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पित्त के लक्षण क्या है?
पित्त कैसे शांत करें?
पित्त की उल्टी क्यों होती है?
पित्तशामक आहार क्या है?
पित्त के प्रकार
शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर पित्त को पांच भांगों में बांटा गया है .
• पाचक पित्त
• रज्जक पित्त
• साधक पित्त आलोचक पित्त
• भ्राजक पित्त
केवल पित्त के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या 40 मानी गई है ।
पित्त के गुण :
चिकनाई , गर्मी , तरल , अम्ल और कड़वा पित्त के लक्षण हैं । पित्त पाचन और गर्मी पैदा करने वाला व कच्चे मांस जैसी बदबू वाला होता है । निराम दशा में पित्त रस कडवे स्वाद वाला पीले रंग का होता है । जबकि साम दशा में यह स्वाद में खट्टा और रंग में नीला होता है । किसी भी दोष में जो गुण पाए जाते हैं उनका शरीर पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है और उसी से प्रकृति के लक्षणों और विशेषताओं का पता चलता है
पित्त बढ़ने के कारण :
जाड़ों के शुरूआती मौसम में और युवावस्था में पित्त के बढ़ने की संभावना ज्यादा रहती है । अगर आप पित्त प्रकृति के हैं तो आपके लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि आखिर किन वजहों से पित्त बढ़ रहा है ।
आइये कुछ प्रमुख कारणों पर एक नजर डालते हैं ।
चटपटे , नमकीन , मसालेदार और तीखे खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन ज्यादा मेहनत करना , हमेशा मानसिक तनाव और गुस्से में रहना अधिक मात्रा में शराब का सेवन • सही समय पर खाना ना खाने से या बिना भूख के ही भोजन करना तिल का तेल , सरसों , दही , छाछ खट्टा सिरका आदि का अधिक सेवन गोह , मछली , भेड़ व बकरी के मांस का अधिक सेवन
ऊपर बताए गए इन सभी कारणों की वजह से पित्त दोष बढ़ जाता है । पित्त प्रकृति वाले युवाओं को खासतौर पर अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए और इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए ।
पित्त बढ़ जाने के लक्षण :
जब किसी व्यक्ति के शरीर में पित्त दोष बढ़ जाता है तो कई तरह के शारीरिक और मानसिक लक्षण नजर आने लगते हैं ।
पित्त दोष बढ़ने के कुछ प्रमुख लक्षण निम्न हैं
बहुत अधिक थकावट ,
नींद में कमी शरीर में तेज जलन ,
गर्मी लगना और ज्यादा पसीना आना
त्वचा का रंग पहले की तुलना में गाढ़ा हो जाना
अंगों से दुर्गंध आना मुंह
गला आदि का पकना
ज्यादा गुस्सा आना बेहोशी और चक्कर आना
मुंह का कड़वा और खट्टा स्वाद
ठंडी चीजें ज्यादा खाने का मन करना
त्वचा , मल - मूत्र , नाखूनों और आंखों का रंग पीला पड़ना
अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से दो या तीन लक्षण भी नजर आते हैं तो इसका मतलब है कि पित्त दोष बढ़ गया है ।
पित्त को शांत करने के उपाय :
बढे हुए पित्त को संतुलित करने के लिए सबसे पहले तो उन कारणों से दूर रहिये जिनकी वजह से पित्त दोष बढ़ा हुआ है । खानपान और जीवनशैली में बदलाव के अलावा कुछ चिकित्सकीय प्रक्रियाओं की मदद से भी पित्त को दूर किया जाता है ।
विरेचन :
बढे हुए पित्त को शांत करने के लिए विरेचन ( पेट साफ़ करने वाली औषधि ) सबसे अच्छा उपाय है । वास्तव में शुरुआत में पित्त आमाशय और ग्रहणी ( Duodenum ) में ही इकठ्ठा रहता है । ये पेट साफ़ करने वाली औषधियां इन अंगों में पहुंचकर वहां जमा पित्त को पूरी तरह से बाहर निकाल देती हैं ।
पित्त को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :
अपनी डाइट में बदलाव लाकर आसानी से बढे हुए पित्त को शांत किया जा सकता है आइये जानते हैं कि पित्त के प्रकोप से बचने के लिए किन चीजों का सेवन अधिक करना चाहिए .
• घी का सेवन सबसे ज्यादा ज़रुरी है ।
. गोभी , खीरा , गाजर , आलू , शिमला मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें ।
• सभी तरह की दालों का सेवन करें ।
एलोवेरा जूस, अंकुरित अनाज, सलाद और दलिया का सेवन करें ।
पित्त प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
खाने - पीने की कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनके सेवन से पित्त दोष और बढ़ता है । इसलिए पित्त प्रकृति वाले लोगों को इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए । . मूली , काली मिर्च और कच्चे टमाटर खाने से परहेज करें
• तिल के तेल , सरसों के तेल से परहेज करें ।
• काजू , मूंगफली , पिस्ता , अखरोट और बिना छिले हुए बादाम से परहेज करें ।
• संतरे के जूस , टमाटर के जूस , कॉफ़ी और शराब से परहेज करें ।
जीवनशैली में बदलाव :
सिर्फ खानपान ही नहीं बल्कि पित्त दोष को कम करने के लिए जीवनशैली में भी कुछ बदलाव लाने ज़रूरी हैं । जैसे कि
ठंडे तेलों से शरीर की मसाज करें ।
तैराकी करें
रोजाना कुछ देर छायें में टहलें, धूप में टहलने से बचें । ठंडे पानी से नियमित स्नान करें ।
पित्त की कमी के लक्षण और उपचार :
पित्त में बढ़ोतरी होने पर समस्याएँ होना आम बात है लेकिन क्या आपको पता है कि पित्त की कमी से भी कई शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं ? शरीर में पित्त की कमी होने से शरीर के तापमान में कमी , मुंह की चमक में कमी और ठंड लगने जैसी समस्याएं होती हैं । कमी होने पर पित्त के जो स्वाभाविक गुण हैं वे भी अपना काम ठीक से नहीं करते हैं । ऐसी अवस्था में पित्त बढ़ाने वाले आहारों का सेवन करना चाहिए । इसके अलावा ऐसे खाद्य पदार्थों और औषधियों का सेवन करना चाहिए जिनमें अग्नि तत्व अधिक हो ।