★परिचय :- दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगी मिश्रण को विलियन कहते हैं अथवा दो पदार्थों के समांगी मिश्रण को विलियन कहते हैं
समांगी मिश्रण का तात्पर्य : - ऐसा मिश्रण जिसके के प्रत्येक भाग का संगठन सामान हो समांगी मिश्रण कहलाता है अथवा वह मिश्रण जिसके प्रत्येक भाग का रासायनिक संगठन एक समान हो व भौतिक गुण एक जैसे हो समांगी मिश्रण कहलाता है।
जैसे - अल्कोहल का जलीय विलियन
विलियन के मुख्य घटक दो -
(1) - विलेय :- विलियन का वह घटक जो कम मात्रा में उपस्थित हो या विलियन का वह घटक जो घुलता है
( 2) विलायक - विलियन का वह घटक जो अधिक मात्रा में होता है या घटक जो घोलता है विलायक कहलाता है
विलियन के प्रकार -
◆ विलायक के आधार पर विलियन के प्रकार - विलायक के आधार पर विलायक को तीन भागों में बांटा गया है
(1) - ठोस विलियन - इसमें विलायक ठोस होता है
(2) - द्रव्य विलियन- इसमें विलायक द्रव्य होता है
(3) - गैस विलियन - इसमें विलायक गैस होता है
◆ विलेयता के आधार पर विलियन के प्रकार
( 1) - संतृप्त विलयन - ऐसा विलियन जिसके निश्चित ताप पर विलेयता के बराबर मात्रा में विलेय घुला हुआ हो संतृप्त विलयन कहलाता है
(2) - असंतृप्त विलयन - ऐसा विलियन जिसके अनिश्चित ताप पर विलेयता से कम मात्रा में विलेय घुला हुआ हो असंतृप्त विलयन विलियन कहलाता है
(3) - अतिसंतृप्त विलयन - ऐसा विलियन जिसके निश्चित ताप से अधिक ताप पर विलेयता से अधिक मात्रा में विलेय घुला हो अतिसंतृप्त विलयन कहलाता है,
◆ सांद्रता - सांद्रता से तात्पर्य विलेय पदार्थ की उस मात्रा से है जो विलियन के निश्चित आयतन में उपस्थित हो सांद्रता कहलाती है
★ विलियन की सांद्रता की इकाइयां :- विलियन की सांद्रता को निम्नलिखित इकाइयों में व्यक्त किया जाता है
(1) आयतन - आयतन प्रतिशत (V/v%)
(2) द्रव्यमान - द्रव्यमान प्रतिशत(W/w%)
(3) द्रव्यमान - आयतन प्रतिशत(W/v%)
(4) मोल भिन्न/मोल अंश
(5) PPM (Part Per Million)
(6) मोलरता
(7) मोललता
(1) आयतन - आयतन प्रतिशत : - 100ml विलियन में उपस्थित विलेय की ml में मात्रा आयतन - आयतन प्रतिशत कहलाती है इसे V/v% से व्यक्त किया जाता है
V/v% =(विलेय की ml में मात्रा × 100 ) ÷ ( विलियन की ml में मात्रा )
विलियन = विलेय + विलायक
V/v% = [(विलेय की ml में मात्रा) ×100] ÷ ( विलेय की ml में मात्रा + विलायक की ml में मात्रा)
V/v% = (Va × 100 )÷ Va + Vb
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(2) द्रव्यमान - द्रव्यमान प्रतिशत : - 100gm विलेय में उपस्थिति विलेय की gm में मात्रा द्रव्यमान - द्रव्यमान प्रतिशत कहलाता है
(3) द्रव्यमान - आयतन प्रतिशत : - 100ml विलियन में उपस्थित विलय की gm में मात्रा द्रव्यमान - आयतन प्रतिशत कहलाती है इसे W/v % से व्यक्त करते हैं
W/v % = (विलेय की gm मैं मात्रा × 100 ) ÷ विलियन की ml में मात्रा
W/v % = (विलेय की gm में मात्रा × 100 ) ÷ (विलेय की मात्रा gm में + विलियन की ml में मात्रा)
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(4) मोल भिन्न/मोल अंश/ मोल प्रभाज【ϗ काई】: - विलियन में किसी घटक की मूल भिन्न उस घटक की मोल संख्या और विलियन में उपस्थित सभी घटकों की मोल संख्या ओ के अनुपात के बराबर होती है
माना विलियन में दो घटक A व B उपस्थित हैं जिनकी मोल संख्याए क्रमशः Na व Nb है और मोल भिन्न क्रमशः ϗa व ϗb है।
( इसका हल निम्न फोटो में देख सकते हो)
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अतः विलियन मै उपस्थित सभी घटकों की मोल भिन्नो का योग हमेशा 1 होता है
(5) PPM (Part Per Million - पार्ट पर मिलियन) : - विलेय के भार भागों की वह संख्या जो विलियन में एक मिलियन(106) भाग में उपस्थित हो पार्ट पर मिलियन (ppm) कहलाता है
ppm = 【विलेय का भार (gm में) × 106 】÷ विलियन का भार (gm)
★ पार्ट पर बिलियन(ppb) :- विलेय के भार भागों की वह संख्या जो विलियन के एक बिलियन (109) में भाग में उपस्थित हो पार्ट पर बिलियन (ppb) कहलाता है
ppb = 【 विलेय का भार[gm] × 109 】÷ 【 विलियन का भार (gmp)】
(6) मोलरता : - एक लिटर विलियन में उपस्थित विलेय के मोलो की संख्या को विलियन की मोलरता कहते हैं इसे M से व्यक्त करते हैं
मात्रक = मोल ÷ लीटर, या mol−1
मोलरता (M) = विलेय का ग्राम में भार ÷ (अणुभार x विलयन का आयतन (लीटर में )
विलेय के मोलो की संख्या = विलेय का भार /अणुभार × विलायक का आयतन (लीटर में)
M = विलेय का भार (ग्राम में) × 1000 / अणुभार × विलियन का आयतन ( लीटर )
M = (Wa/Wb)× (1000/V)
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(7) मोललता : - एक किलोग्राम विलायक में उपस्थित विलेय के मोलो की संख्या उस विलियन की मोललता कहलाती है इसे m व्यक्त करते हैं
मात्रक = mol/kg
m = विलेय के मोलो को संख्या/विलेय का भार (kg)
मोलो की संख्या = विलेय का भार (gm)/ मोलर द्रव्यमान
मोललता = विलेय का भार( gm) × 1000/ मोलर द्रव्यमान × विलायक का भार (gm)
★ ठोसों कि द्रव्य में विलेयता(ठोसों कि जल में विलेयता) :- एक निश्चित ताप पर ठोस पदार्थ की gm में वह अधिकतम मात्रा जो 100gm विलायक में उपस्थित हो उस पदार्थ की विलेयता कहलाती है, अथवा जब किसी ठोस पदार्थ को द्रव्य विलायक में घोला जाता है तो ठोस पदार्थ का द्रव्य विलियन बन जाता है
◆ ठोस पदार्थ की द्रव्य में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक( विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक)
( 1) - विलेय और विलायक की प्रवर्ति : - सामान सामान को घोलता है के आधार पर ध्रुवीय विलेय, विलायक ध्रुवीय विलायकों ने ओर अध्रुवीय विलियन, अध्रुवीय विलायकों में घुलनशील होते हैं
जैसे - Nacl जल में घुलने पर सामान प्रकृति के कारण विलेयता अधिक होती है,
अथवा - नियमानुसार सामान सामान को बोलता है के आधार पर आयनिक यौगिकों को घोलने के लिए ध्रुवीय विलायक ओं की आवश्यकता होती है जबकि सह संयोजक योगिको को घोलने के लिए अध्रुवीय विधायकों की आवश्यकता होती है
Note - वे सहसंयोजक योगिक जो पानी में आसानी से घुल जाते हैं इनमें पानी के साथ H2 बंद बनने की क्षमता होती है
जैसे - अल्कोहल, अमीन, कार्बोक्सलिक अम्ल
(2) - ताप का प्रभाव : - जब ठोस पदार्थ को द्रव्य में घोला जाता है तो निम्न प्रकार का विनायक बनता है
(१)- यदि ठोस पदार्थ पानी में घोलकर ऊष्माशोषी विलायक बनाता है तो ला-शायते लिए के नियमानुसार ताप बढ़ने से विलेयता घटती है
जैसे- नमक, चीनी, कपूर, NH4Cl
(२)- यदि पदार्थ को पानी में घोलने पर ऊष्माक्षेपी विलियन बनता है तो ला-शायते लिए के नियमानुसार ऐसे पदार्थ की बिलेता ताप बढ़ाने पर बढ़ती है
जैसे - Caco3, No2Co3
( 3) - दाब का प्रभाव : - ठोस पदार्थ असम्पीडिय होते हैं अर्थात दाब के प्रभाव से मुक्त होते हैं अतः ठोस की द्रव्य में विलेयता पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
◆ गेसो की द्रव्य में विलेयता एवं इसको प्रभावित करने वाले कारक :-
जब भी गैस को द्रव विलायक में घोला जाता है तो गैस का द्रव में विलियन बन जाता है
●गैसों की द्रव में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक :-
(1) - गैस की प्रकृति:- वे गेस पानी में अधिक मात्रा में विलय होती है या तो पानी के साथ क्रिया कर लेती है या पानी में आयनीकृत हो जाती है जैसे Co2, NH3 जैसी गैस पानी में अधिक विलय होती है क्योंकि पानी के साथ क्रिया कर लेती है
Co2 + H2o
(2) - ताप का प्रभाव :- अधिकांश गैस से पानी में घुलकर ऊष्माक्षेपी विलयन बनाती हैअतः गैस की पानी में विलेता ताप बढ़ाने के साथ-साथ घटती है जैसे गैस यह विलयनो में से गैस के मुक्त करने के लिए गैस को गर्म कर दिया जाता है
(3) - दाब का प्रभाव :- दाब बढ़ाने पर गैस की द्रव में बिलेता बढ़ती है क्योंकि दाब बढ़ाने से गैस के कण द्रव के मध्य उपस्थित अंतराकाशो में प्रवेश कर जाते हैं जिससे गैस की विलेता बढ़ जाती है
गैस की दवा में बिलेता पर दाग के प्रभाव को समझने के लिए वैज्ञानिको ने एक नियम दिया
◆हेनरी का नियम:-
इस नियम के अनुसार गैस की द्रव में घुलने वाली मात्रा गैस(m) पर लगाए गए दाब के समानुपाती होती है
M. P
M = knp ( Kn हेनरी नियतांक)
यदि गैस की द्रव में घुलने वाली मात्रा को गैस की मोल अंश माना जाए तो हेनरी का नियम निम्न होगा
किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब विलियन में उपस्थित गैस की मोल अंश के समानुपाती होता है
P समानुपाती X गैस
P = Kn X गैस
X गैस = P/Kn
अतः गैस के लिए हेनरी स्थरांक का मान जितना कम होगा उस गैस की द्रव में विलेता उतनी ही अधिक होगी
◆वाष्प दाब :-
जब किसी द्रव को बंद पात्र में गर्म किया जाता है तो वाष्पन व संघनन की क्रिया उत्पन्न होती है
द्रव =वाष्प (वाष्पन)
वाष्प=द्रव (संघनन)
वाष्प दाब को प्रभावित करने वाले कारक:-
(1) - द्रव की प्रकृति :- द्रवों के कणों के मध्य लगने वाला अंतराआणविक बल जितना दुर्बल होगा उस द्रव की वाष्प उतनी ही बनेगी जिससे वाष्प दाब भी उतना ही अधिक होगा
(2) -ताप का प्रभाव :- द्रव का ताप जितना अधिक होगा वाष्प दाब उतनी ही ज्यादा बनेगी जिससे द्रव का वाष्प दाब भी अधिक होगा
(3) - वाष्प दाब अवनमन:- अवाष्पशिल विलय युक्त विलियन का वाष्प दाब हमेशा शुद्ध विलायक की तुलना में कम होता है इस कमी को वाष्प दाब अवनमन कहते हैं
यदि शुद्ध विलायक का वाष्प दाब p०(नोट) है तथा विलियन का वाष्प दाब p है तो वाष्प दाब में अवनमन
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(4) - द्रव द्रव से बने विलियन के लिए वाष्प दाब :-
द्रव का द्रव से बने बिलियन में विलेय और विलायक दो वाष्पशिल होते हैं इसलिए ऐसे विलियन का वाष्प दाब विलेय व विलायक के वाष्प दाब के बराबर होता है
P=
◆ द्रव द्रव में बने विलियन के लिए राउल्ट का नियम :-
इस नियम के अनुसार विलियन के किसी घटक का आंशिक वाष्प दाब विलियन में उपस्थित उस घटक की मोल अंश के समानुपाती होता है
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* हेनरी नियम की सीमाएं
(1) - हेनरी नियम तभी लागू होता है दाग बहुत अधिक ना हो
(2) - बहुत कम ना हो गैस विलायक से क्रिया न करें और नहीं आयनन हो और नहीं संगुणन हो
(3) - गैस की विलेयता विलायक से कम हो अर्थात विलयन तनु हो
(4) - गैस की आणविक अवस्था द्रव और गैस है दोनों अवस्थाओं में समान हो।
*हेनरी नियम के अनुप्रयोग
( 1 ) शीतलन पेय अवस्था में सोडा वाटर में Co2 की विलेयता बढ़ाने के लिए बोतल को उच्च दाब पर बंद कर दिया जाता है
( 2 ) ऊंचाइयों पर रहने वाले व्यक्तियों में O2 का आंशिक दाब कम होता है अर्थात O2 की सांद्रता कम हो जाती है अतः पर्वताकार रोहिणीयों ओर ऊंचाइयों पर रहने वाले व्यक्तियों में ऑक्सीजन (O2)की कमी के कारण शरीर कमजोर होने लगता है वह उनकी सोचने की क्षमता कम होती है इन लक्षणों को अनोक्सिया कहते हैं
( 3 ) समुंदर की गहराई में गोताखोर अपने साथ सिलेंडर ले जाते हैं जिसमें वायु के साथ हिलियम गैस का मिश्रण किया जाता है क्योंकि गहरे समंदर में गोताखोर को उच्च दाब की वायु से श्वास लेना पड़ता है जिससे वायु में उपस्थित नाइट्रोजन व ऑक्सीजन की रक्त में विलेयता अधिक हो जाती है और जब गोताखोर सतह पर आते हैं तो रक्त में घुली हुई गैस बुलबुलों के रूप में निकलती है यह बुलबुले कोशिकाओं में अवरोध उत्पन्न करते हैं जिससे रक्त का प्रवाह हित होता है अतः गोताखोर को अत्यधिक पीड़ा होती है इस अवस्था को वेंड कहते हैं
** वेंड से बचाव के लिए गोताखोर के गैस सिलेंडर में वायु के साथ हीलियम गैस मिलाई जाती है जिसकी मिले ताकि अधिक कम होती है सामान्यतः गैस सिलेंडर में
He = 11.7% N = 56.2% O2 = 32%
Q : - 1 ताप बढ़ाने पर हाइड्रोजन गैस की जल में विलेयता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
Ans - हाइड्रोजन गैस को घोलने पर ऊष्मा का अवशोषण होता है अतः ऐसी गैस के लिए ताप बढ़ाने पर भी लेता में वृद्धि होती है
Q :- 2 अमोनिया NH3 गैस की बेंजीन C6 H5 विलेयता पर हेनरी नियम लागू होता है?
Ans :- अमोनिया गैस की बेंजीन में विलेयता कम होने के कारण ही हेनरी नियम लागू होता है क्योंकि हेनरी नियम के अनुसार दाब बढ़ाने पर गैस की विलेयता बढ़ती है
विलियन के अणुसंख्य गुण :- विलियन के वे गुण जो विलियन में उपस्थित विलेय के अणुओं की संख्या पर निर्भर करते हैं
◆ विलियन के अणुसंख्य गुण धर्म के नियम :-
(1) - परासरण - वह क्रिया जो विलायक के अणु कम सांद्रता वाले विलियन से अधिक सांद्रता वाले विलियन में अर्द्धपारगम्य झिल्ली में से होकर स्वतः प्रवाहित होते हैं परासरण कहलाता हैं
जैसे - सूखे चने, सूखे मटर, किसमिस आदि को जल में रखा जाने पर परासरण के कारण फूल जाते हैं
(2) - परासरण दाब बिलियन पर लगाया गया वह दाब आधिक्य जो अर्द्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा परासरण को रोकने के लिए आवश्यक हो,विलियन का परासरण दाब कहलाता है
● परासरण के नियमों को प्रयोगों द्वारा समझाया जा सकता है
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एक पात्र को अर्द्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा दो भागों में विभाजित करते हैं दोनों भागों में पिस्टन लगे होते हैं जिस में से एक भाग में विलियन तथा एक भाग में विलायक भर देते है
परासरण की क्रिया प्रारंभ होते ही विलियन वाला पिस्टन ऊपर की ओर उठने लगता है इस क्रिया को रोकने के लिए इतना बाहरी दाब पिस्टन पर उत्पन्न किया जाता है की परासरण ना हो
अतः जो बाहरी दाब परासरण की क्रिया को रोकने के लिए लगाया जाता है परासरण दाब कहलाता है
(1) - समप्रासरी विलियन(आइसोटोनिक) - वे विलियन जिनके परासरण दाब समान होते हैं समप्रासरी विलियन कहलाते हैं। इन विलियनो में विलियन की मोलरता सांद्रता समान होती है।
(2) - अति-परासरणी विलियन (हाइपाटोनिक विलियन) - दो भिन्न परासरण दाब वाले विलियनो में वह विलियन जिसका परासरण दाब दूसरे विलियन के सापेक्ष अधिक होता है अति-परासरणी विलियन दाब कहलाता है।
(3) - अल्प-प्रासरी विलियन(हाइपोटोनिक विलियन) - दो भिन्न परासरण दाब वाले विलियनो में वह विलियन जिसका परासरण दाब दूसरे विलियन के सापेक्ष कम होता है अल्प-प्रासरी विलियन कहलाता है।
* परासरण दाब व मोलर द्रव्यमान(अणुभार) में संबंध -
परासरण दाब व मोलर द्रव्यमान में जो संबंध है उसे नीचे फोटो के माध्यम से दिखाया गया है
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* ठोस का द्रव्य में बने विलियन के लिए वाष्प दाब - ठोस का द्रव्य में बने विलियन के लिए विलेय घटक अवाष्पशील होता है जबकि विलायक घटक वाष्पशील होता है अतः ऐसे विलायक का वाष्प दाब विलियन के वाष्प दाब के बराबर होता है
विलियन का वाष्प दाब (p) = Pb (विलायक का वाष्प दाब)
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* ठोस (अवाष्पशील) का द्रव्य में बने विलियन के लिए राउल्ट का नियम - इस नियम के अनुसार विलेेय युक्त विलियन के वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन विलियन में उपस्थित अवाष्पशील विलेय की मोल अंश के बराबर होता है
इस नियम की पुष्टि निम्न प्रकार से की जाती है
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* आदर्श व अनादर्श विलियन :-
(१) आदर्श विलियन - वह विलियन जो सभी ताप एवं सांद्रता ओ पर राउल्ट के नियम की पालना करता है आदर्श विलयन कहलाता है
-किसी विलियन के आदर्श तब ही कहेंगे जब वह निम्न चार शर्तो की पालना करता है
(1)-विलियन का वाष्प दाब विलेय तथा विलायक के योग के बराबर होना चाहिए
P = P{a} + P{b}
(2)= विलेय को विलायक में घोलने पर बने विलयन का आयतन विलेय तथा विलायक के योग के बराबर होना चाहिए "अथार्थ आयतन परिवर्तन होना चाहिए।
V= V{a} +V{b}
∆V {मिश्रण}= 0
(3) - विलेय को विलायक में घोल ने पर न तो उष्मा उत्सर्जित होनी चाहिए और नहीं अवशोषित होनी चाहिए अर्थार्थ एंथेलपी परिवर्तन शून्य होना चाहिए
(4)- यदि विलेय A तथा विलायक B हैं तो विलेय के अवयवी कणों के मध्य लगने वाला आकर्षण बल A-A आकर्षण बल है तथा विलायक के अव्यवी कणों के मदद लगने वाला आकर्षण बल B-B आकर्षण बल है।
तथा विलियन के अव्यवी कणों के मध्य लगने वाला आकर्षण बल A-B आकर्षण बल है
A-B आकर्षण बल A-A आकर्षण बल या B-B आकर्षण बल के बराबर होता है
A-B(आकर्षण)=A-A(आकर्षण)/B-B(आकर्षण)
(२) अनादर्श विलियन - वे विलियन जो सभी ताप एवं सांद्रता ओ पर राउल्ट के नियम की पालना नहीं करते हैं अनादर्श विलियन कहलाते हैं
अनादर्श विलियन की शर्ते -
(1)- P ≠ P{a} + P{b}
(2)- ∆V {मिश्रण} ≠ 0
(3)- ∆H {एंथेल्पी} ≠ 0
(4)- A-B(आकर्षण) ≠ A-A(आकर्षण)/B-B(आकर्षण)
* अनादर्श विलियन के प्रकार -
(१)- राउल्ट के नियम से धनात्मक विचलन दर्शाने वाले -
(a)- P> P{a} + P{b}
(२) - राउल्ट के नियम से ऋणात्मक विचलन दर्शाने वाले -
(a)- P< P{a} + P{b}
(b)- ∆V {मिश्रण} < 0
(c)- ∆H {एंथेल्पी} < 0
(d)- A-B(आकर्षण) < A-A(आकर्षण)/B-B(आकर्षण)
उदाहरण - एसिटोन + क्लॉरोफॉर्म का मिश्रण राउल्ट के नियम से ऋणात्मक विचलन दर्शाता है। क्योंकि एसिटोन के अणु ओ के मध्य हाइड्रोजन बन्ध नहीं पाया जाता है लेकिन जब इन दोनों को मिला या जाता है तो इन दोनों के मध्य हाइड्रोजन बन्ध बन जाता है जिससे विलियन में आयन परस्पर निकट आ जाते हैं अतः विलियन का आयतन कम हो जाता है
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*Imp*
* स्थिरक्वाथी मिश्रण :- वह द्वीघटिय मिश्रण जिसमें द्रव अवस्था तथा वाष्प अवस्था का संगठन समान हो तो ऐसे मिश्रण एक ही ताप पर उबलते हैं तो ऐसे मिश्रण को स्थिरक्वाथी मिश्रण कहते हैं
स्थिरक्वाथी मिश्रण के प्रकार -
1 - न्यूनतम स्थिरक्वाथी मिश्रण :- यदि मिश्रण का क्वथनांक अपने दोनो घट को के क्वथनांक से कम हो तो ऐसे मिश्रण को न्यूनतम स्थिरक्वाथी मिश्रण कहते हैं
जैसे - 95 एथैनोल + 5% जल का मिश्रण न्यूनतम स्थिरक्वाथी मिश्रण होता है क्योंकि जल का क्वथनांक 100°c व एथेनॉल का क्वथनांक 78.5°C होता है जबकि मिश्रण का क्वथनांक 78°C होता है।
2 - अधिकतम स्थिरक्वाथी मिश्रण - यदि मिश्रण का क्वथनांक अपने दोनो घटको के क्वथनांक से अधिक हो तो ऐसे मिश्रण को अधिकतम स्थिरक्वाथी मिश्रण कहते हैं
जैसे - 68°C HNO3 + 32% जल का मिश्रण अधिकतम स्थिरक्वाथी मिश्रण होता है क्योंकि NHO3 का क्वथनांक 86°C व जल का क्वथनांक 100°C होता है जबकि मिश्रण का क्वथनांक 120°C होता है।
अणुसंख्य गुणधर्म के प्रकार :- अणुसंख्य गुणधर्म चार प्रकार के होते हैं -
(1) वाष्प दाब अवनमन
(2) क्वथनांक उन्न्यन
(3) हिमांक अवनमन
(4) परासरण दाब
(1) वाष्प दाब अवनमन :- अवाष्पशील विलेय युक्त विलियन का वाष्प दाब हमेशा शुद्ध विलायक की तुलना में कम होता है इसे वाष्प दाब अवनमन कहते हैं,
अवाष्पशील विलेय युक्त विलियन के लिए राउल्ट का नियम - इस नियम के अनुसारअवाष्पसील विलेय युक्त विलयन के वाष्प दाब का आपे ()अवनमन विलयन में उपस्थित अवाष्पशील विलेय की भोल के बराबर होता हैं|
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(2) क्वथनांक उन्न्यन :- किसी द्रव का वह ताप जिस पर उस द्रव का वाष्प दाब एक वायुमंडलीय दाब के बराबर आ जाता है तो इस ताप को द्रव का क्वथनांक कहते हैं
शुद्ध विलायक की तुलना से क्वथनांक युक्त विलन का क्वथनांक हमेशा अधिक होता है| इसे क्वथनांक उन्नयन कहा जाता है | यदि शुद्ध विलायक का क्वथनांक t b° तथा विलयन का क्वथनांक t b है तो क्वथनांक उन्नयन
∆T{b} = T{b} -T{b}°
(3) हिमांक अवनमन एवं इस के अवाष्पशील विलेय के भोलार द्रव्यमान की गणना :—
किसी द्रव का वह ताप जिस पर उस द्रव का वाष् प दाब उसकी ठोस अवस्था के बाद दाग के बराबर आ जाए तो यह ताप द्रव का हिमांक कहलाता है
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-:- व्युत्क्रम प्रतिलोम परासरण :— यदि विलयन शुद्ध व विलायक अर्द्ध पारगम्य झिल्ली के द्वारा प्रथक है तो विलियन के पिस्टन पर परासरण दाब के बराबर दाब लगने पर परासरण की क्रिया रुक जाती है|
लेकिन यदि विलयन के पिस्टन पर परासरण दाब से अधिक दाब लगा दिया जाए तो विलियन से विलायक के अणु अर्द्घ पारगम्य झिल्ली से होकर शुद्ध विलायक मे प्रवेश कर जाते है| अर्थात परासरण के विपरीत क्रिया होती है| यह क्रिया व्युक्तम परासरण कहलाती है
विलयन के पिस्टन पर परासरण दाब से अधिक दाब लगने पर विलयन से विलायक के अणु ओ का पारगम्य झिल्ली से होकर बाहर निकलना व्यूक्तम परासरण कहलाता है
Note :- आजकल व्युत्क्रम परासरण क्रिया सृमद्धि जल का पीने योग्य बनाने के लिए किया जाता है
-:- परासरण दाब के नियम:– वांट-हाफ नामक वैज्ञानिक ने गैसों के नियमों को विलयन पर भी लागू किया और एक विलयन समीकरण भी उत्पन्न किया।
(१) वांट हाफ बॉयल का नियम: - निश्चित ताप पर विलयन का परासरण दाब उसकी सांद्रता के समानुपाति होता है
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(२):– वांट हाफ ताप का नियम: - निश्चित सांद्रता तथा तनुता पर विलयन का परासरण दाब उसके परम ताप के समानुपाती होता है
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★ असामान्य मोलर द्रव्यमान : - अणु संख्य गुणों के द्वारा अवाष्पशील विलेय का सही मोलर द्रव्यमान तब ज्ञात हो सकता है
(1) - विलयन तनु हो
(2) - विलयन राउल्ट के नियम की पालना करता है
(3) -विलेय का विलयन में न तो आयनन होता है और नहीं संगुणन होता है!
यदि विलेय का विलयन में आयनन हो जाए या संगुणन हो जाए तो अणुसंख्य गुणों के द्वारा प्राप्त विलियन का मोलर द्रव्यमान उसके वास्तविक मोलर द्रव्यमान से भिन्न होता है इससे असामान्य मोलर द्रव्यमान कहते हैं
★ अणु संख्य गुणों के असामान्य मान: - जब विलेय का विलयन में आयनन होता हो -
तब विलेय का विलयन में आयनन होता है तो विलेय के कणों की संख्या का प्रेक्षित मान सैध्दांतिक मान से अधिक आता है इस स्थिति में अणु संख्य गुणों के असामान्य मान प्राप्त होता है!
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जब विलेय का विलियन में संगगुणन ही तो -
जब विलेय का विलियन में संगगुणन ही तो विलेय के अणुओं की संख्या का प्रेक्षित मान सैध्दांतिक मान से कम आता है इस स्थिति में अणु संख्य गुणों के असामान्य मान प्राप्त होते हैं
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★ वांट हाफ गुणांक : - अणु संख्य गुणों के असामान्य मानो को व्यक्त करने के लिए वांट हाफ नामक वैज्ञानिक ने एक गुणांक दीया जिसे वांट हाफ गुणांक कहते हैं इसे i से दर्शाते हैं।
i = अणु संख्य गुणों के प्रेक्षित मान/अणु संख्य गुणों के सैद्धांतिक मान
i = विलेय के मोलो की संख्या का प्रेक्षित मान/विलेय के मोलो की संख्या का सैद्धांतिक मान
Case -1 :- यदि i = 1 आता है तो विलेय का विलियन में न तो आयनन होगा और नहीं संगुणन होगा
इस स्थिति मे अणु संख्य गुणों के असामान्य मान प्राप्त होते हैं
Case -2 :- यदि i >1 हो तो विलेय का विलियन में आयनन होता हैं।
Case -3 :- यदि i < 1 हो तो विलेय का विलियन में संगुणन होगा
★ क्वथनांक उन्न्यन व वांट हाफ गुणांक में सम्बन्ध :-
ΔTb = iKb.m
ΔTb = i.Kb[Wa/Ma]×[1000/Wb]
★ वांट हाफ गुणांक व हिमांक अवनमन में सम्बन्ध :-
ΔTf = i.Kf.m
ΔTb = I.Kf.[Wa/Ma]×[1000/Wb]
★ वांट हाफ गुणांक व परासरण दाब में सम्बन्ध :-
π = i.CRT
★ वांट हाफ गुणांक व वाष्प दाब के आपेक्षिक अवनमन में सम्बन्ध :-
ΔTf = i.Kf[Wa/Ma]×[1000/Mb]
*imp*
Q - अवाष्पशील विलेय युक्त विलियन हेतु सिध्द करो ΔTf = i.Kb.M
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