12th Class Chemistry Notes Download In Hindi Pdf | Important Questions 2021 | (पृष्ठ रसायन) surface chemistry chapter no 5
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पृष्ठ रसायन (Surface Science) Chapter 6
पृष्ठ रसायन :- रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत किसी पृष्ठ पर होने वाली भौतिक व रासायनिक परिवर्तन की जानकारी होती है, प्रष्ठीय रसायन कहलाती है
-:- अधिशोषण :-
जब अधिशोष्य के कण अधिशोषक के पृष्ठ पर अधिशोषित होते हैं, तो इस ग्रुप को अधिशोषण कहते हैं
जब अधिशोष्य के कण किसी अधिशोषण पृष्ठ उस सतह को बढ़ा देते है तो यह गुण भी अधिशोषण कहलाता हैं
अधिशोषण व अवशोषण में अंतर -
अधिशोषण :- (१) यह एक पृष्ठीय या सतह पर होने वाला प्रक्रम है
(२) इसमें प्रत्येक भाग की संद्रता भिन्न-भिन्न होती है
(३) यह प्रारंभ में तीव्र गति से तथा फिर धीमी गति से होता है
अवशोषण :-
(१) यह आंतरिक भाग में होने वाला प्रक्रम है
(२) इसमें प्रत्येक भाग की सांद्रता समान होती है
(३) यह सदैव एक समान गति से होता है
अधिशोष्य :- वे पदार्थ जो अधिशोषण पृष्ठ में अधिशोषित होते हैं अधिशोष्य कहलाते हैं
अधिशोष्य पदार्थ द्रव अथवा गैस अवस्था में हो सकते है
अधिशोषक :- वह सतह जिस पर अधिशोषण की क्रिया होती है अधिशोषक पृष्ठ कहलाता है
अधिशोषण की परत की अवस्था ठोस या द्रव हो सकती है
धनात्मक अधिशोषण :- जब अधिशोषण के कणों की सांद्रता का मान अधिशोषक पृष्ठ से ज्यादा होता हो तो उसे धनात्मक अधिशोषण कहते हैं
ऋणात्मक अधिशोषण :- जब अधिशोषण के कणों की सांद्रता का मान अधिशोषक पृष्ठ से कम होता हो तो उसे ऋणात्मक अधिशोषण कहते हैं
अधिशोषण के प्रकार - अधिशोषण दो प्रकार का होता है
१- भौतिक अधिशोषण :- जब अधिशोष्य के कणों तथा अधिशोषक पृष्ठ के मध्य दुर्बल वांडरवाल बल कार्य करता हो तो इसमें भौतिक अधिशोषण की क्रिया होती है।
२- रासायनिक अधिशोषण :- जब अधिशोष्य के कणों तथा अधिशोषक पृष्ठ के मध्य प्रबल रासायनिक बल कार्य करता हो तो इसमें रासायनिक अधिशोषण की क्रिया होती है।
Q - भौतिक अधिशोषण व रासायनिक अधिशोषण में अन्तर -
भौतिक अधिशोषण - > इसमें अधिशोष्य व अधिशोषण के मध्य दुर्बल वांडरवाल बल कार्य करता है
> यह उत्क्रमणीय प्रक्रम है
> इसमें अधिशोष्य व अधिशोषण मध्य दुर्बल रासायनिक अभिक्रिया होती है
> ताप बढ़ने से अधिशोषण घटता है
> अधिशोषक के पृष्ठ का क्षेत्रफल बढ़ने पर अधिशोषण की मात्रा में वृद्धि होती है
> इसमें बहू आणविक सतह बनती है
> इसकी प्रकृति विशिष्ट नहीं होती है
> इसकी ऊष्मा का मान कम होता है (20 - 40)k.j mol-
रासायनिक अधिशोषण -
> इसमें अधिशोष्य व अधिशोषण के मध्य प्रबल रासायनिक बल कार्य करता है
> यह अनुत्क्रमणीय प्रक्रम है
> इसमें अधिशोष्य व अधिशोषण मध्यप्रदेश रासायनिक क्रिया होती है
> ताप बढ़ने से अधिशोषण बढ़ता है
> यह भी अधिशोषण के पृष्ठ का क्षेत्रफल बढ़ने से बढ़ता है
> इसमें एक अणु की सतह होती है
> यह विशिष्ट प्रकृति का होता है
> इसकी ऊष्मा का मान उच्च होता है (80 - 240)k.j mol-
-:- अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक - अधिशोषण ठोस अवस्था में होता है अधिशोष्य गैस अवस्था में होता है अधिशोषण की क्रिया निम्न कारकों से प्रभावित होती है
(1)- अधिशोषण (गैस) तथा अधिशोषण (ठोस) की प्रकृति पर - वे गैसे जो आसानी से द्रवीत हो जाती है (H-CL,NH3,CO2) इन गैसों की अधिशोषण क्षमता अधिक होती है जबकि वे गैसे जो अनआयनिक (आसानी से द्रवीत नहीं होती) (H2-O2 N2) इनकी अधिशोषण क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है क्योंकि आयनिक अभिक्रिया तीव्र गति से संपन्न होती है तथा वे अपने क्रांतिक ताप पर निर्भर करती है!
किसी गैस का क्रांतिक ताप वह न्यूनतम ताप होता है जिससे अधिक ताप पर गैस का द्रविकरण संभव नहीं होता चाहे उस पर दाब कितना भी अधिक लगाया जाए!
Note :- किसी गैस के क्रांतिक ताप जितने अधिक होंगे वे आसानी से द्रवित होकर अधिक अधिशोषण होगी
(4)- अधिशोषण का पृष्ठीय क्षेत्रफल :-- यदि किसी ठोस अधिशोषण के पृष्ठीय क्षेत्र के मान में वृद्धि होगी तो उस पर अधिशोषण की क्रिया भी अधिक होगी क्योंकि अधिशोषण की क्रिया अधिशोषण के पृष्ठ के समानुपाती होती है
EX:- अधिशोषण क्षमता का क्रम:–(Pcl>pt>Au>Ni )
(5):- ताप का प्रभाव :- जब किसी गैंस को द्रव में घोला जाता है अर्थात गैस का अधिशोषण कराया जाता है तो इस स्थिति में यदि उनके ताप में वृद्धि कर दी जाए तो घूले हुए गैस के कणों की गति उर्जा में वृद्धि होगी इससे वे आपस में टकरा कर पुनः वाष्पित होने लगेंगे अर्थात ताप बढ़ाने पर उष्मा क्षेपी प्रक्रम में गैस के द्रव्य में अधिशोषण क्षमता घटती जाती है
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(6):- दाब का प्रभाव :- किसी अधिशोषण पदार्थ पर जब दाब बढ़ाया जाता है तो उसके अधिशोषण की मात्रा बढ़ती जाती है अर्थात अधिशोषण के मात्रा अधिशोषण पदार्थ पर लगाए गए दाब के समानुपाती होती हैं
अधिशोषण की मात्रा ∝ P
* दाब के इस प्रभाव को विभिन्न परिस्थितियों में अर्थात दाब के विभिन्न मान अधिशोषण की व्याख्या को स्पष्ट करने के लिए फ्रेंडली ने एक समतापी वक्र दिया था
* फ्रायंडली (फ्रेंडलीवो) समतापी वक्र:- इसके अनुसार किसी सामान दाब के विभिन्न मानो के लिए अधिशोषण को मात्रा को स्पष्ट किया जाता है
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* अधिशोषण के अनुप्रयोग:-
(1) गैस मास्क :- संक्रिय 4 मॉल का गैस मास्क में उपयोग किया जाता है यह वायु में उपस्थित जहरीली तथा हानिकारक गैसों (CO,CH{4}) अधिशोषित कर लेता है
(2) कपड़ों की रंगाई में:- इसमें फिटकरी का उपयोग किया जाता है जो कि रंजको के कणों को अधिशोषित कर लेता है
(3) नमी को हटाने में :- वायु में उपस्थित नमी को अधिशोषित करने के लिए सिलिका जेल का उपयोग किया जाता है
(4) रंगीन अशुद्धियों को दूर करना :- शर्करा, रवाघ तेल आदि में उपस्थित रंगीन अशुद्धियों को चारकोल के द्वारा अधिशोषित करते हैं
(5) विषमांगी उत्पेरण में:- अभी कारकों की प्रावस्था से भिन्न प्रावस्था वाले उत्पेरण विषमांगी कहलाते हैं
(6) आयन विनिमेंय रेंजिन :- इसके कठोर जल में से विशिष्ट अशुद्धि वाले आयनों का अधिशोषण करके(COOH,So3) के द्वारा इसे मृदुबना या जाता है
(7) उच्च निर्वात उत्पन्न करने में:- चारकोल द्वारा द्रवित वायु से वायु को अधिशोषण करके उसे निर्वात बनाते हैं
(8) गुणात्मक विश्लेषण :- अम्ल व क्षारो के परीक्षण के लिए लिटमस पत्र का उपयोग अधिशोषण में किया जाता है
(9) वर्ण लेखिकी में:- इसके किसी अधिशोषण द्वारा आंटिक की मिश्रण को उसके अवयवों की पृथक किया जाता है
* उत्प्रेरण:- वे रासायनिक पदार्थ जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में सक्रिया रूप से भाग नहीं नहीं लेते लेकिन अभिक्रिया वेग को परिवर्तित कर देते हैं तथा स्वयं अपरिवर्तित करते हैं उन्हें उत्प्रेरक कहा जाता है तथा उनके इस गुण को उत्प्रेरण कहते हैं
=> उत्प्रेरक दो प्रकार के होते हैं:-
(A) धनात्मक :- यह वे होते हैं जिनके किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग में वृद्धि हो जाती है क्योंकि धनात्मक उत्प्रेरक से उस अभिक्रिया की संक्रियण ऊर्जा का मान घट जाता है
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(B) :-ऋणात्मक उत्प्रेरक :- वे उत्प्रेरक जो अभिक्रिया के वेग को घटा देते हैं ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं
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(C) स्वतः उत्प्रेरक :- वे रासायनिक अभिक्रिया जिनमें अभिक्रिया के दौरान बनाने वाले उत्पाद के कुछ अंश उत्प्रेरक की भांति कार्य करते हैं तो उन्हें स्वतः उत्प्रेरक अभिक्रिया कहते हैं
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(D) प्रेरित उत्प्रेरक :- यदि किसी एक योगिक की किसी अन्ययोगिक से क्रिया होती हो तथा किसी दूसरी अभिक्रिया में यह क्रिया नहीं होती है तो यह दोनों अभिकारक परस्पर मिलकर उस अन्य योगिक से अभिक्रिया लेते हैं
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* उत्प्रेरण के प्रकार:-
(1) समांगी उत्प्रेरक :- यदि किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकरको को तथा उत्प्रेरक की भौतिक अवस्था समान हो तो उसे समांगी उत्प्रेरण कहते हैं
2SO2{g}+O2 {g} _NO{g} 2SO3{g}
------------------------>
(2)- विषमांगी उत्प्रेरण :- वे रासायनिक अभिक्रिया जिसमें अभिकारक तथा उत्प्रेरण भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में हो तो उसे विषमांगी उत्प्रेरण कहते हैं
वनस्पति तेल{L}+H2{g} Ni{s} वनस्पति घी{s}
-------------->
N2{g}+3H2{g} Fe{s} 2NH3{g}
-------------->
Imp*
विषमांगी उत्प्रेरण की क्रिया विधि :- यदि किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक ठोस अवस्था में हो तथा अभिकारक गैस अवस्था द्रव में हो तो वह विषमांगी होगा तथा उसकी क्रिया विधि की व्याख्या निम्न पदों में की जाती है
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उत्प्रेरको के चारों ओर मुफ्त संयोजकताए पाई जाती है अतः उत्प्रेरक के चारों ओर अभिकारक विषरित होते हैं तथा धीरे-धीरे अधिशोषीत होने लगते हैं, इस अधिशोषण के पश्चात उनकी सक्रियता धीरे-धीरे बढ़ने लगती है जिससे वे अभिकारक आपस में क्रियाओं करना प्रारंभ करते हैं तथा मध्यवर्ती का निर्माण करते हैं जब इनकी सक्रियता बढ़ जाती है तो वह पूर्णतया उत्पाद बनाकर उत्प्रेरक की सतह से प्रथक हो जाते हैं इस प्रकार कोई ठोस उत्प्रेरक अभिक्रिया में अभिकारको की सक्रियता को बढ़ाता है
इस सिद्धांत के प्रमुख बिंदु निम्न है
(1)- अभिकारक को सक्रिय होकर उत्पाद बनाने के पश्चात सतह से पृथक हो जाना, जिससे वह उत्प्रेरक अधिक मात्रा में अभिकारको को सक्रिय कर सकें
(2)- उत्प्रेरक की सूक्ष्म मात्रा ही बहुत से अभिकारको को प्रभावित करती है
(3)- जब अभिकारक मध्यवर्ती का निर्माण करके क्रियाफल बनाते हैं तो उसकी अधिशोषण ऊर्जा संक्रियण उर्जा की कमी को पूरा करता है
(4)- कोई वर्धक उत्प्रेरक के पृष्ठ पर इस प्रकार अधिशोषित होता है कि सक्रिय केंद्रों की संख्या बढ़ जाती है
(5)- विष के अणु उत्तर के प्रश्न पर उपस्थित मुफ्त संयोजकता ओ पर दृढ़ता से संयोजित होता है
-:- एंजाइम उत्प्रेरण :- वे नाइट्रोजन युक्त उच्च अणुभार वाले जटिल योगीक होते हैं, वे जीवित पेड़-पौधों तथा वनस्पतियों से प्राप्त किए जाते हैं इन्हें जल में घोल ने पर कोलाइडी विलियन प्राप्त होता है, ये विभिन्न प्रकार के जैव रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होते हैं अत: इन्हे जैव रासायनिक उत्प्रेरक कहा जाता है इनके इस गुण को जैव रासायनिक उत्प्रेरण कहते है।
एंजाइमो के कणों का आकार 10 से 100nm होता है
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-:- एंजाइम उत्प्रेरको के गुण :-
(1)- यह विशिष्ट प्रकृति के होते हैं क्योंकि किसी एक जैव रासायनिक अभिक्रिया के लिए कोई निश्चित एंजाइम उत्प्रेरक लिया जाता है
(2)- एंजाइम उत्प्रेरक अत्यधिक प्रभावी होते है क्योंकि इनका एक अणु अभिकारकों के लगभग 1000000 अणुओं को प्रभावित कर देता है
(3)- सभी एंजाइम एक निश्चित ताप तथा निश्चित PH से पर कार्य करते हैं इन्हें क्रमश अनुकूलतम ताप (इष्टतम)या अनुकूल तम कहते हैं
(4)- यह कोलाइडी प्रकृति के होते हैं इन्हें विद्युत अपघटन मिलाकर स्कंदन द्वारा नष्ट किया जा सकता है
(5)- एंजाइमों के लिए कुछ धातु आयन जैसे आदि वर्धक की भाति कार्य करते हैं
(6)- एंजाइमों के लिए कुछ पदार्थ जैसे ( Mn+{2},Co+{2},Cu+{2},Fe+{3}Zn+{2},etc. )आदि पदार्थ विषकी की भाति कार्य करते हैं जो कि पराबैंगनी विकिरण से नष्ट हो जाते है
NOTE:- मानव शरीर की अनुकूलन तम PH 7.4 तथा एंजाइमों के लिए अनुकूलतम ताप 25° से 37° के मध्य होता हैं अनुकूलतम PH लगभग 7 होती है
* एंजाइमों की क्रिया विधि:- एंजाइमों किसी जैव रासायनिक अभिक्रिया में ताला चाबी सिद्धांत पर कार्य करते हैं यह क्रिया विधि दो पदों में होती है
(1) प्रथम पद:- इसमें अभिकारक (सबट्रैक्ट) एंजाइमों इमो से क्रिया करके एक मध्य वृत्ति का निर्माण करता है
(2) द्वितीय पद:-इसमें वह मध्य वर्ति उत्पाद का निर्माण करता है तथा एंजाइम से पृथक हो जाता है
* वर्धक तथा विष:- किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक के साथ लिए गए वह सह उत्प्रेरक जो इस उत्प्रेरक की सक्रियता को बढ़ाते हैं वर्धक कहलाते हैं
विष:- वे सह प्रेरक जो उत्प्रेरक की सक्रियता को घटा देते हैं विष कहलाते हैं
* जिओलाइट उत्प्रेरक :-
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इसे सोडियम जिओलाइट भी कहते हैं यह NA का एलमिनो सिलीकेट होता है इसकी संरचना लगभग मधु मारवी के समान होती है अर्थात सतह पर रंद्र पाए जाते हैं इसे रंद्रो में जल योजित अणु भरे होते हैं अतः इसे उपयोग में लाने से पूर्व गर्म किया जाता है जिससे जलयोजीत अणु बाहर निकल जाते हैं तथा रंद्र रिक्त हो जाते हैं रंद्रो में ये उत्प्रेरक के कण आधिशोषित होकर अपनी सक्रियता को बढ़ाते हैं
=> ZSM-5 नामक जिओलाइट उत्प्रेरक पेट्रो रसायन मैं उपयोग में लाया जाता है जोकि एथेनॉल को सीधे गैसोलिन में परिवर्तित कर देता है
Q1:- शोषण तथा अधिशोषण में क्या अंतर होता है?
शोषण :- अधिशोषण तथा अवशोषण दोनों प्रक्रियाए एक साथ संपन्न होती हो तो उसे शोषण कहते हैं
विशोषण :- किसी अधिशोषण पृष्ठ से अधिशोष्य का बाहर निकल जाना अधिशोषण कहलाता है
-:- कोलाइड -:-
वे पदार्थ के कण जो अर्ध पारगम्य झिल्ली में से आसानी से नहीं छाने जा सकते हो कोलाइड कहलाते हैं, जबकि वे कण जो अर्द्ध पारगम्य झिल्ली में से आसानी से जाने जा सकते हैं क्रिस्टललाभ कहलाते हैं
=> कोलाइडी कणों से मिलकर बना विलियन कोलाइडी विलयन कहलाता है
=> विलियन तीन प्रकार के होते हैं
(1)- वास्तविक विलियन (2)- कोलाइडी विलियन (3)- निलंबन विलियम
=> कोलाइडी विलियन के दो प्रमुख घटक होते हैं
(1)- परीक्षिप्त प्रावस्था - वह घटक जिसकी किसी कोलाइडी विलियन में कम मात्रा उपस्थित हो परीक्षिप्त प्रावस्था कहलाता है
(2)- परिक्षेपण माध्यम :- वह घटक जिसकी किसी कोलाइडी विलियन में अधिक मात्रा उपस्थित हो परिक्षेपण कहलाता है
कोलाइडी विलियन= परीक्षिप्त प्रावस्था+परिक्षेपण माध्यम
-:- परीक्षित प्रावस्था के कणों के आधार पर वर्गीकरण :-
(1)- बहु आण्विक कोलाइड :- इनको कोलाइडो में परमाणु का आकार लगभग 10(-7) से भी कम होता है तथा उन कणों में दुर्बल वांडरवाल बल पाए जाते हैं यह कोलाइड 1000 या इससे अधिक अणुओं के समूहों के रूप में उपस्थित रहते हैं
Ex - सल्फर सोल(S8)
(2)- वृहद कोलाइड :- इनको लाइनों में अणुओं का आकार बड़ा होता है उनके उच्च अणुभार होते हैं
वृहद कोलाइड दो प्रकार के होते हैं
=>प्राकृतिक वृहद कोलाइड :- स्टार्ट,एंजाइम,सैलूलोज, प्रोटीन आदि।
=>कृत्रिम बृहद कोलाइड :- नायलॉन,पॉलिथीन, पॉली स्टाइलिन
Imp*
(3)- संगुणित कोलाइड(मिसेल) :- वे पदार्थ जो अपनी निम्न सांद्रता पर एक विद्युत अपघट्य की भांति कार्य करते हो तो उसे संगुणित कोलाइड कहते है।
मिसेल :- वे पदार्थ एक पिंजरे नुमा संरचना के द्वारा मिशेल का निर्माण करते हैं अतः इन संगुणित कोलाइड को मिशेल कहा जाता है
-:- मिशेल निर्माण की क्रियाविधि :-
=> मिशेल निर्माण के लिए उच्च अणुभार योगिकों को लिया जाता है
जैसे सोडियम स्टीरिएट(C17H35COONa)
=> इस अणु के लगभग 100 या इससे अधिक अणु लिये जाते है
=> मिशेल निर्माण के लिए ऐसे अणु लिए जाते हैं जिसमें स्नेही तथा द्रव्य विरोधी दोनों भाग उपस्थित हो
=> सोडीयम स्टीरीएट अपनी निम्न सांद्रता पर एक विद्युत अपघट्य की भांति कार्य करता है जिस में COO- भाग द्रव्य स्नेही जबकिC17H35 द्रव्य विरोधी के रूप में होता है
C17H35-COO(-)-Na(+) <--निम्न सांद्रता--> C17H35-COO(-) द्रव विरोधी + Na(+)द्रव स्नेही
=>उच्च सांद्रता पर यह सोडियम स्टीरिएट एक गोलीय रूप में इस प्रकार पुंजित हो जाते हैं की इनके द्रव स्नेही भाग परिधि (बाहर) की ओर जबकि द्रव्य विरोधी भाग केंद्र की ओर स्थित होते हैं इस प्रकार यह मिशेल का निर्माण करते हैं
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-:- मिसेलीकरण की क्रिया विधि (साबुन की शोधन क्रिया) :- सोडियम स्टीरिएट(साबुन) में सतह पर द्रव स्नेही भाग लगा होता है जो कि गंदे कपड़े से तेल में चिकनाई की बूंदों को अपने अंदर खींच लेता है (क्रिया करके ) जिससे वस्त्र साफ दिखाई देने लगता है जबकि यह साबुन की बूंदे मैली हो जाती है इसे ही साबुन की शोधन क्रिया (निक् सालन) कहते हैं
-:- द्रव विरोधी कोलाइड बनाने की विधियां :- किसी द्रव विरोधी कोलाइड के बड़े कणों को तोड़कर उन्हें कोलाइड आकार का बनाना परीक्षेपण विधि कहलाती है,जबकि बारीक कणों को परस्पर सयोजित करके उन्हें कोलाइड आकार का बनाना संघनन विधि कहलाती है
(A) - परीक्षेपण विधिया :-
(1) - किसी पदार्थ को टूकड़ो में तोड़कर पहले निलंबन बनाया जाता है फिर उस निलंबन को एक कोलाइडी चक्की में लेकर(पिसकर)कोलाइडी विलियन बनाया जाता है
इस कोलाइडी चक्की में दो धातुओं के यांत्रिक पार्ट होते हैं जिनमे लगभग 6000 प्रती मिनट की गति से कार्य करते हैं
अतः इस विधि में कोलाइडी चक्की द्वारा निलंबन कणों को पीसकर कोलाइडी कणों में परिवर्तित किया जाता है
(2) - ब्रेडिंग आर्क विधि (विद्युत परीक्षेपण):- एक पात्र में परीक्षेपण माध्यम लेकर उसे हिमसितती रखते हैं फिर जिस धातु का सोल बनाना हो उसके दो पतले तार लेकर उन्हें विद्युत परिपथ में जोड़ते हैं तथा इन्हे जल में डुबोकर एक दूसरे से टकराकर विधुत आर्क उत्पन्न करते हैं,जिससे उस धातु के कण जल में घुल जाते हैं तथा यह प्रक्रम बार-बार दोहराने से उस धातु को सोल प्राप्त होता है।
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(B) - संघनन विधि (रासायनिक विधि) :- कोलाइडी विलियन बनाने के लिए लिए गए विभिन्न अभिकारक को का अपचयन ऑक्सीकरण द्विक तथा जल अपघटन की क्रियाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के सोल प्राप्त किए जाते हैं
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(2) विधायक विनिमेय विधि :- कुछ पदार्थ जो जल की अपेक्षा एल्कोहल मैं अधिक विलेय होते हैं वे एल्कोहलीक की विलयन में जल का अधिक्य मिलाने पर कोलाइडी विलयन देते हैं अर्थात जल में स्थानांतरण विनिमेय पर अणुओं का अधिक संयोजन होने लगता है जिससे सोल प्राप्त होते हैं
(3) पदार्थ की वाष्प का द्रव में संघनन :- किसी उबलते हुए पदार्थ की वाष्प को द्रव में प्रवाहित करने पर उस पदार्थ का कोलाइडी विलयन प्राप्त हो जाता है
इस विधि के द्वारा सल्फर, मर्करी,Hg के जलीय कोलाइड प्राप्त किये जा सकते है
-:- कोलाइडी विलियनों का शुद्धीकरण :-
(1)- अपोहन :- किसी अर्द्ध पारगम्य झिल्ली में कोलाइडी विलियन को भर उसे एक पोटली नुमा रूप में बांधते हैं, फिर एक पात्र में जल लेकर उसे अर्द्ध पारगम्य झिल्ली की पोटली को डूबोते हैं,जिससे जल के कण अर्द्ध पारगम्य में जाकर द्रव्य अशुद्धियों से क्रिया करते हैं फिर इस अपोहक को बाहर निकाला जाता है तो जल के साथ ये अशुद्धियां बाहर की ओर विसरित होती है इस प्रक्रम को बार-बार दोहराने से उस कोलाइडी विलियन का शुद्धिकरण होता है
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(2)- विधुत अपोहक :- यह अपोहन की ही नई तकनीकी होती है इसमें विद्युत परिपथ लगाकर अपोहन की क्रिया कराई जाती है जिससे अपोहन तीव्रता के साथ होता है
विधि - अशुद्ध कोलाइडी विलियन को दो अपोहन झिल्लीयों के मध्य भर देते हैं फिर इसे एक पात्र के मध्य भाग में व्यवस्थित करते हैं तथा इसके दोनों और शुद्ध जल को भर दिया जाता है यह उसके बाहिय भाग कहलाते हैं इन बाहिय भागों में इलेक्ट्रॉड लगाकर विद्युत प्रवाहित करने से कोलाइडी विलियन में उपस्थित अशुद्धियां विपरीत इलेक्ट्रॉडो की ओर वितरित होने लगती हैं अर्थात अशुद्धियां दिल्ली से बाहर आने लगती है
Note - कोलाइडी विलियन आवेशित होता है तथा इस में उपस्थित अशुद्धियां विपरीत आवेशित होती है
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-:- अति सूक्ष्म निस्पंदन (फिल्टरन) :- इसके लिए एक फिल्टर पेपर को प्रयुक्त करते हैं लेकिन इसमें रंद्र थोड़े बड़े होने के कारण छोटे आकार के कोलाइडी कण उसमें से छन जाते हैं अतः उन रंद्रो को बारीक करने के लिए फिल्टर पेपर को कोलाइडीन में डुबोया जाता है जिससे रंद्र बारीक हो जाते है।
Note - एथिल अल्कोहल, ईथर में 4% नाइट्रोसैलूलोज मिलाने से बना विलियन कोलोडियन कहलाता है
=> फिल्टर पेपर को कोलोडियन से निकालकर फॉर्म एल्डिहाइड में डुबोते हैं जिससे वह कठोर हो जाता है अब इस फिल्टर पेपर से उस कोलाइडी विलियन को छाना जाता है जिससे अशुद्धियां छन कर पृथक हो जाती है तथा कोलाइडी विलियन शेष रहता है
-:- कोलाइडी विलियन के गुण :-
(1)- विषमांगी प्रकृति :- कोलाइडी विलियन दो विभिन्न भौतिक अवस्था वाले कणों से मिलकर बना होता है अन्य शब्दों में परीक्षित प्रावस्था के कणों का आकार बड़ा होने के कारण यह विषमांगी प्रकृति के होते हैं
(2)- रंग प्रकृति :- किसी कोलाइडी विलियन का रंग परीक्षित प्रावस्था द्वारा प्रकाश के पर प्रक्रिणीत तरंग धैर्य पर निर्भर करता है अर्थात किसी कोलाइडी विलियन के द्वारा जिस रंग का प्रकीर्णन होता है वह वस्तु उसी रंग की दिखाई देती है
(3)- ब्राउनी गति :- किसी कोलाइडी विलियन को अति शक्तिशाली सूक्ष्म दूरदर्शी की सहायता से देखा जाता है तो वे कोलाइडी कण निरंतर टेडी मेडी गति करते रहते हैं तथा आपस में टकराते रहते हैं यदि परिचित प्रावस्था के कणों का आकार बड़ा हो तथा परीक्षेपण माध्यम की श्यानता अधिक हो तो ब्राउनी गति का मान कम होगा अर्थात ब्राउनी गति धीमी होगी
(4)- टिंडल प्रभाव :- यह एक प्रकाशीक घटना होती है इसमें जब किसी कोलाइडी विलियन को प्रकाश की उपस्थिति में रखा जाए तो प्रकाश की किरण पुंज उन कोलाइडी कणों पर आपतित होकर चारों तरफ समान रूप से प्रक्रिणीत होता है इस कारण वे कण हमे दिखाई देते हैं जब प्रकाश की एक किरण कोलाइडी कणों से टकराती है तो वह एक संकू नुमा संरचना का निर्माण करती है जिसे टिंडल संकू कहते हैं
=> प्रकाश किरण पुंज को कोलाइडी विलियन में से गुजारने पर प्रकाश का पथ दिखाई देता है जबकि वास्तविक विलियन में से गुजारने पर पथ दिखाई नहीं देता है
=>कोलाइडी कणों का आकार जितना बड़ा होगा परावर्तित किरणों की तरंग धैर्य भी उतनी ही अधिक होगी इस स्थिति में टिंडल प्रभाव भी अधिक होगा
=>द्रव्य स्नेही की अपेक्षा द्रव्य विरोधी कोलाइडों में इसी कारण से डिंटल प्रभाव अधिक होगा
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