Chemical Kinetics 12th Class Chemistry Notes In Hindi Pdf Download रासायनिक बलगतिकी पाठ 4
12th Class Chemistry Notes download In Hindi Pdf | Important Questions 2021 | रासायनिक बलगतिकी(chemical kinetics) chapter no 4
-:- रासायनिक बल गतिकी -:-
रासायनिक बल गतिकी :- रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत अभिक्रियाओं के वेग एवं वेग को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन किया जाता है रासायनिक बलगतिकी कहलाती है
अभिक्रिया वेग :- एकांत समय में किसी रासायनिक अभिक्रिया के अभिकारको या उत्पादों की सांद्रता में होने वाला परिवर्तन अभिक्रिया का वेग कहलाता है
अभिक्रिया वेग = ±(अभिकारको या उत्पादों की सांद्रता)/ (परिवर्तन में लगा समय)
अभिकारको का वेग = - अभिकारको की संद्रता/परिवर्तन में लगा समय
सांद्रता तथा समय के मध्य ग्राफ -
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ओसत वेग :- किसी निश्चित समय अंतराल में अभिक्रिया का वेग को औसत वेग कहा जाता है औसत वेग को निम्न प्रकार ज्ञात करते हैं
अभिकारको के लिए ओसत वेग = ( - अंतिम सांद्रता - प्रारंभिक सांद्रता)/समय
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उत्पादों के लिए ओसत वेग = (+अंतिम सांद्रता - प्रारंभिक सांद्रता)/समय
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तात्क्षणिक वेग :- किसी क्षण पर अभिक्रिया का वेग तात्क्षणिक वेग कहलाता है
अभिकारको के लिए तात्क्षणिक वेग = ± अभिकारको या उत्पादों की सांद्रता में होने वाला अल्प परिवर्तन/परिवर्तन में लगा समय
उत्पादों के लिए तात्क्षणिक वेग
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अभिक्रिया का वेग एवं स्ट्राईकियोमितिय में सम्बन्ध :- संपूर्ण अभिक्रिया का वेग का निर्धारण किसी एक अभिकारक तथा एक उत्पाद की सांद्रता में समय के साथ परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए यह आवश्यक है कि अभिक्रिया का समीकरण संतुलित हो -
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द्रव्य अनुपाती क्रिया का नियम :- किसी रासायनिक अभिक्रिया का वेग उस में भाग लेने वाले अभिकारको की सांद्रता के समानुपाती होता है इसे ही द्रव्य अनुपाती क्रिया का नियम कहते हैं
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उपरोक्त समीकरण में रसायनिक अभिक्रिया का वेग व्यंजक या वेग समीकरण या वेग नियम कहा जाता है
वेग व्यंजक लिखने का तरीका :- किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग व्यंजक को मात्र संतुलित समीकरण से नहीं लिख सकते हैं बल्कि इसको लिखने के लिए अभिक्रिया की बलगतिकी की जानकारी आवश्यक है अभिक्रिया की बलगति की यह बताती है कि एक अभिकारक की सांद्रता में परिवर्तन करने से अभिक्रिया का वेग किस प्रकार परिवर्तित होता है
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वेग स्थिरांक/वेग व्यंजक/वेग नियम :-
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Note - यदि किसी अभिक्रिया के अभिकारको की सांद्रता इकाई हो तो इस अभिक्रिया के वेग को विशिष्ट अभिक्रिया वेग कहते हैं
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-:- अभिक्रिया की आणविकता :-
(1)- किसी रासायनिक अभिक्रिया के संतुलित समीकरण में उपस्थित अभिकारक अणुओं की संख्या का योग अभिक्रिया की आणविकता कहलाती है
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(2)- अभिक्रिया की आणविक का एक सैद्धांतिक राशि है
(3)- अभिक्रिया की आणविकता कभी भी शून्य या भिन्नात्मक नहीं हो सकती है
(4)- अभिक्रिया कि आणविकता का मान 4 या इससे अधिक नहीं हो सकता है क्योंकि 4 अभिकारक अणुओं का एक साथ' एक स्थान' पर टकराना संभव नहीं है
(5)- अभिक्रिया की आणविकता से अभिक्रिया की क्रिया विधि का निर्धारण नहीं किया जा सकता है
-:- अभिक्रिया की कोटि :-
(1)- किसी अभिक्रिया के प्रायोगिक मान वेग व्यंजक में उपस्थित सांद्रता पदों के घातांको का योग अभिक्रिया की कोटि कहलाती है
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(2)- अभिक्रिया की कोटि एक प्रायोगिक राशि है।
(3)- अभिक्रिया की कोटि का मान शून्य अथवा भिन्नात्मक भी हो सकता है
(4)- अभिक्रिया की कोटि वह अणुसंख्यता समान भी हो सकती है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि किसी अभिक्रिया की जितनी अणुसंख्यता हो उतनी ही कोटी भी हो।
जैसे-
(a)- H2 व Cl2 की अभिक्रिया जल की सतह पर प्रकाश की उपस्थिति में कराई जाती है तो इसकी कोटी शून्य होती है जबकि इसकी आण्विकता 2 है
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(b)- एस्टर का अम्लीय जल अपघटन एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया है जबकि इसकी आण्विकता 2 है
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-:- अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करने वाले कारक -
(1)- अभिक्रिया की सांद्रता :- हम जानते हैं कि प्रारंभ में क्रियाकारकों की सांद्रता अधिकतम होती है अतः सांद्रता में परिवर्तन की दर भी अधिक होती है जैसे जैसे अभिकारको की सांद्रता में कमी आने लगती है अभिक्रिया का वेग भी घटने लगता है अर्थात अभिक्रिया का वेग अभिकारको की सांद्रता के समानुपाती होता है
(2)- तंत्र का ताप :- सामान्य ताप बढ़ने पर लगभग सभी अभिक्रिया का वेग बढ़ता है इसका कारण यह है कि ताप बढ़ने पर अभिककारकों की गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है और टक्कर सिद्धांत (संघटय सिद्धांत)के अनुसार अणु ओ में परस्पर टक्करो की संख्या भी बढ़ जाती है फलस्वरूप अभिकारक अणु औ की उत्पादों में रूपांतरित होने की दर बढ़ जाती है अर्थात अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है
(3)- अभिकारक एवं उत्पादों की प्रकृति :- अभिक्रिया का वेग अभिकारको एवं उत्पादों की प्रकृति से भी प्रभावित होती है
उदाहरण के लिए नाइट्रिक ऑक्साइड का नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकरण तीव्रता से संपन्न होता है जबकि कार्बन मोनो ऑक्साइड का कार्बन डाई ऑक्साइड में रूपांतरण धीमी गति से संपन्न होता है अर्थात पदार्थों की क्रियाशीलता विशिष्ट बांधो में सरलता से टूटने पर निर्भर करती है
2No + O2 ------> 2No2 (तीव्र)
2Co + O2 ------> 2Co2 (धीमी)
(4)- उत्प्रेरक का प्रभाव :- उत्प्रेरक वे भाई यह पदार्थ होते हैं जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में कोई परिवर्तन किए बिना अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देते हैं ऐसा देखा गया है कि अनेक अभिक्रियाएं उत्प्रेरक पदार्थों की उपस्थिति में अधिक तेजी से संपन्न होती हैं
जैसे एस्टर का जल अपघटन एक धीमी रासायनिक अभिक्रिया है लेकिन तनु अम्ल की उपस्थिति में तेजी से संपन्न होती है
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(5)- सतह का क्षेत्रफल :- अभिकारक का सतही क्षेत्रफल जितना अधिक होगा अभिक्रिया का वेग भी उतना ही अधिक होगा पदार्थ जितने सूक्ष्म कणों में विभाजित होगा उसकी अभिक्रिया का वेग भी उतना ही अधिक हो जाता है।
उदाहरण के लिए एक लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े करने पर वह सीधे जल जाती है अर्थात उसका सतही क्षेत्रफल बढ़ने से अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है
(6)- विकिरण का प्रभाव :- कुछ अभिक्रियाए वेग को विकिरण की उपस्थिति में अप्रत्याशित रूप से बढ़ा देती है
जैसे - H2 व Cl2 की अभिक्रिया अंधेरे में बहुत मंद गति से होती है परंतु सूर्य के पराबैगनी प्रकाश की उपस्थिति में विस्फोटक अभिक्रिया संपन्न होती है
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important*
-:- शून्य कोटि की अभिक्रिया औ के लिए समाकलित वेग स्थिरांक की गणना -
वह अभिक्रिया जिसका अभिक्रिया वेग अभिकारको की सांद्रता पर निर्भर नहीं करता है अर्थात अभिकारकों की सांद्रता के 0 घाट पर निर्भर करता है शून्य कोटि की अभिक्रिया कहलाती है
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=> शून्य कोटि की अभिक्रिया के लिए अर्द्धआयु काल - अर्द्धआयु काल वह समय होता है जिस पर अभिकारक की आधी मात्रा उत्पाद में बदल जाती है
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Imp*
-:- प्रथम कोटि की अभिक्रिया एवं इसके लिए समाकलित व्यंजक - वह अभिक्रिया जिसका अभिक्रिया वेग अभिकारको की सांद्रता के प्रथम घाट पर निर्भर करता है प्रथम कोटि की अभिक्रिया कहलाती है
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=> प्रथम कोटि की अभिक्रिया के लिए अर्द्ध आयु काल :- अर्द्धआयु काल वह समय होता है जिस पर अभिकारको की आधी मात्रा उत्पाद में बदल जाती है
t = t1/2
n = q/2
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-:- प्रथम कोटि की अभिक्रिया के लिए आलेखिय निरूपण - यदि Log10 (a/(a-x) व समय (t) के मध्य ग्राफ खींचते हैं तो यह एक सरल रेखा प्राप्त होता है जिसका ढाल
tan© = K/2.303
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-:- अभिक्रिया वेग की ताप पर निर्भरता - अभिक्रिया का वेग ताप से अत्यधिक प्रभावित होता है सामान्य ताप बढ़ने पर लगभग सभी अभिक्रिया ओं के वेग में वृद्धि की जा सकती है इसके विपरीत ताप घटने पर अभिक्रिया का वेग भी घट जाता है एक सामान्य अध्ययन के अनुसार 10°c ताप बढ़ने पर रासायनिक अभिक्रिया का वेग 2 से 3 गुना तक बढ़ जाता है इसे ताप गुणांक कहते हैं
ताप गुणांक - (T + 10)°c पर वेग स्थिरांक/T°c पर वेग नीयतांक
-:- अभिक्रिया ओं के वेग सिद्धांत -
संघठय सिद्धांत(टक्कर सिद्धांत) :- पदार्थों में अभिक्रिया होने के लिए यह आवश्यक है कि उनके अणुओं के मध्य टक्कर हो टक्कर के परिणाम स्वरूप अणुओं में पहले से विद्यमान बंध टूट जाते हैं और एक नई प्रकार की पुन: व्यवस्था प्राप्त होती है जिसके फलस्वरूप नये बंध बन जाते हैं
टक्कर सिद्धांत इस सिद्धांत पर आधारित है कि जब अभिकारक A व B दोनों के अणु पास पास आते हैं और इनमें आपस में टक्कर होती है इसका तात्पर्य यह है कि अभिक्रिया ओं की गति टक्कर ओं की संख्या पर निर्भर करती है अर्थात अभिक्रिया की गति टक्करो की संख्या के समानुपाती होती है
=> टक्कर सिद्धांत के निम्न तीन मुख्य बिंदु है
(1)- अभिकारक अणुओं के मध्य टक्कर
(2)- टक्कर के समय अभिविन्यास (दिशा)
(3)- अणुओं का संक्रियण
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-:- संक्रियण ऊर्जा - अभिकारक अणुओं के सही दिशा में टकराने पर ही प्रभावी टक्कर होती है टक्करो के प्रभावी होने के लिए अभिकारक अणुओं से ऊर्जा की एक न्यूनतम मात्रा उत्पन्न होनी चाहिए जो क्रिया कारकों को उत्पाद में बदल दे संक्रियण ऊर्जा कहलाती हैं।अर्थ अर्थ अभिकारक अणुओं की टक्कर से प्राप्त ऊर्जा की वह मात्रा जो अभिक्रिया को संपन्न करा देती है या जिसके फलस्वरूप उत्पाद बन जाते हैं संक्रियण ऊर्जा कहलाती है
A + B-C -------> A•••B•••C ------> (A---B)+C(उत्पाद)
माना कि उपरोक्त अभिक्रिया एक पद में संपन्न होती है A को B से बंद बनाने के लिए निम्नतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है A,B-C पर B की तरफ से टकराता है A, B से बंध बनाना प्रारंभ करता है और B-C बन्ध टूटना प्रारंभ करता है इस प्रकार A तथा B एवं B तथा C के मध्य आंशिक बंध बनते हैं इस अवस्था को संक्रमण अवस्था कहते हैं यह अवस्था अस्थाई होती है इसके बाद A-B बंध पूर्ण रूप से बन जाते हैं और B-C बंध पूर्ण रूप से टूट जाती है
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-:- ऊष्माशोषी तथा ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाए :- जिस अभिक्रिया में उत्पादों की एंथैल्पी का मान क्रिया कारकों की एंथैल्पी से अधिक हो ऐसी अभिक्रिया ओ के संपन्न होने में परिपार्श्वविक से ऊष्मा का शोषण होता है अतः इन्हें ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया कहते हैं,
इसके विपरीत जिस अभिक्रिया के उत्पादों की एंथैल्पी क्रिया कारकों की एंथैल्पी से कम होती है इश्क के संपन्न होने से उस्मा मुक्त होती है ऐसी अभिक्रिया ओ को उष्माक्षेपी अभिक्रिया कहते हैं
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-:- आहरेनियस का सिद्धांत :- आहरेनियस सिद्धांत के प्रमुख बिंदु निम्न है
(1)- रासायनिक अभिक्रिया में उपस्थित सभी अणु अभिक्रिया में भाग नहीं लेते हैं केवल वे ही भाग लेते हैं जिनमें पर्याप्त ऊर्जा होती है इन अणुओं को सक्रिय अणु कहते हैं
(2)- सक्रिय अणु अभिकारको के अन्य सामान्य अणुओं की तुलना में कुछ अधिक ऊर्जा रखते हैं वह न्यूनतम अतिरिक्त ऊर्जा जो अभिकारक अणुओं की अभिक्रिया कराने के लिए आवश्यक होती हैं सक्रियण ऊर्जा कहलाती है।
(3)- सक्रियण ऊर्जा सक्रियण अणुओं के परस्पर टकराने से प्राप्त होती है
(4)- ताप बढ़ने से सक्रिय अणु ओ के अनुपात में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है
(5)- अभिकरको के सामान्य अणुओं तथा सक्रिय अणु ओ के मध्य एक साम्य स्थापित हो जाता हैं
(6)- जब सक्रिय अणु परस्पर टक्कर करते हैं तो सक्रियतसंकर बनता है जो उच्च ऊर्जा युक्त स्पिशिज है
ये सक्रियतसंकर उत्पाद में बदल जाती हैं
आहरेनियस उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर वेग नियतांक के तथा परम ताप (T) के बीच एक संबंध बताया जिसके अनुसार ताप बढ़ने से अभिक्रिया के वेग में चरघातांकी की वृद्धि होती है
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