Surdas biography in hindi - सूरदास जी
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सरदास का जीवन काल
सूरदास जी का जन्म सन 1486 ईस्वी में हुआ था और उनकी मृत्यु 1563 ईस्वी में हुई थी का आयु काल 80 वर्ष का रहा है
सूरदास का परिचय
सूरदास का जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था । रुनकता ( आगरा ) के गऊ घाट पर उनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई । उन्होंने सूरदास को वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित किया तथा भागवत कथा सुनाई । जिसके आधार पर कवि ने उच्च कोटि के साहित्य का सृजन किया । सूरदास ने ब्रजभाषा में श्रीकृष्ण की लीलाओं का सुन्दर चित्रण किया है । वे भक्ति , शृंगार एवं वात्सल्य के अनुपम कवि हैं । सूरदास की प्रमुख रचनाएँ तीन मानी जाती हैं- 1. सूरसागर 2.सूर सारावली 3. साहित्य लहरी । इनमें से सूरसागर इनकी अक्षय कीर्ति का आधार ग्रंथ है । सूरदास अष्टछाप के शीर्ष कवि हैं । कृष्ण के लोकरंजक रूप को काव्य का आधार बनाकर उन्होंने जयदेव और विद्यापति की गान परम्परा को आगे बढ़ाया । सूरदास का काव्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है । उनके बारे में सच ही कहा गया है सूर सूर , तुलसी ससि , उडुगण केसवदास । अबके कवि खद्योत सम , जहँ तहँ करत प्रकास ।। इस पाठ में सूरसागर के भ्रमरगीत से छह पद लिए गए हैं । श्रीकृष्ण ने विरह - वेदना से व्यथित गोपियों को सान्त्वना देने हेतु उद्धव को भेजा । उद्धव उन्हें निर्गुण ब्रह्म एवं योग का उपदेश देते हैं । तभी वहाँ एक भौंरा आता है । गोपियाँ भ्रमर के बहाने उद्धव को जवाब देती हैं । उन्हें कड़वी ककड़ी के समान योग का उपदेश अरुचिकर लगता हैं । उनके लिए मिलन ओर विरह दोनों स्थितियों में श्रीकृष्ण से लगाव लाभदायक है । मथुरा काजल की कोठरी के समान है । उनकी आँखें कृष्ण - दर्शन को व्याकुल हैं । वे निर्गुण ब्रह्म के रूप , रंग , निवास , माता - पिता आदि का ब्यौरा जानना चाहती हैं । कृष्ण की याद दिलाने वाले वन - उपवन , लतावितान , यमुना आदि विरहकाल में भीषण संतापदायक बन गए हैं ।
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