Solid State 12th Class Chemistry Notes in Hindi Pdf Download

Solid State 12th Class Chemistry Notes in Hindi Pdf Download | Solid State ठोस अवस्था Chapter Full Notes 12th Class


Solid State Chapter Full Notes in Hindi PDF Download

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ठोस अवस्था कक्षा 12

 ठोस अवस्था  

पदार्थ की वह अवस्था जिसमें अवयवी कण ( कार्बन,अणु,परमाणु,आयन) प्रबल अंतरा आणविक आकर्षण बल से जुड़े होते हैं ठोस अवस्था कहलाती है

ठोस दो प्रकार के होते हैं

[1] क्रिस्टलीय ठोस 

ऐसे ठोस जिनमें अवयवी कण एक निश्चित ज्यामिति में व्यवस्थित होते हैं क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं ( हीरा, क्वार्टज,Nacl)

[2] अक्रिस्टलीय ठोस

 ऐसे ठोस जिनमें अवयवी कण एक निश्चित ज्यामिति में व्यवस्थित नही होते हैं अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं

important Question *

[1] क्रिस्टलीय ठोस को वास्तविक ठोस कहा जाता है क्यों?

 

Answer:- (1) क्रिस्टलीय ठोस को वास्तविक ठोस इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें अवयवी कण एक निश्चित ज्यामिति में व्यवस्थित रहते हैं

 


(2) इसमें अवयवी कण प्रबल अंतरा आणविक आकर्षण बल द्वारा जुड़े होते हैं ( हीरा)
 

क्रिस्टलीय ठोसों के प्रकार 

(Types of crystalline solids) KinYds of crystalline solids) 

Types of crystalline solids
Types of crystalline solids



*Q - 2 क्रिस्टलीय वह अक्रिस्टलीय ठोसों में अंतर लिखिए ?

क्रिस्टलीय

क्रिस्टलीय

1 - इसमें अव्यवी कण  एक निश्चित ज्यामिति में व्यवस्थित रहते हैं 

2 - इस का गलनांक निश्चित होता है

3 - इन्हें वास्तविक ठोस कहा जाता है

4 - यह विषम देसिकता प्रदर्शित करते हैं

5 - इनका शीतलन वक्र सतत रहता है

Ex- हीरा

 

1- इसमें अव्यवी कण  एक निश्चित ज्यामिति में व्यवस्थित नहीं रहते हैं

2- इन का गलनांक निश्चित नहीं होता हैं

3- इन्हें आभासी ठोस भी कहा जाता है

4- यह सम देसिकता प्रदर्शित करते हैं

Ex- काच

 

विभिन बंधो के आधार पर ठोसो का वर्गिकरण

ठोसों के विद्युतीय गुण  (Electrical properties of solids) चालकता के आधार पर ठोसो को तीन भागों में बांटे गए हैं |

चालक:

इसमें विद्युत धारा का चालन अत्यधिक मात्रा में होता है इनकी चालकता की कोठी 10⁴ से 10⅞ om-¹m-¹ होती है


इनको भी दो भागों में बांटा गया है (How many parts the solids are divided into)

धात्विक चालक (इलेक्ट्रॉनिक चालाक) -

 इसमें विद्युत धारा का चालन मुक्त इलेक्ट्रॉनों के रूप में होता है तथा इनमें विद्युत धारा प्रवाहित करने पर इनमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है

जैसे -  सभी धातुएं,Ag, Au, Cu, etc.. 

विद्युत अपघटनी( आयनिक चालक)

इसमें विद्युत धारा का चालन मुक्त आयनो के रूप में होता है विद्युत धारा प्रवाहित करने पर इनमें रासायनिक परिवर्तन होता है ताप बढ़ने से इनकी चालकता बढ़ जाती है ठोस अवस्था में विद्युत धारा का चालन नहीं करते हैं परंतु गलित अवस्था अथवा बिलियन अवस्था में आयन गतिशील होने के कारण यह चालकता प्रदर्शित करते हैं

जैसे - Nacl,Kal,CuSo4 ...

कुचालक (Insulator)- 

इनमें विद्युत धारा का चालन नहीं होता है इनकी चालकता की कोठी (10 की घात - 20) से (10 की घात - 10 ओम इन्वर्स मीटर इन्वर्स) होती है

जैसे - लकड़ी, प्लास्टिक, सल्फर (s)

3 - अर्धचालक( Semiconductor)

किसकी चालकता चालकों व कुचालकों के के मध्य की दूरी होती है इनकी चालकता की कोठी 10 की घात-6 से 10 की घात 4 ओम इन्वर्स मीटर इन्वर्स होती है

और यह 0 डिग्री केल्विन ताप पर पूर्ण रूप से कुचालक के समान व्यवहार करते हैं तथा उनके दाम में वृद्धि करने से उनकी चालकता बढ़ जाती है

अर्द्ध चालक दो प्रकार के होते हैं

(What are the types of semiconductors)


(1):- आंतर/ आंतरिक/ नैज अर्धचालक - 

इस प्रकार के अर्धचालक की चालकता बहुत कम होती है "ताप बढ़ाने से इनकी चालकता में वृद्धि होती है क्योंकि उच्च ताप पर इनमें कुछ सह संयोजी बंध टूट जाते हैं जिससे इलेक्ट्रॉन मुक्त होकर चालकता प्रदर्शित करते हैं इसलिए इन्हें आंतर अर्धचालक कहा जाता है जैसे Si, Ge

(2):- बाहय या आपदृवी अर्धचालक

इस प्रकार के अर्धचालक की चालकता बहुत अल्प होती है इनमें अशुद्धि मिलाने से चालकता में वृद्धि होती है क्योंकि अशुद्धि मिलाने से इनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन याद धनायन क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जो की चालकता प्रदर्शित करते हैं इसलिए इन बहाय अर्धचालक कहा जाता है

इन्हें दो भागों में बांटा गया है -

1) N- प्रकार के अर्धचालक( इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धि) :- 

यदि वर्ग 14 के तत्वों में वर्ग 15 के तत्वों का (डोपिंग) अपमिश्रण कराया जाता है तो n प्रकार के अर्धचालक प्राप्त होते हैं 


जैसे - सिलिकॉन चतुर संयोजी है इसमें फास्फोरस पंचसंयोजी की अशुद्धि मिलाई जाती है तो पोरस का एक इलेक्ट्रॉन अवस्था में रह जाता है जो की चालकता प्रदर्शित करता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन एक ऋण आवेशित कण है जिसके कारण चालकता उत्पन्न होती है इसलिए इन्हें न प्रकार के अर्धचालक कहा जाता है


2) P - प्रकार के अर्धचालक( इलेक्ट्रॉन न्यून अशुद्धि) - 

यदि वर्ग 14 के तत्वों में वर्ग 13 के तत्वों का मिश्रण कराया जाता है तो p प्रकार के अर्धचालक प्राप्त होते हैं 

जैसे सिलिकॉन चतु संयोजी तत्व है और इसमें बोरो त्री संयोजी तत्व है 

सिलिकॉन और बोरोन की अशुद्धियां मिलाने पर बोरोन के केवल 3 इलेक्ट्रॉन ही बंध बना पाते हैं

इसमें बोरन के पास के इलेक्ट्रॉन न्यून छिद्र जिसे धनात्मक छिद्र कहते हैं उपलब्ध हो जाता है क्योंकि चालकता धनात्मक छिद्र के कारण उत्पन्न होती है इसलिए पीने p प्रकार के अर्धचालक कहा जाता है




 

अपूर्णता - : - 

 
क्रिस्टल में अवयवी कणों के अपने नियमित स्थान से लुप्त होना या अपने निश्चित स्थान को छोड़कर क्रिस्टल जालक के अन्य स्थान पर चले जाने अथवा अशुद्धि में लाए जाने के कारण दोष या त्रुटि उत्पन्न हो जाती है जिसे अपूर्णता कहते हैं

अपूर्णता दो प्रकार की होती है( दो भागो मैं बांटा गया है) :- (a) बिंदु दोष (b) धातु या धनात्मक आधिक्य दोष
a :- बिंदु दोष - क्रिस्टल में अवयवी कणों की आदर्श व्यवस्था में अनियमितता अथवा विचलन के कारण उत्पन्न दोष बिंदु दोष कहलाता है

बिंदु दोष को तीन भागों में बांटा गया है(1) स्टाईकियोमीट्रि या रस समीकरण मित्तीय दोष (2) नॉन स्टाईकियोमीट्रि या अरससमीकरण मित्तीय दोष (3) अशुद्धता या अशुद्धि दोष

(1) स्टाईकियोमीट्रि या रस समीकरण मित्तीय दोष :- वह दोष जिसमें क्रिस्टल की स्टाईकियोमीट्रि में कोई परिवर्तन नहीं होता है स्टाईकियोमीट्रि कहलाता है
imp :- इस दोष में क्रिस्टल के धनायन व ऋणायनो का अनुपात सामान रहता है

 इस दोष को 2 भागो मै बांटा गया है
(अ) - रिक्तिका दोष (ब) अंतराकाशी दोष
(अ):- रिक्तिका दोष - वह दोष जिसमें कुछ कण अपना निश्चित स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक से बाहर चले जाते हैं रिक्तिका दोष कहलाते हैं
Note- इस दोष के कारण क्रिस्टल का घनत्व कम हो जाता है
ताप बढ़ने पर इस दोष में वृद्धि होती है
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(ब) :- अंतराकाशी दोष - वह दोष जिसमें कुछ अतिरिक्त कण क्रिस्टल जालक के अंतरा काश में आ जाते हैं  अंतराकाशी दोष कहलाते हैं
Note :- इस दोष के कारण क्रिस्टल का घनत्व बढ़ जाता है
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नोट - रिक्तिका व अंतरा काशी दोष अन आयनिक ठोस ओं में पाए जाते हैं ये दोष आयनिक ठोसो में भी संभव है परंतु इनमें विद्युत उदासीनता बनी रहना आवश्यक है अतः आयनिक ठोसो के इन दोषों को शॉटकि या फ्रेकल दोष के नाम से जाना जाता है

-:- शॉटकी दोष -:-
इस प्रकार के दोष में कुछ आयन अपना निश्चित स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक से बाहर चले जाते हैं क्रिस्टल जालक को छोड़ने वाले धनायनो व ऋणायनो की संख्या समान होती है जिससे क्रिस्टल की उदासीनता बनी रहती है
यह दोष उन आयनिक यौगिकों के क्रिस्टलो में पाए जाते हैं जीने की समन्वय संख्या उच्च होती है और धनायन व ऋण आयन के आकार लगभग समान होता है जैसे- Back, Kcl,Cscl ...

Note - इससे दोष के कारण क्रिस्टल का घनत्व कम हो जाता है और ताप बढ़ने से इस दोष में वृद्धि होती है
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-:- फ्रेंकल दोष -: -
प्रकार के दोष में कुछ आयन अपना निश्चित स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक के अंतर आकाश में आ जाते है सामान्यत है यह दोष धन-आयनों द्वारा उत्पन्न होता है क्योंकि धनायन का आकार ऋण आयन से बहुत ही अधिक छोटा होता है

यह दोष उन आयनिक यौगिकों के क्रिस्टल ओ में पाया जाता है जिनकी समन्वय संख्या निम्न(कम) होती है और धनआयन व  ऋण आयन के आकार में बहुत अधिक अंतर होता है जैसे- Zns,AgCl,AgBr ...

Note - इस दोष के कारण क्रिस्टल का घनत्व अपरिवर्तित रहता है क्योंकि इकाई आयनो की संख्या में कोई कमी नहीं होती है
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Important questions
Q- 【3】शॉटकि व फ्रेंकल दोष में अंतर लिखिए?

शॉटकी दोष- 1) इस दोष में कुछ आयल अपना निश्चित स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक से बाहर चले जाते हैं
2) इसकी समन्वय संख्या उच्च होती है
3) इसमें धनायन व ऋण आयन का आकार समान होता है
4) इस दोष में घनत्व कम होता है
5) यह एक रिक्तिका दोष है (Nacl)

फ्रेंकल दोष- 1) इस प्रकार के दोष में कुछ आयन अपना निश्चित स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक के अंतराकाश में आ जाते हैं
2) इसकी समन्वय संख्या निम्न होती है
3) इसमें धनायन व ऋणआयन के आकार में बहुत अधिक अंतर होता है
4) इस दोष में घनत्व अपरिवर्तित रहता हैं
5) यह एक अंतराकाशी दोष है(Zncl)


( 2) : - नॉन स्टाईकियोमीट्रि या अरससमीकरण मित्तीय दोष :- ऐसे योगिक जिनमें धनायन व ऋणायनो का अनुपात योगिक के अनुसूत्र द्वारा प्रदर्शित अनुपात के समान नहीं होता है अरससमीकरणमितिय दोष कहलाता है
●इसको मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है
(1)- धातु या धनायन न्यून दोष (2)- धातु या धनायन आधिक्य दोष
(1)- धातु या धनायन न्यून दोष:- इस प्रकार के दोष में कुछ धन आयल अपने निश्चित स्थान को छोड़कर क्रिस्टल जालक से बाहर चले जाते हैं क्रिस्टल की विद्युत उदासीनता बनाए रखने के लिए पास के अन्य धनायन पर अतिरिक्त धन आवेश आ जाता है
यह दो संक्रमण धातु के औद्योगिक ओ में पाया जाता है जिनकी परिवर्तनशील ऑक्सीकरण अवस्था होती है (ऑक्सीकरण के बारे में हम आगे पढ़ने)
Ex- Feo,Fes,Nio, etc...

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(2) धातु या धनायन आधिक्य दोष :- यह दोस्त दो प्रकार का होता है
(a)- अंतरा कासमी अतिरिक्त धन आवेश की उपस्थिति से (b)- ऋणायनिक रिक्तिका दोष से
(a) - इस प्रकार के दोष में कुछ अतिरिक्त ईंधन आयनिक क्रिस्टल जालक के अंतराकाश में आ जाते हैं क्रिस्टल की उदासीनता बनाए रखने के लिए अन्य अंतराकाश में इलेक्ट्रॉन भी आ जाते हैं
इस प्रकार के दोष युक्त क्रिस्टल में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति के कारण अनुचुंबकीय रंगीन,चालक होते हैं
Zno को गर्म करने पर यह दोष उत्पन्न हो जाता है जिससे इसका रंग पीला हो जाता है

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(b) - ऋणायनिक रिक्तिका दोष :- इस प्रकार के दोष में कुछ ऋण आयन अपना निश्चित स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक से बाहर चले जाते हैं इनका स्थान इलेक्ट्रॉन द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है जिससे क्रिस्टल की विद्युत उदासीनता बनी रहती है इलेक्ट्रॉन द्वारा ग्रहण किए गए स्थान को रंग केंद्र कहते हैं या F केंद्रों की संख्या बढ़ने से क्रिस्टल का रंग गहरा हो जाता है
इस प्रकार रंगहीन,अनु चुंबकीय,चालक होते हैं
जैसे a- Nacl क्रिस्टल का पीला रंग होना- इसका पीला रंग क्रिस्टल मे Cl(-) के स्थान पर इलेक्ट्रॉन आ जाते हैं इस कारण इस का रंग पीला होता है
b- इसी प्रकार Kcl का रंग बैंगनी व Licl का रंग गुलाबी होता है

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Note:- यदि Nacl के क्रिस्टल को Na परमाणु की वाष्प के साथ गर्म किया जाता है तो Na परमाणु की वाष्प क्रिस्टल की सतह पर फैल जाती है और Cl- क्रिस्टल की सतह पर वितरित हो जाता है और सतह पर Na+ आयनो से क्रिया कर Nacl का निर्माण करता है
Na से Na+ बनाने के दौरान त्यागा गया इलेक्ट्रॉन Cl- साथ चला जाता है और क्रिस्टल को पीला रंग प्रदान करता है


■ अशुद्धता या अशुद्धि दोष:- आयनिक यौगिक में अन्य आयनिक की अशुद्धि मिलाने पर इनकी चालकता बढ़ जाती है इस प्रक्रिया को अपमिश्रित या डोपिंग कहा जाता है
जैसे- Nacl के क्रिस्टल को पिघलाकर उसने अन्य अल्प मात्रा में Srcl की अशुद्धि मिलाकर क्रिस्टलन करते हैं
जिससे क्रिस्टल में कहीं-कहीं Na+ आयन के स्थान पर Sr+2 आयन आ जाता है क्योंकि Sr की ऑक्सीकरण अवस्था +2 होती है अतः एक Sr+2 आयन के लिए 2Na+ आयन अपना स्थान रिक्त कर देते हैं एक स्थान पर Sr+2 आ जाता है और एक स्थान रिक्त रह जाता है इस रिक्त स्थान के कारण ही क्रिस्टल में चालकता उत्पन्न होती है

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★ क्रिस्टल जालक या त्रिविमीय जालक :
क्रिस्टलीय ठोस मे अवयवी कणों की त्रिविम मैं नियमित व्यवस्था को त्रिविम जालक या क्रिस्टल जालक कहते हैं

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★ एकक कोष्ठिका/ मात्रक कोष्ठिका/ यूनिट सेल/ इकाई सेल :- संपूर्ण क्रिस्टलीय संख्या की वह छोटी से छोटी इकाई जिसकी सभी दिशाओं को समान रूप से बार बार दोहराने पर क्रिस्टल संरचना को पुनः उत्पन्न कर देती है एकक कोष्ठिका कहलाती है

एकक कोष्ठिका के लक्षण:- (1) एकक कोष्ठिका की तीन विमाओं को a,b,c से दर्शित करते हैं यह परम इस परस्पर लंबवत हो सकती हैं अथवा नहीं भी।
(2) एकक कोष्ठिका के तीनों कोणों के मध्य कोणों को अल्फा, बीटा, गामा प्रदर्शित करते हैं
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अतः किसी एकक कोष्ठिका को 6 पैरामीटर a,b,c, अल्फा, बीटा, गामा से प्रदर्शित किया जाता है

एकक कोष्ठिका के प्रकार :- इसे दो भागों में बांटा गया है
(1) आद्य या सरल एकक कोष्ठिका (2) केंद्रित एकक कोष्ठिका
(1) आद्य या सरल एकक कोष्ठिका:- वह एकक कोष्ठिका जिसमें अवयवी कण कोनों पर स्थित हो आद्य या सरल एकक कोष्ठिका कहलाती है

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इसमें एकक कोष्ठिका के 8 कोणों पर 8 अवयवी कण उपस्थित होते हैं और प्रत्येक कण का योगदान अपनी एक कोष्ठिका के लिए ⅛ (1 बटा 8) होता है
अतः कुल अवयवी कणों की संख्या= 8×[1/8】= 1 कण

(2) केंद्रित एकक कोष्ठिका:- वह एकक कोष्ठिका जिसमें अवयवी कण कोनो के अतिरिक्त अन्य स्थितियों पर उपस्थित हो केंद्रित एकक कोष्ठिका कहलाती हैं।
■ इसको तीन भागों में बांटा गया है ■

(1) अंतः केंद्रित/काय केंद्रित एकक कोष्ठिका(BCC)
(2) फलक केंद्रित एकक कोष्ठिका(FCC)
(3) अन्त्यं केंद्रित एकक कोष्ठिका(ECC)

(1) अंतः केंद्रित/काय केंद्रित एकक कोष्ठिका(BCC):- वह एकक कोष्ठिका जिसमें अवयवी कण कोनो के अतिरिक्त केंद्र पर स्थित होते हैं अंतः केंद्रित एकक कोष्ठिका कहलाती है

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इसमें एकक कोष्ठिका के 8 कोनों पर 8 अवयवी कण उपस्थित होते हैं जिनका योगदान 8×[⅛]=1 होता है और केंद्र पर स्थित कण का योगदान 1 होता है  अतः एकक कोष्ठिका में कुल अवयवी कणों की संख्या 2 होती है

( 2) फलक केंद्रित एकक कोष्ठिका(FCC) :- वह एकक कोष्ठिका जिसमे अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त प्रत्येक फलक के केन्द्र पर स्थित हो फलक केंद्रित एकक कोष्ठिका कहलाती है

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इसमे एकक कोष्ठिका के आठ कोनों पर आठ कण उपस्थित होते हैं जिनका योगदान 8×(⅛) =1 होता हैं और सभी 6 फलको के केंद्र पर स्थित कणों का योगदान 6×(1/2/) =3 होता हैं
अतः एकक कोष्ठिका में कुल अवयवी कणो की संख्या 4 होती हैं

( 3) अन्त्यं केंद्रित एकक कोष्ठिका(ECC) : - वह एकक कोष्ठिका जिसमें अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त किन्हीं दो विपरीत फलकों पर स्थित होते हैं अन्त्यं केंद्रित एकक कोष्ठिका कहलाती हैं

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इसमें एकक कोष्ठिका के 8 कोनों पर 8 अवयवी कण उपस्थित होते हैं दिन का योगदान 8×[⅛] =1 होता है और दो विपरीत फलकों के केंद्र पर स्थित कोणों का योगदान 2×(1/2) =1 होता है अतः एकक कोष्ठिका में कुल अवयवी कणों की संख्या 2 होटी हैं

निबिड संकुलन (C.P) :
- क्रिस्टल निर्माण के समय अव्यवी कण इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि इसके मध्य कम से कम रिक्त स्थान हो ताकि घनत्व उच्च व स्थायित्व अधिक हो इसी प्रकार की व्यवस्था को निबिड़ संकुलन कहते हैं

निबिड़ संकुलन को तीन भागों में बांटा गया है
A - एक विमीय निबिड़ संकुलन
B - द्विविमीय निबिड़ संकुलन
C - त्रिविमीय निबिड़ संकुलन

A - एक विमीय निबिड़ संकुलन :
- इस प्रकार के निबिड़ संकुलन में अवयवी कण (गोला) एक पंक्ति में इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि एक गोला अन्य दो निकटवर्ती गोलों को स्पर्श करता है अतः इस निबिड़ संकुलन की संकुलन क्षमता 2 होती है

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B - द्विविमीय निबिड़ संकुलन : - द्विविमीय निबिड़ संकुलन को दो भागों में बांटा गया है
( 1) वर्ग - निबिड़ संकुलन
( 2) षट्कोणीय निबिड़ संकुलन

( 1) वर्ग - निबिड़ संकुलन :- इस प्रकार के निबिड़ संकुलन में दूसरी पंक्ति को पहली पंक्ति पर इस प्रकार रखा जाता है की दूसरी पंक्ति के गोले पहले पंक्ति के गोलों के ठीक ऊपर स्थित हो इसी प्रकार अन्य पंक्तियों को रखा जाता है

यदि पहली पंक्ति को A कहा जाए तो दूसरी तीसरी व अन्य पंक्तियों को भी A कहा जाएगा
अतः AAAA........ किसी प्रकार की व्यवस्था प्राप्त होती है
इस व्यवस्था में प्रत्येक गोला चार निकटवर्ती गोलो को स्पर्श करता है  जिनके केंद्रों को मिलाने पर एक वर्ग का निर्माण होता है इसलिए इसे वर्ग निबिड़ संकुलन कहते हैं
इस निबिड़ संकुलन की समन्वय संख्या 4 होती है

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( 2) षट्कोणीय निबिड़ संकुलन :- इस प्रकार के निबिड़ संकुलन में दूसरी पंक्ति को पहली पंक्ति पर इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि दूसरी पंक्ति के गोले पहली पंक्ति के गोलों से बने अवनमन(गर्त्त) में आजाये इस स्थिति में दोनों पंक्तियों के गोले एक रेखा में स्थित नहीं होते हैं
पहली पंक्ति की व्यवस्था को A कहा जाए तो दूसरी पंक्ति की व्यवस्था B कहलायेगी
तीसरी पंक्ति पहली पंक्ति के समान होने के कारण A कहलाती है इस प्रकार ABABAB.... की व्यवस्था प्राप्त होती है

इसी व्यवस्था में एक गोला अन्य 6 निकटवर्ती गोलो को स्पर्श करता है जिनके केंद्रों को मिलाने पर एक षटकोण का निर्माण होता है इस प्रकार के निबिड़ संकुलन की समन्वय (उपसहसंयोजन)  संख्या 6 होती है

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C - त्रिविमीय निबिड़ संकुलन :- इस प्रकार के निबिड़ संकुलन को निम्न प्रकार प्राप्त किया जाता है
(1) - द्विविमीय वर्ग निबिड़ संकुलित परतों से त्रिविमीय निबिड़ संकुलन :- इसी प्रकार की निबिड़ संकुलन में दूसरी परत को पहली परत पर इस प्रकार रखा जाता है कि दूसरी परत के गोले पहली परत के ठीक ऊपर स्थित हो इस प्रकार अन्य परतो को भी रखा जाता हैं
यदि पहली परत को A कहाँ जाये तो दूसरी परत भी A कहलायेगी।
अतः AAAAAA...... प्रकार की व्यवस्था प्राप्त होती हैं।

इस प्रकार प्राप्त जालक सरल घनीय जालक कहलाता है और इसकी एकक कोष्ठिका को सरल घनीय एकक कोष्ठिका कहते हैं

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(2) द्विविमीय षटकोणीय निबिड़ संकुलित परतो से त्रिविमीय निबिड़ संकुलन :- इस निबिड़ संकुलन में परतो को निम्न प्रकार से व्यवस्थित किया जा सकता है
(१) दूसरी परत को पहली परत पर रखना : - दूसरी परत को पहली परत पर इस प्रकार रखा जाता है कि दूसरी परत के गोले पहली परत के गोले पर इस प्रकार रखा जाए कि दूसरी परत के गोले पहली परत के गोलो से बने अवनमन(गर्त) में आ जाये
इस स्थिति में दोनों परतो के गोले एक रेखा में नहीं होते हैं

अतः पहली परत के गुणों की व्यवस्था को A कहा जाए तो दूसरी परत के गोलो की व्यवस्था B कहलायेगी
इस व्यवस्था में चतुष्कफलकीय रिक्ति(छिद्र) के साथ-साथ अष्टफलकीय रिक्ति भी प्राप्त होती है

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(b) तीसरी परत को दूसरी परत पर रखना : - इनको दो प्रकार से रखा जाता है
( 1) - चतुस्कफलकीय रिक्तियो का आच्छादन - तीसरी परत को दूसरी परत पर इस प्रकार रखा जाता है कि तीसरी परत के गोले चतुस्कफलकीय रिक्तियों के ठीक ऊपर स्थित हो इस स्थिति में तीसरी परत के गोलो की व्यवस्था पहली परत के समान होती है अतः तीसरी परत को A कहा जाएगा इस प्रकार इस परतो का एकान्तर क्रम में पुनराक्त होता है जिससे ABABAB.... प्रकार की व्यवस्था प्राप्त होती है किस संरचना को षटकोणीय है निबिड़ संकुलित संरचना (ncp) कहते हैं इस निबिड़ संकुलन की समन्वय संख्या 12 व संकुलन क्षमता 74% होती है
जैसे mg व zn

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B अष्टकफलकीय रिक्तियों का आच्छादन : - तीसरी परत को दूसरी परत पर इस प्रकार रखा जाता है कि तीसरी परत के गोले दूसरी परत के अष्टकफलकीय रिक्तियों को पूर्ण रुप से ढकले
इस स्थिति में तीसरी परत दूसरी परत वह पहली परत के गोले एक रेखा में नहीं होते हैं अथार्थ तीनो परतों की व्यवस्था भिन्न-भिन्न होती है अतः तीसरी परत के गोलों की व्यवस्था को C कहा जाए तो  इस प्रकार ABCABCABC... की संरचना प्राप्त होती है इस संरचना को घनीय निबिड़ संतुलित संरचना (ccp) अथवा फलक केंद्रित निबिड़ संकुलित संरचना ( fcc) कहते हैं इस निबिड़ संकुलन की समन्वय संख्या 12 व संकुलन क्षमता 74% होती है


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★एकक कोष्ठिका की विमा सम्बंधि गणनाए :-

 विमाओं की सहायता से एकक कोष्ठिका आयतन, परमाणु का द्रव्यमान वह एकक कोष्ठिका के घनत्व आवोगाद्रो संख्याओ मैं संबंध स्थापित किया जाता है

यदि एकक कोष्ठिका के किनारों की लंबाई A व एकक कोष्ठिका का आयतन a³ है।
एकक कोष्ठिका का द्रव्यमान = एकक कोष्ठिका में उपस्थित परमाणु की संख्या(n) × एक परमाणु का द्रव्यमान(m)

अतः एकक कोष्ठिका का घनत्व(d) =[एकक कोष्ठिका का द्रव्यमान] ÷ [ एकक कोष्ठिका का आयतन]

d = (n×m)÷ a³

एक परमाणु का द्रव्यमान(m) = M(मोलर द्रव्यमान) ÷ (Na आवोगाद्रो संख्या)

d = (n×m) ÷ (a³ ×Na)

Note :- एकक कोष्ठिका का घनत्व ही पदार्थ का घनत्व होता है,और घनत्व को gm/cm³ में व्यक्त करते है।

★ संकुलन क्षमता (P. E) :- क्रिस्टल जालक में उपस्थित अवयवी कण क्रिस्टल जालक का जितना आयतन घेरते हैं वह उसकी संकुलन क्षमता( दक्षता) कहलाती है
अतः 

संकुलन क्षमता = (क्रिस्टल जालक में उपस्थित गोले का आयतन) ÷ (क्रिस्टल जालक का कुल आयतन)

प्रतिशत संकुलन क्षमता= (क्रिस्टल जालक में उपस्थित गोलों(अवयवी )का आयतन) ×(100) ÷ (क्रिस्टल जालक का कुल आयत





★घनीय निबिड संकुलित संरचना ओ की संकुलन क्षमता :: -
 (1) - सरल घनीय निबिड संकुलित संरचना - इस संरचना में गोले(कण) घन के कोनो पर स्थित होते हैं और कोनो पर स्थित गोल एक दूसरे को स्पर्श करते हैं


(2) अंतः केंद्रित/काय केंद्रित एकक कोष्ठिका(BCC):- निम्न प्रकार फ़ोटो में दिखाया गया है


(3) फलक केंद्रित एकक कोष्ठिका(FCC) :- निम्न प्रकार फ़ोटो में दिखाया गया है

★ठोसों के चुम्बकीय गुण :- चुंबकीय क्षेत्र के आधार पर ठोसों को 5 भागों में बांटा गया है
(1) - प्रति चुंबकीय ठोस
(2) - अनु चुंबकीय ठोस
(3) - लोहे चुंबकीय ठोस
(4) - लघु लोह चुंबकीय ठोस
(5) - प्रति लोहे चुंबकीय ठोस

◆ (1) - प्रति चुंबकीय ठोस : - ऐसे ठोस जिन्हें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाने पर दुर्बल रूप से प्रतिकृषित होते हैं प्रीति चुंबकीय ठोस कहलाते हैं

>इनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित अवस्था में होते हैं
> एक इलेक्ट्रॉन द्वारा उत्पन्न चुंबकीय आघूर्ण का प्रभाव दूसरे विपरीत चक्रण वाले इलेक्ट्रॉन से उत्पन्न चुंबकीय आघूर्ण से निरस्त हो जाता है ठोसों का यह गुण प्रीति चुंबकत्व कहलाता है
Ex - Na+, Zn+,  Nacl, Zno, H- etc..

(2) - अनु चुंबकीय ठोस : - ऐसे ठोस जिन्हें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर दुर्बल रूप से आकर्षित होते हैं अनुचुंबकीय ठोस कहलाते हैं
> इसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं अतः चुंबकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं जब तक चुंबकीय क्षेत्र में उपस्थित रहते हैं चुंबक के समान कार्य करते हैं और चुंबकीय क्षेत्र हटा लेने पर ये अपना चुंबकत्व खो देते हैं ठोसों का यह गुण अनु चुंबकत्व कहलाता है इन पदार्थों से स्थाई चुंबक बनाए जाते हैं
जैसे - Cuo, Tio, Cu+² etc..

(3) - लोहे चुंबकीय ठोस (फेरो चुंबकीय ठोस) : - ऐसे ठोस जिन्हें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर प्रबल रूप से आकर्षित होते हैं लोहे चुंबकीय ठोस कहलाते हैं
ठोस अवस्था में लोहे चुंबकीय पदार्थों के धातु आयन छोटे-छोटे खंडों में समुहित हो जाते हैं जिन्हें डोमेन कहते हैं प्रत्येक डोमेन एक छोटे चुंबक के समान व्यवहार करता है चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में डोमेन अव्यवस्थित रूप से अभीविन्याशी होते हैं अतः एक दूसरे के प्रभाव को परस्पर निरस्त कर देते हैं जबकि चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति में सभी डोमेन स्वतः ही एक दिशा में अभिविन्याशीत हो जाते हैं और प्रबल चुंबकीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं चुंबकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी चुंबकीय गुण प्रदर्शित करते हैं अतः इनसे स्थाई चुंबक बनाए जाते हैं ठोसों का यह गुण लोहे चुंबकत्व कहलाता है
जैसे - Fe,Co,Ni

(4) - लघु लोह चुंबकीय ठोस( फेरी लघु लोह चुंबकीय ठोस) : -  इन ठोसों की संरचना लोहे चुंबकीय ठोसों के समान होती है परंतु डोमेनो का अभिविन्यास एक दूसरे के विपरीत व असमान होता है अतः ठोसों के इस गुण को लघु लोह चुंबकत्व कहते हैं
जैसे - हेमेटाइट(Fe2 O3) व मैग्नेटाइट (Gee O4)

(5) - प्रति लोहे चुंबकीय ठोस(Anitfero):- इन ठोसों की संरचना भी लोहे चुंबकीय ठोसों के समान होती है परंतु इनमें डोमेंनो का चुंबकीय आघूर्ण एक दूसरे के विपरीत होता है अतः एक दूसरे के प्रभाव को निरस्त कर देते हैं ठोसों का यह गुण प्रीति लोहे चुंबकत्व कहलाता है
जैसे - Mno2, Mn2 O3, Cr2 O3

◆ बैंड सिद्धांत : - बैंड सिद्धांत के अनुसार जब परमाण्विक कक्षक परस्पर अतिव्यापन कर आणविक कक्षको का निर्माण करते हैं तो इन कक्षको के मध्य ऊर्जा अंतराल बहुत कम होने के कारण एक पट्टिका( बैंड) के समान संरचना प्राप्त होती है इसलिए इससे बैंड सिद्धांत के नाम से जाना जाता है
> बैंड सिद्धांत के आधार पर चालक, कुचालक व अर्द्धचालकों को प्रकार परिभाषित किया जाता है
(1) - चालक - चालको (धातुओं) मैं या तो संयोजकता बैंड आंशिक रूप से भरे होते हैं या संयोजकता बैंड वह अगले रिक्त चालक बैंड के मध्य अतिव्यापन हो जाता है अतः थोड़ी उर्जा पाकर ही इलेक्ट्रॉन संयोजकता बैंड से चालक बैंड में चले जाते है और चालकता प्रदर्शित करता है

( 2) - कुचालक: - कुचालको( अधातु को) मैं संयोजकता बैंड पूर्ण रूप से भरा होता है परंतु पूर्ण भरे संयोजकता बैंड और अगले रिक्त चालक बैंड के मध्य ऊर्जा अंतराल अधिक होने के कारण  इलेक्ट्रॉन ऊर्जा पाकर संयोजकता बैंड से अगले चालक बैंड में नहीं जा पाते हैं अतः यह चालकता प्रदर्शित नहीं करते हैं

(3) अर्धचालक : - अर्द्धचालकों में संयोजकता बैंड पूर्ण रूप से भरा होता है और संयोजकता बैंड वह अगले रिक्त चालक बैंड के मध्य उर्जा अंतराल बहुत कम होता है अतः थोड़ी उर्जा पाकर ही इलेक्ट्रॉन संयोजकता बैंड से चालक बैंड में चले जाते हैं और अल्प चालकता प्रदर्शित करते हैं

Note - तापमान बढ़ने पर अर्धचालक की चालकता बढ़ती है क्योंकि ताप मैं वृद्धि से संयोजकता बैंड से रिक्त चालक बैंड में जाने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या में वृद्धि होती है


★ ब्रेवे जालक-  ब्रेवे ने बताया कि 7 क्रिस्टल समुदायों को उनकी एकक कोष्ठिका ओ के आधार पर 14 त्रिविम जालको में विभाजित किया गया है जिन्हें  ब्रेवे जालक कहा जाता है


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