Nuclear Physics 12th Physics Notes Pdf Download || नाभिकीय भौतिकी chapter 15

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 नाभिक (Nucleus) Chapter 15 

नाभिक:-

> परमाणु का समस्त धन आवेश एवं अधिकांश द्रव्यमान केंद्र पर सूक्ष्म भाग में एकत्र होता है इसे नाभिक कहते हैं
> नाभिक का आकार (10 की घाट -15) कोटी का होता है
> परमाणु प्रोटोन न्यूट्रॉन से मिलकर बना होता है
> प्रोटोन व न्यूट्रॉन को सम्मिलित रूप से न्यूक्लिओन कहते हैं
> नाभिक में प्रोटीन व न्यूट्रॉन की संख्या को द्रव्यमान संख्या A कहते हैं
> नाभिक में प्रोटोनो की संख्या परमाणु क्रमांक z कहलाती है
> प्रोटोन धन आवेशीत होता है
> न्यूट्रॉन उदासीन होता है
> किसी तत्व का प्रत्येक निम्न होता है zXa( घाटों के रूप में)


समस्थानिक :- एक ही तत्व के परमाणु जिनमें द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न तथा परमाणु क्रमांक( प्रोटोनो की संख्या)समान हो समस्थानिक कहलाता है
जैसे 1H1 1H2 1H3 
सम्भारिक :- वे नाभिक जिनमें द्रव्यमान संख्या (न्यूट्रॉनो) सामान हो समभारिक कहलाता है
जैसे - 6C14 7C14
 
सम न्यूट्रॉनिक - नाभिक जिनमें केवल न्यूट्रॉनो की संख्या समान हो सम न्यूट्रॉनिक कहलाते हैं
इसमें परमाणु क्रमांक और द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न होती है
1H3 2H4
N = 3-1 = 2
N = 4-2 = 2
 
दर्पण नाभिक : - वे नाभिक जिनकी द्रव्यमान संख्या समान हो तथा एक नाभिक को प्रोटॉनों की संख्या दूसरे के न्यूट्रॉनो की संख्या के बराबर हो तथा दूसरे के प्रोटॉनों की संख्या पहले के न्यूट्रॉनो की संख्या के बराबर हो, तो दर्पण कहलाते हैं।
 
 नाभिक का आकार - अधिकांशत नाभिक की त्रिज्या उनकी द्रव्यमान संख्या की 1/3 घाट के समानुपाती होती है

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नाभिक का आयतन - image

=> परमाणु द्रव्यमान मात्रक - C12 परमाणु के द्रव्यमान में 1/12 भाग को परमाणु द्रव्यमान मात्रक कहते हैं एक परमाणु द्रव्यमान मात्रक = C12 परमाणु का द्रव्यमान/12

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=> प्रोटॉन का द्रव्यमान - image

-:- द्रव्यमान ऊर्जा संबंध (द्रव्यमान ऊर्जा) - आइंस्टीन के अनुसार द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित होता है द्रव्यमान व ऊर्जा में संबंध

E = MC2

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=> द्रव्यमान क्षति - किसी नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान उसके न्यूक्लियोनो के द्रव्यमानो के योग के बराबर होता है द्रव्यमान में इस अंतर को द्रव्यमान क्षति कहते हैं

द्रव्यमान क्षति = प्रोटोनो का द्रव्यमान + न्यूट्रॉनो का द्रव्यमान - नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान

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Note- आइंस्टीन के अनुसार यह ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होता है इसे नाभिक की बंध ऊर्जा कहते हैं

-:- नाभिक की बंधन ऊर्जा - सी नाभिक के न्यूक्लिनो को अलग अलग करने के लिए न्यूनतम ऊर्जा को नाभिक की बंधन ऊर्जा कहते हैं!

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> प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा - नाभिक की बंधन ऊर्जा मे न्यूक्लिनो की संख्या A का भाग देने पर प्राप्त उर्जा प्रती न्यूक्लिनो बंधन ऊर्जा कहलाती है
_>{ सदिश चिन्ह}
B =∆E/A

> किसी नाभिक की प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा जितनी अधिक होगी नाभिक उतना ही अधिक अस्थाई होगा।
> प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा और द्रव्यमान संख्या में खींचा गया ग्राफ बंधन उर्जा वक्र कहलाता है
>

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> प्रत्येक नाभिक की बंधन ऊर्जा धनात्मक होती है
> प्रारंभ में द्रव्यमान संख्या बढ़ती है तो बंधन ऊर्जा बढ़ती है
> द्रव्यमान संख्या Fe56 की प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा सर्वाधिक होती है इसके पश्चात प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा घटती है
> द्रव्यमान संख्या 4,12,16 के नाभिको की प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा उनके समीप व्रति नाभिक से अधिक होती है अतः वे अधिक स्थाई होती है इसलिए ग्राफ में शिखर बिंदु प्राप्त होते हैं!
> भारी नाभिको की प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा कम होती है
> इन्हें दो भागों में तोड़ दिया जाए तो प्रत्येक नाभिक की प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा बढ़ जाती है, जिससे इनका स्थाईत्व बढ़ जाता है इस प्रक्रिया को नाभिक विखंडन कहते हैं

> दो या दो से अधिक हल्के नाभिक मिलकर एक बड़ा नाभिक बनाते हैं जिससे उसकी प्रति न्यूक्लिओन बंधन ऊर्जा बढ़ जाती है नाभिकीय संलयन कहते हैं

-:- नाभिकीय बल :-

> नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉनो आपस में बांधे रखने वाले बल को नाभिकीय बल कहते हैं
> नाभिकीय बल की प्रकृति आकर्षणात्मक होती है
> परास कम होती है
> नाभिकीय बल अत्यंत तीव्र होता है
> नाभिकीय बल आवेश पर निर्भर नहीं करता है अर्थात प्रोटोन - प्रोटोन, प्रोटोन - न्यूट्रॉन और न्यूट्रॉन - न्यूट्रॉन पर समान लगता है
> नाभिकीय बल न्यूक्लिओन के चक्रण की दिशा पर निर्भर( आश्रित रहता है) करता है

-:- रेडियो एक्टिवता -

पदार्थों के स्वतः विखंडन की घटना को रेडियो एक्टिवता कहते हैं।
वे पदार्थ जो स्वतः विघटित होते हैं रेडियो एक्टिव पदार्थ कहलाते हैं जैसे - यूरेनियम, थोरियम, पोलो नियम, एक्टे नियम, Etc.

=> रेडियो एक्टिव क्षय नियम/ रदाफोर्ड सोडी का नियम/ चर घातांकी नियम :-

> किसी क्षण पर रेडियो एक्टिव परमाणुओं के क्षय होने की दर उस समय पर उपस्थित कुल सक्रिय परमाणुओं की संख्या के समानुपाती होती है

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-:- सक्रियता -
एकांक समय में क्षय होने वाले नाभिकों की संख्या को सक्रियता कहते हैं

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-:- आर्ध्द आयु -
वह समय जिसमें किसी रेडियो एक्टिव के सक्रिय परमाणुओं की संख्या घटकर प्रारंभ की आधी रह जाए आर्ध्द आयु काल कहलाती है,

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=> आर्ध्द आयु काल और सक्रिय परमाणुओं की संख्या का ग्राफ

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-:- आर्ध्द आयु(T)व क्षयांक(लेमडा) में संबंध -

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-:- माध्य आयु :- रेडियो एक्टिव तत्व प्रतिदर्श के सभी नाभिकों की आयु का औसत, माध्य आयु काल कहलाता है

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आर्ध्द आयु और माध्य आयु में संबंध -

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α , β और γ किरणों के गुण :-
(1) α कणों के गुण :-

=> ये धन आवेशित होते हैं
=> आवेश प्रोटोन के आवेश का दुगना होता है 3.2×10(-19)℃
=> द्रव्यमान प्रोटोन के द्रव्यमान का 4 गुना होता है
=> आयनीकरण क्षमता सर्वाधिक β कणों की 100 गुणा तथा γ कणों 10 गुना होती है
=>  भेधन क्षमता कम होती है
=> फोटोग्राफिक प्लेटो को प्रभावित करती हैं
=> विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र में विक्षेपित होती है।
=> ऊर्जा स्पेक्ट्रम रेखिए या विभक्त होती है
=> प्रदीप्तसील पदार्थों पर गिरने पर चालन उत्पन्न करती है


(2) β कणों के गुण :-

=> ये ऋण आवेशित होते हैं
=> आवेश 1.6×10( की घात-19) व द्रव्यमान 9.1×10( की घात-3)kg होता है1
=> आयनीकृत क्षमता α कणों से कम और γ कणों से ज्यादा होती है
=> भेदन क्षमता α कणों से अधिक और γ कणों से कम होती है
=> विद्युत व चुंबकीय क्षेत्र में विक्षेपित होती है
=> फोटोग्राफी प्लेटो को प्रभावित करती है
=> ऊर्जा स्पेक्ट्रम सतत होता है
=> प्रदीप्तशील पदार्थों पर गिरने पर प्रदीप्त उत्पन्न करते हैं

(3) γ कणों के गुण :-

=> ये विद्युत चुंबकीय तरंगे होती हैं
=> आवेश रहित होती है
=> विराम द्रव्यमान शून्य होता है
=> प्रकाश के वेग से चलती है
=> आयनीकरण क्षमता कम होती है
=> भेदन क्षमता अत्यधिक होती है
=> फोटोग्राफी प्लेटो को प्रभावित करती हैं
=> विद्युत व चुंबकीय क्षेत्र में विक्षेपित होती है
=> ऊर्जा स्पेक्ट्रम रेखीय व सतत होता है
=> प्रकाश विद्युत प्रभाव, क्रोयटन प्रभाव, युग्म उत्पादन आदि प्रभाव दर्शाती है

 α , β क्षय : -

α क्षय -  जब किसी तत्व के परमाणु से α कण उत्सर्जित होते तो उन का परमाणु क्रमांक 2 से व द्रव्यमान संख्या 4 से कम हो जाती है।

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क्षय की प्रक्रिया में द्रव्यमान क्षति होती पर द्रव्यमान ऊर्जा में बदल जाता है जो α क्षय की प्रक्रिया से मुक्त होती है इसे विघटन ऊर्जा कहते हैं

β क्षय -  जब किसी नाभिक से β कणों का उत्सर्जन होता है तो नाभिक से इलेक्ट्रॉन या एक प्रोटोन उत्सर्जन होता है
β+ क्षय में नाभिक से प्रोटोन का उत्सर्जन होता है इसमें द्रव्यमान मे संख्या परिवर्तन नहीं होता है तथा परमाणु क्रमांक 1 कम हो जाता है।

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β+ क्षय में नाभिक से 1 इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होता है तो द्रव्यमान संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है परमाणु क्रमांक 1 से बढ़ जाता है

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न्यूट्रॉनों की परिकल्पना :-

=> β+ क्षय मैं कोणीय संवेग संरक्षण और ऊर्जा संरक्षण की अनुपालन नहीं होती है इसलिए पाउली ने एक परिकल्पना प्रस्तुत की जिसके अनुसार β+ क्षय एक अन्य कारण न्यूट्रॉन तथा β+ क्षय के दौरान एक अन्य कण एन्टी न्यूट्रिनो का उत्सर्जन होता है
=> न्यूट्रिनो और एंटीन्यूट्रिनो का विराम द्रव्यमान शून्य होता है
=> आवेश शून्य होता है
=> कोणीय संवेग (1/2)(h/2 पाई) होता है
=> न्यूट्रिनो के चक्रण की दिशा उसके संवेग की दिशा के विपरीत तथा एंटीन्यूट्रिनो का चक्रण संवेग की दिशा के समांतर होता है
=> इस परिकल्पना के दौरान β+ क्षय मैं कोणीय संवेग संरक्षण तथा ऊर्जा संरक्षण की अनुपालन होती है

γ क्षय (गामा)  :-

=> γ किरणें विद्युत चुंबकीय तरंगे होती है
=> जब रेडियो एक्टिव विघटन में α या β कण  उत्सर्जित होते हैं तो उत्सर्जन के पश्चात नाभिक उत्तेजित अवस्था में आ जाता है जब यह पुण: मूल अवस्था में लौटता है तो γ किरणें उत्सर्जित करता है

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=>  γ क्षय मे परमाणु क्रमांक और द्रव्यमान संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं


नाभिकीय अभिक्रिया :-

जब किसी लक्ष्य नाभिक (X) पर कोई कण a आप अतीत किया जाता है तो एक स्थाई नाभिक बनता है इसे संलयन नाभिक कहते हैं
यह अस्थाई एक अन्य कण y तथा b मैं रूपांतरित हो जाता है इस अभिक्रिया को नाभिकीय अभिक्रिया कहते हैं

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अभिक्रिया में निम्न संरक्षण नियमों की अनुपालना होती है
(1) आवेश संरक्षण (2) न्यूक्लियोनो का संरक्षण (3) रेखीय संवेग संरक्षण (4) कोणीय संवेग संरक्षण (5) द्रव्यमान ऊर्जा संरक्षण

नाभिकीय ऊर्जा :-

नाभिकीय अभिक्रिया में प्रारंभिक द्रव्यमान और अंतिम द्रव्यमान में कुछ अंतर होता है अर्थात द्रव्यमान क्षति होती है यह यह द्रव्यमान क्षति ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है
 E = MC2

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नाभिकीय विखंडन : - किसी भारी नाभिक के दो या दो से अधिक भागों में विभक्त होने की घटना को नाभिकीय विखंडन कहते हैं
नाभिकीय विखंडन में द्रव्यमान क्षति होती है जो कि ऊर्जा में बदल जाती है इस प्रकार नाभिकीय विखंडन में अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होती है
 
यूरेनियम का विखंडन - जब एक मंद गामी में न्यूट्रॉन U235 के नाभिक से टकराता है तो U236 प्राप्त होता है जो कि अस्थाई होता है जो कि तुरंत ही भागो में टूट जाता है तथा तीन न्यूट्रॉन और अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होती है

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श्रंखला अभिक्रिया :-

जब U235 के नाभिक पर मंद गामी न्यूट्रोनों की बौछार जाती है तो यूरेनियम का नाभिक 2 भागो में टूट जाता है तथा इसके साथ तीन न्यूट्रॉन और ऊर्जा मुक्त होती है यदि अनुकूल परिस्थितियों में तीन न्यूट्रॉन यूरेनियम का विखंडन करे तो 9 नए न्यूट्रॉन प्राप्त होते हैं इस प्रकार यदि विखंडन से प्राप्त न्यूट्रॉन लगातार विखंडन करते रहे तो विखंडन की एक श्रंखला बन जाती है इसे श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं

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श्रृंखला अभिक्रिया के लिए आवश्यक है कि विखंडन से प्राप्त न्यूट्रॉन में से कम से कम यूरेनियम आगे विखंडन करें।

न्यूट्रॉन गुणन गुणांक / पुर्न: उत्पादन गुणांक :-

किसी स्तर पर निकले न्यूट्रॉनों के द्वारा विखंडनो की संख्या तथा इसके पिछले स्तर पर निकले न्यूट्रोनो के द्वारा विखंडनो की संख्या का अनुपात न्यूट्रॉन न्यूट्रॉन गुणन गुणांक / पुर्न: उत्पादन गुणांक कहलाता है इसे k से  व्यक्त करते हैं

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=> यदि k > 1 हो तो अभिक्रिया तेजी से बढ़ती है
=> यदि k = 1 हो तो अभिक्रिया नियत दर से बढ़ती है
=> यदि k < 1 हो तो अभिक्रिया घटती है

श्रंखला अभिक्रिया 2 प्रकार की होती है
(1) नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया
(2) अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया

(1) नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया - यदि श्रृंखला अभिक्रिया में विखंडन को इस प्रकार नियंत्रित किया जा सके कि विखंडन से प्राप्त ऊर्जा सदैव विस्फोटक की सीमा से कम रहे तो इसे नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं
परमाणु भट्टी में U का विखंडन नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा संपन्न होता है

परमाणु भट्टी : - परमाणु भट्टी के मुख्य निम्न भाग होते हैं
( 1) विखंडनिय पदार्थ/ ईंधन :- परमाणु भट्टी में U235 , प्राकृतिक यूरेनियम(U233), या (PU239) का उपयोग किया जाता है

(2) मंदक :- विखंडन से प्राप्त न्यूट्रॉनो का वेग बहुत अधिक होता है इसको कम करने के लिए मंदक का उपयोग किया जाता है इसके लिए भारी पानी D2O, ग्रेफाइट,Bao (बेरेलियम ऑक्साइड), का उपयोग किया जाता है

(3) नियंत्रक छड़े :- परमाणु भट्टी में विखंडन की दर को नियंत्रित करने के लिए कैडियम cd की छड़ों का उपयोग करते हैं क्योंकि cd न्यूट्रोनों का उत्तम अवशोषक है

(4) शीतलक :- विखंडन की क्रिया में अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होती है जिससे परमाणु भट्टी से बाहर निकलने के लिए सीतलक का उपयोग किया जाता है इसके लिए वायु, सामान्य पानी, भारी पानी तथा द्रव्य व स्थान में रहने वाली धातुओं का उपयोग करते हैं

(5) परीरक्षक : - नाभिकीय भट्टी में विखंडन से अत्यधिक हानिकारक किरणे निकलती है जिसे रोकने के लिए भट्टी के चारों ओर कंकरीट या इस्पात की 1.5m मोटी दीवार बनाई जाती है

क्रियाविधि : -

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नाभिकीय संलयन :- जब दो या दो से अधिक हल्के नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं तो इसे नाभिकीय संलयन कहते हैं
=> नाभिकीय संलयन में संलयन करने वाले नाभिक का योग संलयन से प्राप्त नाभिक के द्रव्यमान से अधिक होता है अर्थात द्रव्यमान क्षति होती है यह ऊर्जा में बदल जाती है जो संलयन से प्राप्त होती है
=> सूर्य एवं तारों में ताप नाभिकीय अभिक्रिया - वैज्ञानिक बेथे के अनुसार सूर्य एवं तारों में ऊर्जा का जनन ताप नाभिकीय अभिक्रियाओ से होता है जिनमें H के नाभिक मिलकर He के नाभिक संलयित होते हैं
=> H नाभिको का He नाभिको में संलयन निम्न दो प्रकार से होता है
(1) कार्बन नाइट्रोजन चक्र :- इसमें कार्बन एक उत्प्रेरक की भांति कार्य करता है इसमें 4H के नाभिक मिलकर एक He हीलियम का नाभिक कई ताप नाभिकीय अभिक्रिया ओ के चक्र द्वारा होता है

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इस प्रकार कार्बन नाइट्रोजन चक्र में 4H नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं

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Q -1 दो नाभिकों की त्रिज्या का अनुपात 1:2 है इसके द्रव्यमान संख्याओं का अनुपात लिखिए?

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Q-2 एक रेडियो एक्टिव पदार्थ 10 वर्ष में घटकर 25% रह जाता है उसकी अर्ध आयु और छाया क्षयांक की गणना करो?

Q- 3 एक रेडियोएक्टिव तत्व के 75% भाग का 24 वर्ष में विघटन हो जाता है उसकी अर्ध आयु ज्ञात करो

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