Electro Chemestry Chapter Notes Pdf Download Free 12th Class वैधुत रसायन पाठ 3

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Electro Chemestry
Electro Chemestry

वेद्युत रसायन - 3


परिचय :
(1) रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत विद्युत ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में तथा रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित का अध्ययन किया जाता वैद्युत रसायन कहलाती है

(2) वह युक्ति जिसके माध्यम से रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में तथा विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है सैल कहलाती है
◆ सैल निम्न दो प्रकार के होते हैं
(1) - विद्युत रासायनिक सेल
(2) - विद्युत अपघटनी सेल 

(1) - विद्युत रासायनिक सेल - वे सेल जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देते हैं विद्युत रासायनिक सेल कहलाते हैं 

 जैसे -  डेनियल सेल, शुष्क सेल सीसा संचायक सेल मरकरी सेल 

( 2) - विद्युत अपघटनी सेल : - वे सेल जो विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित कर देते हैं विद्युत अपघटनी सेल कहलाते हैं

जैसे - लवण (विद्युत अपघट्य) के विद्युत अपघटन से निर्मित सेल

(3) - चाहे विद्युत रासायनिक सेल हो या विद्युत अपघटनी सेल हो दोनों ही प्रकार के सेल में ऑक्सीकरण व अपचय दोनों अभिक्रिया अर्थात रेडॉक्स अभिक्रिया साथ साथ जारी रहती है

ऑक्सीकरण - इलेक्ट्रॉन त्यागना
अपचयन - इलेक्ट्रोल ग्रहण करना

(4) - सेल का वह स्थान जहां ऑक्सीकरण और अपचयन अभिक्रिया होती है इलेक्ट्रोड कहलाता है
( 5 ) - वह इलेक्ट्रोड जिस पर ऑक्सीकरण अभिक्रिया होती है एनोड कहलाता है
( 6 ) - वह इलेक्ट्रोड जिस पर अपचयन अभिक्रिया होती है कैथोड कहलाता है
( 7) - कुछ तत्व में इलेक्ट्रॉन त्यागकर ऑक्सीकरण होने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है( जैसे - Zn) तथा कुछ तत्वों में इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके अपचयित होने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है जैसे- Cu

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(8) - हाइड्रोजन एकमात्र ऐसा तत्व है जिसमें ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति तथा अपयित होने की  प्रवृत्ति दोनों बराबर होती है  इसलिए इसका उपयोग मानक इलेक्ट्रोड विभव बनाने में किया जाता है

◆ डेनियल सेल की कार्य प्रणाली एवं बनावट ◆

image   Cu2+ Zn 2+

 (1) - Zn में ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति अधिक होने के कारण zn की  छड़ से Zn 2+ आयन विलियन में आ जाते हैं तथा ऑक्सीकरण से प्राप्त इलेक्ट्रॉन छड़ पर ही रह जाते हैं जिससे छड़ ऋणावेशित हो जाती है
(2) - ऋणावेशित zn की छड़ से इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ से होकर cu की छड़ की ओर आते है।
(3) - Cu की छड़ में अपचयित होने की प्रवृत्ति अधिक होने के कारण विलियन से Cu 2+ आयन छड़ पर आ जाते हैं और इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके यही रह जाते हैं
( 4) - इसी प्रकार Zn कि छड़ ऑक्सीकरण व Cu कि छड़ का अपचयन होता हैं जिससे Zn से Cu की छड़ की ओर इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह होता है और Cu से Zn की ओर विधुत धारा का प्रवाह होता है।

डेनियल सेल में संपन्न होने वाली अभिक्रिया -


एनोड पर-
Zn ➡ Zn 2+ +2e- (ऑक्सीकरण)

कैथोड पर -
 Cu 2+ +2e- ➡ Cu (अपचयन)

संपूर्ण रेडोक्स अभिक्रिया
     Zn + Cu +2 ➡ Zn +2 + Cu

Note - लवण सेतु दोनों को संतुलित करने का कार्य करता है।

विधुत रासायनिक सेल के प्रदर्शन की परीपाटिया :- 
(१)- सेल के एनोड को बायी ओर तथा कैथोड को दाई और लिखा जाता है
(२)- एनोड़ का प्रदर्शन करते समय धातु व धातु धनायन के बीच एक खड़ी रेखा खींच देते हैं

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(३)- कैथोड का प्रदर्शन करते समय धातु आयन व धातु के बीच खड़ी रेखा की देते हैं

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(४)- संपूर्ण सेल का प्रदर्शन करने के लिए एनोड़ व कैथोड को लिखकर दोनों के बीच 2 समांतर रेखा खींच देते हैं जो लवण सेतु को दर्शाती है

संपूर्ण सेल का प्रदर्शन

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(५)- डेनियल सेल की संपूर्ण सेल अभिक्रिया

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* इलेक्ट्रोड विभव :- 
(१)- जब किसी धातु की छड़ को धातु के लवण के जलीय विलयन में डुबो या जाता है तो विलियन के सापेक्ष धातु की छड़ धनावेशित अथवा ऋणावेशित हो जाती है इसी प्रकार छड़ व विलियन के बीच उत्पन्न विभवांतर को इलेक्ट्रो विभव कहां जाता है
(२)- इसे E से दर्शाते हैं तथा इसका मात्रक Volt होता है
(३)- यदि छड़ को विलियन में डालने पर इसका ऑक्सीकरण होता है तो इसके मध्य उत्पन्न विभव को ऑक्सीकरण विभव कहा जाता है इसे Eo.p से दर्शाते हैं।
(४)- यदि छड़ को विलियन में डालने पर इसका ऑक्सीकरण होता है तो इसके मध्य उत्पन्न इलेक्ट्रो विभव को उपचयन इलेक्ट्रो विभव कहते हैं इसे Er.p से दर्शाते हैं।
(५)- धातु के लिए ऑक्सीकरण विभव व अपचयन विभव दोनों के मान बराबर होते हैं लेकिन इनके चिन्ह विपरीत होते हैं 
जैसे - 
         Eo.p = Er.p

-:- विद्युत रासायनिक सेल का सेल विभव या विद्युत वाहक बल(Em.f):- विद्युत रासायनिक सेल के एनोड़ ऑक्सीकरण होता है तथा कैथोड पर अपचयन होता है अत: एनोड़ पर उत्पन्न विभव को ऑक्सीकरण विभव कहा जाता है तथा कैथोड पर उत्पन्न विभव का अपचयन विभव कहा जाता है
विद्युत रासायनिक सेल के ऑक्सीकरण विभव वह अपचयन विभव का बीज गणितीय योग सेल का सैल विभव या विद्युत वाहक बल कहलाता है।

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Note:- यदि इलेक्ट्रो विभव का प्रकार नहीं बताया जाए तो इसे अपचयन विभव माना जाता है

-:- मानक इलेक्ट्रोड विभव :-  298k आप पर धातु की छड़ को उसके लवण के 1M/(मोलर) जलीय विलयन में डुबोया जाता है तो छड़ व विलियन के बीच उत्पन्न विभवांतर को मानक इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है 
इसे E° से दर्शाते हैं, इसका मात्रक भी volt होता हैं

-:- एकल इलेक्ट्रो विभव की गणना :- 
(1)- विद्युत रासायनिक सेल के द्वारा दोनों इलेक्ट्रोड विभवो का अंतर वोल्ट मीटर द्वारा आसानी से ज्ञात कर लिया जाता है

 E{cel} = Er.p(एनोड) - Er.p(कैथोड)

(2)- यदि विद्युत रासायनिक सेल के एक इलेक्ट्रोड का विभव ज्ञात करना हो तो दूसरे इलेक्ट्रोड विभव को अपनी इच्छा से शून्य (0) मान लिया जाता है इस प्रकार जो सैल विभव आता है वही एकल इलेक्ट्रोड विभव कहलाता है
     
     E{cel} =  Er.p(कैथोड) - Er.p(एनोड)

     यदि Er.p(एनोड) = 0 

     E{cel} =  Er.p(कैथोड) = Er.p(एनोड)


(3)- एकल इलेक्ट्रोड विभव क्या करते समय सेल के जिस इलेक्ट्रोड विभव शून्य मान जाता है उसे मानक इलेक्ट्रोड या संदर्भ इलेक्ट्रोड कहा जाता है इसके रूप में हाइड्रोजन के लिए इलेक्ट्रोड का उपयोग किया जाता है

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-:- मानक हाइड्रोजन के इलेक्ट्रोड की संरचना :- 
(1)- pt ब्लैक लेपित pt प्लेट पर हाइड्रोजन गैस 1Atm दाब पर प्रवाहित की जाती है जिससे प्लेट पर अधिशोषित हुए हाइड्रोजन गैस के इलेक्ट्रॉन त्याग कर H+ आयनो के रूप में विलियन में आ जाते हैं ऑक्सीकरण से प्राप्त इलेक्ट्रॉन छड पर ही रह जाते हैं

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(2)- ऑक्सीकरण अर्द्ध अभिक्रिया

    H2(गैस) ----> 2H+ +2e-

(3)- ऋणावेशित pt प्लेट पर उपस्थित इलेक्ट्रॉन विलियन में उपस्थित H+ आयनों का उसी दर के साथ अपचयन कर देते हैं जिस दर के साथ H2 अणु का ऑक्सीकरण होता है 

अपचयन अर्द्ध अभिक्रिया 
    2H+(aq) +2e-  ----> H2(ges)

(4)- अत: H2 अतः H2 के ऑक्सीकरण व अपचयन की दर बराबर है इसलिए H2 का इलेक्ट्रोड विभव शून्य होता है

(5)- मानक हाइड्रोजन के इलेक्ट्रोड का प्रदर्शन :-
   कैथोड के रूप में
                 Pt | H+(aq) | H2 (गैस)

एनोड के रूप में
         H2 (गैस) | H+(aq) | Pt

-: — विद्युत रासायनिक श्रेणी :—

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(1)- यदि विभिन्न तत्वों को अनेक भावक अपचयन विभव के आधार पर व्यवस्थित कर दिया जाए तो एक श्रेणी बनती है उसे विद्युत रासायनिक श्रेणी कहते हैं

(2)- विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन से ऊपर वाले तत्व इलेक्ट्रॉन त्याग कर ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति रखते हैं अर्थात ये तत्व अपचायक प्रकृति के होते हैं

(3)- तत्व का मानक अपचयन विभव का मान जितना अधिक ऋणात्मक होगा उसमें इलेक्ट्रोन त्यागने की प्रवृत्ति उतनी ही ज्यादा होगी

(4)- विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन से नीचे आने वाले तत्व इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके अपचयित होने की प्रवृत्ति रखते हैं अर्थात यह तत्व ऑक्सीकारक प्रकृति के होते हैं

(5)- तत्वों का मानक अपचयन विभव का मान जितना ज्यादा धनात्मक होगा उसमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति उतनी ही अधिक होगी

(6)- विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन से ऊपर आने वाले तत्व एनोड का कार्य करते हैं

(7)- विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर वाले तत्व नीचे आने वाली धातु को उसके लवण से प्रतिस्थापित कर देते हैं

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(8)- विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन से ऊपर आने वाली धातु अम्ल से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करती है जबकि नीचे आने वाली धातु अम्ल से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त नहीं करती है

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-:- विद्युत रासायनिक सेल द्वारा किए गए कार्य की गणना :- 
विद्युत रासायनिक सेल द्वारा रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है
विद्युत ऊर्जा को उपयोगी कार्यों में खर्च किया जाता है अतः सेल द्वारा किया गया अधिकतम कार्य सेल में होने वाली कमी के बराबर होता है

  W (max) = -∆G

       ∆G --> गिब्स मुक्त ऊर्जा

सेल द्वारा किया गया अधिकतम कार्य = आवेश×विभवांतर
   W(max) = Q×E

यदि सेल में n इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होते हैं तो इन पर आवेश nF होता है

      W (max) = nF×E
      q = nF

      W (max) = nFE
      ∆G = nFE
      ∆G° = -(nFE)°

-:- नेनर्स्ट समीकरण :- यदि विद्युत रासायनिक सेल मानक परिस्थितियों में उपस्थित नहीं है अर्थात धातु के लवण की सांद्रता 1M नहीं है और 298k ताप नहीं है इस स्थिति में सेल का विभव ज्ञात करने के लिए नेनर्स्ट समीकरण का उपयोग किया जाता है इस नेनर्स्ट समीकरण की उत्पत्ति निम्न प्रकार की जाती है  

Note :- यदि सेल सामान्य अवस्था में होता है तो E(cel) = 0

ऊष्मागतिकी के अनुसार -  ∆G = ∆G° + RT loge(kc)

∆G = ∆G° + RT loge(kc)={हेल्म हॉल्टज समीकरण)

 -nFE = nFE° + RT loge(उत्पादों की सांद्रता/क्रियाकारको की सांद्रता)

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-:- विद्युत अपघटनी सेल :-- जब किसी विद्युत अपघट्य के जलीय विलियन में या गलित अवस्था में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसमें विद्युत धारा का चालन होता है इससे निर्मित सेल को विद्युत अपघटनी सेल कहते हैं 

विद्युत अपघटनी सेल से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाए :-  (1)- प्रतिरोध - ओम के नियम के अनुसार विद्युत अपघटनी सेल के इलेक्ट्रोड का विभव उसमें प्रवाहित की गई धारा के समानुपाती होता है 
विद्युत धारा के प्रवाह में उत्पन्न बा को प्रतिरोध कहा जाता है 
             E ∝ I
             E ∝ RI
             R = E/I
              ( R - नियतांक है जिसे प्रतिरोध कहा जाता है)

मात्रक - ओम (Ω)


(2)- चालकत्व {G} - प्रतिरोध के व्यतिक्रम को चालकत्व कहते हैं

       G = 1/R
          (G - ग्रेडियंट G)

मात्रक - ओम- [(Ω-)]

(3)- विशिष्ट प्रतिरोध (P)- किसी विद्युत अपघटनी सेल का विशिष्ट प्रतिरोध उसके इलेक्ट्रोड के बीच की दूरी (l)के समानुपाती तथा इलेक्ट्रोड के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल{R} के व्युक्तमानुपाती होता है

        R ∝ L/A
        R = P.(L/A)
        P = (R×A)/L

मात्रक - (ओम×m2)/m
          =ओम×m
CGS पद्धति में मात्रक - om×cm

(4)-विशिष्ट चालकता :- जिस प्रकार प्रतिरोध का व्युत्क्रम चालकत्व होता है ठीक उसी प्रकार विशिष्ट प्रतिरोध का व्युत्क्रम विशिष्ट चालकता होती है इसे K से दर्शाते हैं

K = 1/p
K = L/R×A
K = (1/R)×(L/A)= G.(L/A)

{G = 1/R}

मात्रक - om- m-।  
CGS पद्धति में मात्रक - om- cm-

(5)- सेल स्थिरांक :-  विद्युत अपघटनी सेल के दोनों इलेक्ट्रॉडो के बीच की दूरी तथा इलेक्ट्रोड के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के अनुपात को सेल स्थिरांक कहा जाता है
By
सेल स्थिरांक = L/A
वि1कशिष्ट चालकता (K) = (1/R)×(L/A)
                              = (1/R)×सेल स्थिरांक
                              = सेल स्थिरांक × चालकत्व

                                      (चालकत्व - 1/R)

(6)- मोलर चालकता(λm) :- विद्युत अपघटनी सेल की चालकता तथा मोल प्रति लीटर में सांद्रता के अनुपात को मोलर चालकता कहते हैं इसे λm से प्रदर्शित करते हैं

λm = K/(mol/L)

1L = 1000ml = 1000cm3

λm = K/(mol/1000cm3)

λm = (K × 1000cm3)/mol

मात्रक - om- cm- ×cm3/mol
            Om- cm2 mol-

Om-  = S (सिमेंस)

मात्रक - S×cm2 mol-

-:- चालकता के आआधार पर पदार्थों के प्रकार - चालकता के आधार पर पदार्थों को तीन भागों में बांटा गया है
(1)- सुचालक पदार्थ- 
-> वे पदार्थ जो विद्युत का आसानी से चालन करते हैं सुचालक पदार्थ कहलाते हैं जैसे सभी धातुओं एवं विद्युत अपघट्य का विलियन
-> सुचालकों के लिए चालकता का मान 10^4 से 10^7  om- m- होता है

(2)- अर्द्ध चालक पदार्थ - 
-> वे पदार्थ जो विद्युत धारा का अल्प चालन करते हैं अर्धचालक कहलाते हैं Ex - Si,Ge
-> अर्द्ध चालकों के लि वे वाॅए चालकता का मान 10^-6 से 10^4 om- cm- होता है

(3)- कुचालक पदार्थ - 
-> वे पदार्थ जो विद्युत धारा का चालन नहीं करते हैं कुचालक पदार्थ कहलाते हैं
Ex- लकड़ी, रबड़, सूती कपड़ा

-> कूचालको  के लिए चालकता का मान 10^-20 से 10^-10 om- cm  होता है 

-:- चालकों के प्रकार :- 
(1)- इलेक्ट्रॉनिक चालक/धात्विक चालक :-- वे चालक दिन की चालकता मुक्त इलेक्ट्रॉनों के कारण होती है इलेक्ट्रॉनिक कहलाते हैं
जैसे-सभी धातुएं
धातुओं की चालकता निम्न कारकों पर निर्भर करती है
 प्रति परमाणु संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर धात्विक चालक का मान बढ़ता है
पप्पूताप को बढ़ाने से धात्विक चालकता घटती है क्योंकि ताप बढ़ाने से धातु आयनों व मुक्त इलेक्ट्रॉनों का गमन बढ़ता है जिससे धा हैतु आयन  मुक्त इलेक्ट्रॉनिक गमन में अवरोध उत्पन्न करते हैं

(2)- विद्युत अपघटनी चालक :--वे चालक जिसकी चालकता मुक्त आयनो के कारण होती है विद्युत अपघटनी चालक कहलाते है
विद्युत अपघटन के जलीय विलयन व गलित अवस्था में मुक्त आयन उपस्थित होते हैं इसलिए इन अवस्थाओं में विलियन विद्युत का चालन करते हैं

विद्युत अपघटनी चालकों की चालकता को प्रभावित करने वाले कारक:-

(1):– विद्युत अपघट्य की प्रकृति यदि विद्युत अपघट्य को पानी में घोलने पर उसका पूर्ण आयनन हो जाए (100%) तो इसे एबल के धुत अपघट्य  कहते हैं ऐसी विद्युत अपघट्य विलयनो मैं आयनों की संख्या अधिक होने के कारण इसकी चालकता भी अधिक होती है


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Note:- NaCl का गलित अवस्था में वेधुत अपघटन करने पर कैथोड पर Na धातु का निक्षेपण तथा एनोड पर CL2 गैस मुक्त होती है

*:- image



शेष माध्यम की अभिक्रिया:- 
           2Na+2oH ----------->2NaoH

NaCL के जलीय विलयन का विद्युत अपघटन कराने पर कैथोड से H2 गैस व एनोड़ पर Cl2 गैस मुक्त हो जाती है तथा माध्यम में शेष बचे Na±  व OH- आयन अभिक्रत होकर NaoH का निर्माण कर लेते हैं
उपरोक्त प्रक्रिया में माध्यम की प्रकृति क्षारीय होती है तथा इसे naoh के निर्माण में भी प्रयुक्त किया जा सकता है

-:- विद्युत अपघटन के नियम:-विद्युत अपघटन के दौरान प्रवावित की गई धारा तथा विभिन्न इलेक्ट्रॉडो पर प्राप्त पदार्थ की मात्रा के बीच फैराडे ने संबंध स्थापित करके नियम दिए जिन्हें फैराडे के नियम कहते हैं

(1) फैराडे का प्रथम नियम:-यह नियम एक समय पर केवल एक ही विद्युत अपघट्य के लिए लागू होता है
इस नियम के अनुसार विभिन्न इलेक्ट्रॉनडो पर प्राप्त  पदार्थ की मात्रा उसे विलयन में प्रवाहित की गई कुल धारा के समानुपाती होता है
यदि q कूलाम आवेश युक्त द्वारा प्रवाहित करने पर पदार्थ की मात्रा प्राप्त w gm होता है
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समीकरण 3 से विधुत रासायनिक तुल्यांक इलेक्ट्रोड पर प्राप्त पदार्थ की मात्रा उसके विद्युत रासायनिक तुल्यांक के बराबर होती है जब विलियन में 1amp की धारा 1sec तक प्रभावित की जाती है तो
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(2) फैराडे का द्वितीय नियम:-यह नियम एक से अधिक विद्युत अपघट्य के लिए लागू होता है
इस नियम के अनुसार समान मान की धारा समान समय के लिए प्रवाहित की जाए तो विभिन्न इलेक्ट्रोडो पर प्राप्त पदार्थ की मात्रा उसके रासायनिक तुल्यांक को के समानुपाती होती है 
एक सेल के इलेक्ट्रोड पर विक्षेपित धातु का द्रव्यमान  W 1= E1  

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-:- कोलेराउस का नियम:-कोलेरा उस के निम्नानुसार किसी विद्युत अपघट्य की अनंत तनुता पर मोलर चालकता उसके आयनन से प्राप्त धनायन की अनंत तनुता पर मोलर चालकता तथा ऋणायन की अनंत तनुता पर मोलर चालकता के योग्य के बराबर होती है
कोलेराउस के नियम से दुर्बल विद्युत अपघट्य की अनंत तनुता पर मोलर चालकता ज्ञात करते हैं

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कोलेरा उस के नियम के अनुप्रयोग:-
(1) दुर्बल विद्युत अपघट्य की अनंत तनुता पर मोलर चालकता ज्ञात करना:-
एसिटिक अम्ल एक दुर्बल अम्ल है इसको पूर्ण आयनन नहीं होता है अतः निम्न सूत्र द्वारा एसिटिक अम्ल की अनंत तनुता मोलर चालकता ज्ञात नहीं की जा सकती है

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(2):- दुर्बल वेधुत अपघट्य वियोजन की मात्रा तथा वियोजन स्थिरांक की गणना

उपरोक्त सूत्र की सहायता से आयोजन स्थिरांक k c की गणना की जाती है

-:-सेल /बैटरीया:-सेल निम्न दो प्रकार के होते हैं
(1)(A)-:- प्राथमिक सेल:-वे सेल जो निरावेसित (डीस चार्ज) हो जाने पर पुन: आवेशित (चार्ज) नहीं किए जा सकते हैं प्राथमिक सेल कहलाते हैं
जैसे:- शुष्क सेल या मर्करी सेल,

-:-शुष्क सेल की बनावट एवं कार्य प्रणाली:-

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शुष्क सेल में ZN (जस्ते) का पात्र होता है जिसके बीचो बीच एक ग्रेफाइट की छड़ लगी होती है उसके ऊपर एक पीतल की टोपी लगी होती है
ग्रेफाइट की छड़ के चारों ओर Mno2 व कार्बन का चूर्ण भर दिया जाता है तथा शेष के पात्र में Zncl2 का मिश्रण (पेस्ट) कर दिया जाता है
शुष्क सेल व एनोड का कार्य करता है तथा ग्रेफाइट की छड़ केथोड का कार्य करती है
जब सेल को परिपथ से जोड़ा जाता है तो केफोड़ व अफोड पर निम्न अभिक्रिया और संपन्न होती है

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-:-शुष्क सेल से 1.5 का विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है
शुष्क सेल का उपयोग दीवार छड़िया में रिमोंड में किया जाता है
(B) मर्करी सेल:-मर्करी सेल में zn का पात्र होता है जिसमें मर्करी ऑक्साइड Hgoभरा होता है तथा इसमें विद्युत अपघट्य के रूप में Naohव koh का विलयन भर दिया जाता है

-:-  image

=> मर्करी सेल से 1.35 volt का विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है
=>  मर्करी सेल का उपयोग हाथ की घडी में तथा सुनने वाली मशीनों में किया जाता है


(2)- द्वितीयक सेल :- वे सेल जिन्हें निरावेशित हो जाने पर पुनः आवेशित किया जा सकता हैं द्वितीयक सेल कहलाते हैं
जैसे:- सीसा संचायक सेल 
=>सीसा संचायक सेल की बनावट कार्य एवं प्रणाली:-- (१):- सीसा संचायक सेल में एक दृढ़ प्लास्टिक का पात्र होता हैं जो जिसमें 38% H2so4 भरा रहता है जिसका घनत्व 1.3gm/m.l होता हैं!


(2):---सीसा संचायक सेल में कैई Pb की प्लेट लगी होती हैं जो एनोड का कार्य करती हैं तथा कुछ प्लेटे Pbo2 की परत चड़ी होती हैं जो केनोड का कार्य करती हैं! 

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जब सेल पूर्णतया न्न निरावेसित हो जाता है तो इसे लेड सल्फेट व पानी बन जाता है इस स्थिति में सेल से धारा प्राप्त नहीं की जा सकती है
सेल से पूर्ण धारा प्राप्त करने के लिए इसे चार्ज करने की आवश्यकता होती है चार्ज करते समय पहले से विपरीत अभिक्रिया संपन्न होती हैं


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दोस:- सीसा संचायक सेल को चार्ज करते समय संपूर्ण PbSo4 का अपघटन नहीं हो पाता है कुछ लेड सल्फेट इलेक्ट्रोडो पर जमा हो जाता है जिससे सेल अपना कार्य धीरे-धीरे बंद कर देता है इस प्रकार इलेक्ट्रोडो पर 3 - 4 वर्ष में अत्यधिक लेड सल्फेट जमा हो जाने से यह कार्य अपना बंद कर देता है


-:- संक्षारण:-
(1)- वायुमंडलीय नमी व O2 की उपस्थिति में धातु के पृष्ठ पर अवांछित ऑक्साइडो का निर्माण होता है जिससे धातु की पृष्ठ का क्षरण होता है यह प्रक्रिया संक्षारण कहलाती है
(2)- लोहे पर जंग लगना, चांदी का काला होना, तांबे का हरा होना, संक्षारण के उदाहरण है
(3)- संक्षारण प्रक्रिया नमी की उपस्थिति में होती है
(4)- संक्षारण प्रक्रिया बरसात के दिनों में अत्यधिक होती है क्योंकि वायुमंडल में मुफ्त H+ आयनन उपस्थित होता है

-:- लोहे पर जंग लगने की क्रिया विधि:-
जंग लगने की क्रिया में लोहे की पृष्ठ पर एक विद्युत रासायनिक सेल (गेल्वनिक सेल) का निर्माण होता है यह प्रक्रिया निम्न पदों में संपन्न होती है
(1) लोहे का मानक अपचयन विभव ऋणात्मक होने के कारण लोहे के पृष्ठ से Fe परमाणु Fe+2 आयनों में ऑक्सीक्रत हो जाते है इस प्रकार लोहे का पृष्ठ एनोड़ का कार्य करता हैं
ऑक्सिकरण से प्राप्त इलेक्ट्रॉन पृष्ठ पर एकत्रित हो जाने से पृष्ठ ऋणावेसित हो जाती है 

(2) ऋणावेशित Fe की पृष्ठ वायुमंडल में उपस्थित H+ आयनों को आकर्षित कर लेती हैं
(3) लोहे के पृष्ठ पर आकर H+ आयन वायुमंडलीय ऑक्सीजन के साथ मिलकर रासायनिक जल का निर्माण कर लेते हैं इस प्रकार पृष्ठ  पर अपचयन अभिक्रिया संपन्न होती है

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(4)लोहे के पृष्ठ से Fe+2 आयन वायुमंडलीय O2 के संपर्क में आकर और अधिक ऑक्सीकृत होकर Fe2O3 का निर्माण करते हैं जो जलयोजित होकर Fe2O3 .x H2o नामक लाल भूरे पाउडर का निर्माण करते हैं जिसे जंग कहते हैं

-:- संचारण से बचाव के उपाय :- 
(1)- संचारण से बचाने के लिए धातु को वायुमंडलीय नमी के सीधे संपर्क में आने से बचाया जाना चाहिए (पैंट लगा देना चाहिए)

(2)- धातु की सतह पर वार्निश तेल का लेप कर देना चाहिए

(3)- धातु को सूती वस्त्र व अखबार के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए 

(4)- विद्युत श्रेणी में नीचे आने वाली धातु को संचारण से बचाने के लिए ऊपर वाली धातु का एनोड लगा दिया जाता है जिससे एनोड का संचारण होता है यह बलिदानी सुरक्षा कहलाती है 

 - जैसे लोह को संचारण से बचाने के लिए Zn का एनोड लगा दिया जाता है

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-:- मानस वेस्टर्न सैल :- 
मानस वेस्टर्न सैल की निम्नलिखित विशेषताएं होती है
--> यह एक स्थिर सेल है
--> यह अधिक अनउत्क्रमणीय होता है
--> इस सेल का ताप गुणांक बहुत कम होता है

-:- मानस वेस्टर्न सैल की बनावट :- 
यह एक कांच का बना H आकृति का पात्र होता है जिसके नीचे सिरे में प्लेटिनम के फ्यूज तार लगे होते हैं इसके दाएं नली के पेंदे में Cd - Hg हमने गम भरा जाता है जिसमें Cd 12% होता है।
इसके ऊपर CdSo4.(8/3)H2o लवण भर कर इसके ऊपर CdSo4 का विलियन भर दिया दिया जाता है
बायी और सबसे नीचे Hg भरते हैं तथा इससे ऊपर Hg व Hg2So4 का पेस्ट (Hg2So4 + Hg केलोमल) ओर इसके ऊपर ठोस CdSo4.(8/3)H2o का लवण भर देते है। तथा शेष भाग में CdSo4 का विलियन भर देते है।

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-:- ईंधन सेल :- वे सेल जिनमें ईधन की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है' ईधन सेल कहलाता हैं।  ईधन सेल में ईधन के रूप में H2, O2, Ch4, C2H6 का उपयोग किया जाता है। 

-:- ईधन सेल की बनावट :- एक पात्र में ग्रेफाइट के दो शैलेंद्र (छिद्र युक्त) इलेक्ट्रॉडो को इस प्रकार से व्यवस्थित किया जाता है कि पात्र तीन भागों में विभाजित हो जाए पात्र के बीच वाले भाग में NaOH या KOH को भर दिया जाता है,तथा पात्र में एक तरफ से हाइड्रोजन गैस में दूसरी तरफ से ऑक्सीजन गैस प्रवाहित की जाती है जिससे हाइड्रोजन का आक्सीजन की उपस्थिति में दहन होता है जिसके फलस्वरूप निम्न अभिक्रियाए संपन्न होती है

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ईधन से के उपयोग - 
-> ईंधन सेल हल्के होते हैं
-> ईंधन सेल का उपयोग अंतरिक्षयानों में विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है
-> ईंधन सेल प्रदूषण रहित होते हैं
-> भारत द्वारा छोड़े गए अपोलो अंतरिक्ष यान में इसी का उपयोग किया जाता है

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