शमशेर बहादुर सिंह जी का जन्म सन 1911 ईस्वी में हुआ था और उनकी मृत्यु 1993 में हुई थी इनका आयु का 82 वर्ष का रहा है
देहरादून में जन्मे शमशेर बहादुर सिंह को मात्र 8-9 वर्ष की उम्र में माँ का चिरवियोग सहना पड़ा । 18 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हुआ मगर मात्र 6 वर्ष साथ निभाकर पत्नी भी टीबी से चल बसी । जीवन के अभावों ने उनके कवित्व को दुर्बल नहीं बनाया बल्कि धारदार बनाया । बिम्बधर्मी कवि के रूप में विख्यात शमशेर की कविता में प्रगतिशील कवि की वैचारिकता तथा प्रयोगधर्मी कवि की शिल्प विधा का अनूठा संगम मिलता है । कवि द्वारा रचित सौन्दर्य के अनूठे चित्र पाठकों के मन को भाते हैं । उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- कुछ कविताएँ , कुछ और कविताएँ , चुका भी नहीं हूँ मैं , इतने पास अपने , बात बोलेगी तथा काल तुझसे होड़ है मेरी । उन्होंने उर्दू - हिन्दी कोश का सम्पादन भी किया । प्रस्तुत कविता उषा भोर के समय होने वाले सूर्योदय का अनूठा शब्द - चित्र है । सूर्योदय के दृश्यों को मनोहारी घरेलू बिम्बों में बदलकर कवि ने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया हैं । ये बिम्ब हमें गाँव की मोहक भोर एवं जीवन्त परिवेश का साक्षी बनाते हैं । भाषा , बिम्ब और लय- तीनों का मणिकांचन संयोग इस कविता में मिलता है । कवि प्रातःकालीन सूर्योदय का मूकद्रष्टा मात्र न बनकर भोर के जीवन्त परिवेश को जीवन के चिर परिचित बिम्बों में अभिव्यक्त कर स्रष्टा के रूप का अहसास कराता है ।राख से लीपा हुआ चौका , बहुत काली सिल , स्लेट या लाल खड़िया चाक ; ये हमारे सामान्यघरेलू परिवार के बिम्ब हैं . लेकिन इनमें अनूठा सौन्दर्य भी है ।
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