अनुसार जब प्रकाश किसी धातु की सतह पर आपतित होता है तो संपूर्ण उर्जा सतह पर सतत रूप से वितरित हो जाती है अतः इलेक्ट्रॉनों को उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा संचित करने में कुछ समय लग जाता है परंतु प्रयोग के अनुसार धातु पर प्रकाश के गिरते ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाते हैं
तरंग सिद्धांत के अनुसार जब आप अतीत प्रकाश की तीव्रता को बढ़ाया जाता है तो उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की उर्जा भी बढ़नी चाहिए अतः निरोधी विभव तीव्रता पर निर्भर करेगा परंतु प्रायोगिक तथ्य इसके विरूद्ध हैं
प्रकाश तरंगों की आवृत्ति कुछ भी हो इलेक्ट्रॉन अवश्य उत्सर्जित होने चाहिए बशर्तें प्रकाश में इतनी तीव्रता हो जितनी कि वह धातु को इलेक्ट्रॉनों को आवश्यक ऊर्जा प्रदान कर सके।
परंतु प्रयोग के अनुसार प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति से अधिक होने पर ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होंगे
तरंग सिद्धांत के अनुसार प्रकाश तरंग की आवृत्ति तथा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा में कोई संबंध नहीं होना चाहिए परंतु प्रायोगिक तथ्य के अनुसार इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा आवृत्ति के साथ बढ़ती है
आइंस्टीन द्वारा प्रकाश उत्सर्जन की व्याख्या :-
=> आइंस्टीन के अनुसार धातु की प्लेटें प्रकाश को फोटो नो के रूप में अवशोषित करती हैं प्रत्येक फोटोन की ऊर्जा आवृत्ति पर निर्भर करती है
=> एक फोटो एक समय में एक ही इलेक्ट्रॉन से टकराकर संपूर्ण ऊर्जा स्थानांतरित कर देता है यदि यही उर्जा किसी समय इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित करने के लिये पर्याप्त है तो इलेक्ट्रॉन उसी क्षण सतह से बाहर आ जाते हैं अतः प्रकाश विद्युत प्रभाव एक ताक्षणिक प्रक्रम है
=> यदि दिए गए फोटो नो की संख्या बढ़ा दी जाए तो उत्सर्जित फोटो नो की संख्या बढ़ जाती है जिससे संतृप्त प्रकाश विद्युत धारा के मान में वृद्धि होती है
=> किसी एक समय फोटोन एक ही इलेक्ट्रॉन से क्रिया करता है वह यह फोटोन की ऊर्जा इलेक्ट्रॉन के द्वारा निम्न प्रकार उपयोग में ली जाती है
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=> K max = hv - hu उपरोक्त समीकरण द्वारा स्पष्ट होता है कि अधिकतम गतिज ऊर्जा और निरोधी विभव आवर्ती पर निर्भर करते हैं यह दिए गए स्रोत की तीव्रता पर निर्भर नहीं करते हैं
=> आपतित प्रकाश की आवृत्ति दहेली आवर्ती से कम होने पर इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते हैं क्योंकि इस अवस्था में गतिज ऊर्जा का मान ऋण आत्मक होता है
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प्रकाश दैत्य प्रकृति :- प्रकाश तरंग व कण दोनों की तरह कार्य करता है
(1) न्यूटन का कणिका वाद सिद्धांत
(2) हाइगेंस का तरंग सिद्धांत
(3) मैक्स वेल का विद्युत चुंबकीय सिद्धांत
(4) प्लांक का क्वांटम सिद्धांत
=> प्रकाश की कुछ प्रायोगिक घटनाएं जैसे व्यतीकरण विवर्तन एवं ध्रुवण यह घटनाएं प्रकाश की तरंग प्रकृति को व्यक्त करती हैं
=> प्रकाश की अन्य घटनाएं जैसे सरल रेखीय गमन परावर्तन अपवर्तन प्रकाश विद्युत प्रभाव यह घटनाएं प्रकाश की कणीय प्रकृति को व्यक्त करती है
=> प्रकाश तरंग प्रकृति व्यक्त करेगा या कणिय प्रकृति व्यक्त करेगा यह प्रायोगिक घटना पर निर्भर करेगा अतः प्रकाश तरंग व्याकरण दोनों की तरह व्यवहार करता है अतः सिद्ध होता है कि प्रकाश दैत्य प्रकृति दर्शाता है
डी ब्रोग्ली की परिकल्पना एवं द्वव्य की दैत्य प्रकृति एवं तरंग धैर्य :-
डी ब्रोग्ली में परिकल्पना की जिस प्रकार प्रकाश के दो रूप तरंग व कण होते हैं उसी प्रकार पदार्थ पदार्थ के भी दो रूप तरंग व कण होने चाहिए क्योंकि प्रत्येक पदार्थ सूक्ष्म कणों से मिलकर बना होता है इस कारण इसका स्वरूप कणीय होता है डी ब्रोग्ली ने कल्पना की की पदार्थ का कण स्वरूप होते हुए भी पदार्थ के कणों से तरंग संबंध होनी चाहिए तथा इन्हीं कणों से संबंध तरंगों को द्रव्य तरंगे अथवा पदार्थ की तरंगे कहा जाता है
=> इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन गतिशील अवस्था में तरंग प्रकृति प्रदर्शित करते हैं
=> द्रव्य तरंगों की तरंग धैर्य इनके संवेग के व्यतिक्रमानुपाती होती है
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दि ब्रोग्ली समीकरण - λ = h/p
गतिज ऊर्जा व संवेग में संबंध :-
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भिन्न प्रकार के द्रव्य कोणों से द्रव्य तरंगों की तरंग धैर्य :-
माना कि कोई कण जिसका आवेश q है व उसको v विभवांतर से त्वरित किया जाता है
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(1) इलेक्ट्रॉन की तरंग धैर्य :-
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(2) प्रोटोन की तरंग धैर्य :-
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(3) अनावेशित कणों जैसे न्यूट्रॉन एवं गैसीय परमाणुओं के लिए :-
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फोटोन की अवधारणा :-
प्लांट के अनुसार किसी पिंड द्वारा विकिरण का उत्सर्जन एवं अवशोषण सतत रूप से न होकर छोटे-छोटे उर्जा बंडलो के रूप में होता है इन ऊर्जा बंधुओं को फोटो अथवा क्वांट कहा जाता है आइंस्टीन के अनुसार प्रकाश ऊर्जा फोटोनों के रूप में क्वांटिकृत होती है
फोटोन के गुण धर्म :-
=> निर्वात में फोटो सदैव प्रकाश की चाल से गति करते हैं
=> प्रत्येक फोटोन की निश्चित ऊर्जा तथा संवेग होते हैं
=> फोटोन किसी भी द्रव्य करण से टक्कर कर सकता है परंतु टक्कर में इसकी कुल ऊर्जा तथा संवेग नियत रहते हैं
=> फोटोन विद्युत उदासीन होते हैं यह विद्युत क्षेत्र व चुंबकीय क्षेत्र द्वारा विक्षेपित नहीं होते हैं
=> टक्कर के दौरान फोटोन अवशोषित हो सकता है अथवा नए फोटोन का निर्माण भी हो सकता है
=> टक्कर के दौरान फोटोनो की संख्या का संरक्षित रहना आवश्यक नहीं है
=> एक फोटोन की ऊर्जा
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हाइजेन बर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत :-
इस सिद्धांत के अनुसार किसी क्षण पर एक ही कण की स्थिति में अनिश्चितता एवं संवेग में अनिश्चितता का गुणनफल कभी भी h/4π अथवा h/2 से कम नहीं हो सकता
इस सिद्धांत के अनुसार किसी क्षण पर एक ही कण की स्थिति तथा संवेग का एक साथ ही एक ही दिशा में सफलतापूर्वक निर्धारण नहीं किया जा सकता
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जिन धातुओं का आकार बड़ा होता है उनका गुणनफल कम होता है सबसे कम कार्य फलन सीजियम धातु का होता है क्षार धातु (Na, K, Rb, Cs) इनका कार्य फलन कम होता है
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