RBSE 10th - Human system important question 2021 - मानव तंत्र पाठ के महत्वपुर्ण प्रश्न उत्तर 2021
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Chapter - 2
मानव तंत्र [ Marks -5 )
नोट : -मॉडल पेपर के अनुसार इस अध्याय से खण्ड य में एक प्रश्न 6 अंक का आ सकता है।यह प्रश्न आन्तरिक विकल्प का होगा । इस अध्याय से चित्र भी आएगा |
1 . स्वर यंत्र में कितनी उपास्थियां पाई जाती है ?
उत्तर- 9
2 . भोजन को चीरने व फाड़ने का काम कौनसे दात करते है ? ( RBSE 2019 )
उत्तर- रदनक
3 . प्रत्येक जबड़े में रदनकों की संख्या होती है । ( RBSE 2020 )
उत्तर- दो
4 . पेसमेकर का सम्बन्ध किस अंग से है ?
उत्तर- हृदय से ।
5 . मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग कौनसा होता है ?
उत्तर- वृक्क
6 . मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी इकाई कौनसी है ?
उत्तर- वृक्काणु ( नफ़ॉन )
7 . भोजन को श्वासनली में जाने से कौन रोकने का कार्य करता है ?
उत्तर- एपिग्लॉटिस
8 भोजन को कुतरने व काटने का काम कौनसे दांत करते हैं ? ( RBSE 2020 Su . )
उत्तर- कृतक
9 . मांसाहारी पशुओं में कौनसे दांत सबसे ज्यादा विकसित होते है?
उत्तर- रदनक
10 . काइम किसे कहते है ?
उत्तर- भोजन जो आमाशय में पाचन के बाद ग्रहणी में जाता है ।
11 . आमाशय में Hcl का स्त्रावण कौनसी ग्रन्थि करती हैं?
उत्तर- ऑक्सिन्टिक कोशिकाएँ ।
12 . साधारणतया लाल रुधिर कणिकाओं ( RBC ) का विकास कहाँ होता है ?
उत्तर- प्लीहा में
13 . मनुष्य के मूत्र में मुख्य रुप से कौनसा उत्सर्जक पदार्थ होता है ?
उत्तर- यूरिया
14 . लाल रुधिर कणिकाओं ( RBC ) का जीवन काल कितना होता है ?
उत्तर- 120 दिन
15 . मनुष्य की श्वासनली में श्लेष्मा का निर्माण का निर्माण कहां होता है ?
उत्तर- एपिथिलियम में ।
16 . पचित भोजन से पानी व खनिज लवणों का अवशोषण कहां होता है ?
उत्तर- बड़ी आंत में
17 . मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी ग्रन्थि का नाम क्या है ?
उत्तर- यकृत ( लिवर )
18 . रक्त का रंग लाल क्यों होता है ?
उत्तर- हीमोग्लोबिन नामक लौह तत्व युक्त प्रोटीन के कारण । माटी मिशन
19 . शिशुओं में पेप्सिन के स्थान पर कौनसा एन्जाइम बनता है जो दुग्ध प्रोटीन पाचन करता है ?
उत्तर- रेनिन
20 . एन्जाइमों द्वारा किस अंग में सर्वाधिक भोजन पाचन की क्रिया सम्पन्न की जाती है ?
उत्तर- ग्रहनी
21 . भोजन का सर्वाधिक पाचन व अवशोषण किस अंग में होता है ?
उत्तर- छोटी आंत में
22 . यकृत का मुख्य कार्य क्या है ?
उत्तर- पित का निर्माण व वसा का इमल्सीकरण
23 . पाचन तंत्र में सम्मिलित ग्रन्थियों के नाम लिखिए ? उत्तर- 1. लार ग्रन्थि 2. यकृत ग्रन्थि 3. अग्नाशय ग्रन्थि ।
24 . नर में प्राथमिक लैंगिक अग का नाम लिखिए । उत्तर- वृषण
25 . नर जनन हार्मोन का नाम क्या है ? या वृषण द्वारा सावित हार्मोन का नाम लिखिए । ( RBSE ?
उत्तर- टेस्टोस्टेरोन
26 . मादाओं में प्राथमिक लैंगिक अंग का नाम लिखिए । ( RBSE 2018 )
उत्तर- अंडाशय
27 . मादा जनन हार्मोन का नाम क्या है ? या अंडाशय द्वारा स्रावित हार्मोन नाम लिखिए । ( RBSE 2020 Su . )
उत्तर- एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान
28 . नर जनन हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन का कार्य क्या है ? उत्तर- नर में गौण लैंगिक लक्षणों का विकास करना ।
29 . मादा जनन हार्मोन एस्ट्रोजन का कार्य क्या है ? उत्तर- मादा गौण लैंगिक लक्षणों का विकास करना
30 . विभिन्न स्तरों पर भोजन पचितरस शिष्ट की गति को नियंत्रित करने वाली पेशियों का नाम क्या है ?
उत्तर- सवरणी पेशियां
31 . उत्सर्जन क्या है । ( RBSE
उत्तर- कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों ( विशेष रूप से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थ ) को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाती है ।
32 . यकृत द्वारा स्त्रावित पित्त लवण की पाचन में भूमिका बताइये ?
उत्तर- पित्त लवण छोटी आंत में वसा का पायसीकरण करके वसीय अम्ल में बदलता हैं । तथा लाइपेज एन्जाइम को सक्रिय करता है ।
33 . श्वसन किसे कहते है ? या सजीव श्वसन क्यों करते हैं ? ( RBSE 2018 , 2020 )
उत्तर- सजीव भोजन का ऑक्सीकरण करके ATP के रूप में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए श्वसन करते हैं । इस क्रिया में o2 गैस ग्रहण की जाती है । तथा Co2 , गैस को बाहर छोड़ा जाता है ।
34 . मुहं में कौन कौनसी लार ग्रन्थि होती है ?
उत्तर- मुहं में तीन जोड़ी लार ग्रन्थि होती है- कर्णपूर्व ग्रन्थि , अधोजिह्वा ग्रन्थि , अधोजभ ग्रन्थि ।
35 . लार ग्रन्थि द्वारा स्रावित हार्मोन ( एन्जाइम ) का नाम क्या है ? ( RBSE 2018 )
उत्तर- लार ग्रन्थि द्वारा सावित लार रस में टायलिन ( एमिलैस ) एन्जाइम होता है ।
36 . जठर रस ( आमाश्य ) में उपस्थित एन्जाइम के नाम व उनका कार्य लिखिए ?
उत्तर- पेप्सिन ( प्रोटीन को पेप्टाइड में बदलता है । ) रेनिन ( दुग्ध में उपस्थित केसीन प्रोटीन को पैराकेसीन में बदलता है । )
37 . पाचन किसे कहते है ? इस तंत्र के अंग व ग्रन्थियों के नाम बताइये ।
उत्तर- पाचन -भोजन के रुप में ग्रहण किये गये जटिल पदार्थो व बड़े अणुओं का विभिन्न रासायनिक क्रियाओं तथा एन्जाइमों के माध्यमों से सरल पदार्थों में बदल कर ऊर्जा प्राप्त करना पाचन कहलाता है । पाचन तंत्र के मुख्य अंग : मुख → ग्रहसनी → ग्रासनाल → अमाशय → छोटी आत → बड़ी आंत → मलद्वार पाचन तंत्र की मुख्य ग्रन्थिया : - ( i ) लार ग्रन्थि ( ii ) यकृत ग्रन्थि ( ii ) अग्नाशय ग्रन्थि
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38 . आहार नाल के तीन प्रमुख कार्य बताइये ।
उत्तर - आहारनाल के मुख्य कार्य : ( 1 ) भोजन को जटिल से सरल अणुओं में तोड़कर उसका पाचन करना । ( 2 ) पचित भोजन का अवशोषण करना । ( 3 ) भोजन को मुख से मलद्वार तक पहुंचाना ।
39 . मानव पाचन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए । ( RBSE मॉडल पेपर 2021 )
उत्तर - मानव पाचन तंत्र का नामांकित चित्र उपर अंकित है । (QUESTION - 37)
40 . मानव हृदय की नामांकित चित्र सहित संरचना समझाइए ।
उत्तर - मानव हृदय की संरचना - यह मौंसल . खोखला , बंद मुट्ठी के आकार का . लाल रंग का . हृदयावरण से घिरा होता है । हृदय में चार कक्ष होते हैं - 2 आलिंद व 2 निलय । हृदय के बांये भाग में शुद्ध व दांये भाग में अशुद्ध रुधिर पाया जाता है । हृदय के बांये आलिन्द व बांया निलय द्विवलनी कपाट ( माइट्रल वाल्व ) , दाया आलिंद व दांया निलय त्रिवलनी कपाट से अलग अलग रहते हैं । कपाट से रुधिर विपरीत दिशा में नहीं जाता है । हृदय रुधिर को शरीर में पम्प करता है । हृदय में रुधिर दो बार चक्कर लगाता है , इसे दोहरा परिसंचरण तंत्र भी कहते हैं । हृदय पेशीन्यास , हृदय की गति को निर्धारित करता है , इसे पेसमेकर ( गति प्रेरक ) कहा जाता है ।
41 . धमनी और शिरा में अन्तर बताइये ।
उत्तर- धमनी और शिरा में अन्तर -
1 . धमनी धमनियां रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती है ।
2 . धमनी की भित्ति मोटी होती है ।
3 . धमनियों में रुधिर अत्यधिक दबाव से बहता है ।
4 . धमनी में ऑक्सीजन युक्त शुद्ध रुधिर बहता है । ( अपवाद - फुफ्फुसीय धमनी )
1 . शिराएं शरीर के विभिन्न अंगों से रुधिर को हृदय की ओर ले जाती हैं ।
2 . शिरा की भित्ति पतली होती है ।
3 . शिराओं में रुधिर कम दबाव से बहता है ।
4 . शिरा में ऑक्सीजन विहीन अशुद्ध रुधिर बहता है ( अपवाद - फफुफुसीय शिरा )
42 . निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए ?
( A ) आमाशय ( B ) अग्नाशय ( C ) यकृत
उत्तर -
( A ) आमाशय - ग्रासनली व ग्रहणी के बीच आहार नाल का फूला हुआ . अ आकार का पेशिय भाग होता है । इसका आयतन 1.3 लीटर होता है । यह उदरगुहा में बांयी ओर डायफ्राम के नीचे स्थित होता है ।
इसके तीन भाग होते हैं .
( i ) कार्डियक ( जठरागम ) भाग - बायां बड़ा भाग , इसमें ग्रसिका प्रवेश करती है ।
( ii ) जठरनिर्गमी भाग - आमाशय का दाहिना भाग , इस भाग से आमाशय छोटी आंत से जुड़ा रहता
( iii ) फंडिस भाग - कार्डियक व जठर निर्गमी भाग के बीच में आमाशय में दो अवरोधनी ( संकोचक ) पेशियाँ पाई जाती हैं।
( क ) ग्रास नलिका अवरोधनी
( ख ) जठरनिर्गमी अवरोधनी
( B) अग्नाशयः - मानव शरीर में अग्नाशय , आमाशय के नीचे स्थित होता है । यह अन्तःस्त्रावी व बाहास्त्रावी , दोनों प्रकार की ग्रंथियों की तरह कार्य करती है । अग्नाशय में लैंगरहैन्सद्वीप नामक संरचना पाई जाती है । जिसमें एल्फा ( a ) व बीटा प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती है । a कोशिकाएँ ग्लूकागोन का तथा B कोशिकायें इन्सुलिन का स्त्रावण करती है ।
ग्लूकागोन = (इन्सुलिन / ग्लाइकोजन )ग्लूकागोन
ग्लूकागोन - ग्लाइकोजन को ग्लूकोज में तोड़ना ।
इन्सुलिन - शक्ररा ( ग्लूकोस ) को ग्लाइकोजन में बदलना ।
इन्सुलिन की कमी होने पर रक्त या मूत्र में शक्ररा बढ़ जाती है । इसे मधुमेह रोग कहा जाता है ।
( C ) यकृतः- यह हमारे शरीर की सबसे बड़ी पाचक ग्रंथि होती है यह त्रिभुजाकार , दो पालियों में विभाजित होता है । यह यकृत पालिकाओं से मिलकर बना होता है । इसमें पित्त रस का निर्माण होता है . पित्त रस का संचय पित्ताशय में होता है । पित्त रस वसा का पायसीकरण करता है । इसमें कोई एन्जाइम नहीं पाया जाता है ।
43 . वृक्काणु या नेफ्रोन की संरचना नामांकित चित्र सहित समझाइये ।
उत्तर- नेफ्रॉन की संरचना - मानव शरीर में दो वृक्क पाए जाते हैं । प्रत्येक वृक्क में अनेक अति समोसम प्रतिकारम नलिका सूक्ष्म नलिकाएँ हैं जिन्हें वृक्क नलिकाएँ अथवा नेफ्रॉन ( वृक्काणु ) कहते हैं । प्रत्येक नेफ्रॉन एक उत्सर्जन की इकाई होती है । नेफ्रॉन का प्रारम्भिक भाग एक प्याले के समान होता है जिसे बोमन सम्पुट कहते हैं ।बोमन संपुट में रुधिर केशिकाओं का गुच्छ होता है जिसे केशिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस कहते संग्रहमतिका है । इस केशिका गुच्छ का एक सिरा वृक्क धमनी से जुड़ा होता है जो यूरिया अपशिष्ट युक्त अशुद्ध रक्त को लेकर आती है । केशिका गुच्छ का दूसरा सिरा वृक्क शिरा से जुड होता है । नेफ्रॉन का शेष भाग नलिका के रूप में होता है । यह नलिका तीन भागों में विभेदित होती है , जिन्हें क्रमशः समीपस्थ कुण्डलित भाग , हेनले का लूपएवं दूरस्थ चित्र - मानस काणू ( नेफ्रान ) की रचना कुण्डलित भाग कहते हैं । दूरस्थ कुण्डलित भाग अन्त में संग्रह नलिका या वाहिनी में खुलती है । वस्तुतः संग्रह वाहिनियों ने फॉन का भाग नहीं होती हैं ।
44 . मूत्र निर्माण की प्रक्रिया को समझाइये । या मूत्र निर्माण की गुच्छीय निस्पंदन क्रियाविधि को समझाइये । ( 2019 )
उत्तर- मूत्र निर्माण की प्रक्रिया तीन चरणों मे संपादित होता है
1. गुच्छीय निस्पंदन
2 पुनःअवशोषण तथा
3. स्त्रावण ।
ये सभी कार्य वृक्क के विभिन्न हिस्सों में होते है । वृक्क में लगातार रक्त प्रवाहित होता रहता है यह रक्त अपशिष्ट पदार्थो से युक्त होता है । नेफ्रोन में वोमन सम्पुट में अभिवाही और अपवाही धमिनयां मिलकर केशिका गुच्छ बनाती है वोमन सम्पुट की अभिवाही धमनियां का व्यास ज्यादा और अपवाही का कम होता है । जिससे वोमन संम्पुट में दाब बढ़ जाता है इसके कारण प्रति मिनट 1000 से 1200 मिली . रक्त छनकर वोमन सम्पुट के पास की नलिकाओं में आता है । छनित में ग्लूकोस , लवण , अमिनो अम्ल व यूरिया होते है । छनित में से आवश्यक तत्व पुनः अवशोषित हो जाते है । छनित का लगभग एक प्रतिशत शेष बचता है जो संग्रहण नलिका मे से होते हुए मूत्राशय में आ जाता है ।
( 1 ) गुच्छीय निस्पंदन - ग्लोमेरुलस में प्रवेश करने वाली अभिवाही धमनिका . उससे बाहर निकलने वाली अपवाही धमनिका से अधिक चौड़ी होती है । इसलिए जितना रुधिर ग्लोमेरुलस में प्रवेश करता है . निश्चित समय में उतना रुधिर बाहर नहीं निकल पाता । इसलिए केशिका गुच्छ में रुधिर का दबाव बढ़ जाता है । इस दाब के कारण रुधिर में से अपशिष्ट पदार्थों के साथ ग्लूकोस , विटामिन , लवण , अमीनों अम्ल व अन्य उपयोगी पदार्थ छनकर बोमेन संपुट में पहुंच जाते हैं । बोमेन संपुट में पहुंचने वाला यह द्रव वृक्क निस्पंद कहलाता है ।
( 2 ) चयनात्मक पुनः अवशोषण - वृक्क निस्पंद द्रव बोमेन सम्पुट में से होकर वृक्क नलिका के अग्र भाग में पहुँचता है । इस भाग में ग्लूकोस , विटामिन , लवण , अमीनों अम्ल व अन्य उपयोगी पदार्थ को रुधिर में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है । ये अवशोषित पदार्थ नलिका के चारों ओर फैली कोशिकाओं के रुधिर में पहुंचते हैं । इनके अवशोषण से वृक्क निस्पंद में पानी की सान्द्रता अधिक हो जाती है । अब जल भी परासरण विधि द्वारा रुधिर में पहुंच जाता है ।
( 3 ) स्त्रावण - पुनः अवशोषण के बाद इस वृक्क निस्पंद अवशेष द्रव में केवल अपशिष्ट पदार्थ बचते हैं , जो मूत्र कहलाता है । यह मूत्र मूत्राशय में संग्रहित होता है और आवश्यकता पड़ने पर मूत्राशय की पेशियों के संकुचन से मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है ।
45 . उत्सर्जन तंत्र किसे कहते हैं ? मानव के उत्सर्जन तन्त्र का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए । या मानव उत्सर्जन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये । ( RBSE मॉडल 2021 , 2019 , 2018 su . )
उत्तर - अधिकृत प्रति दायां चक्क टो का पानी -हारिया पृष्ठ महाधमनी भूभसमी अयोधिनी सि - मानवमार्जन तंत्र उत्सर्जन तंत्र - उपापचयी प्रक्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट उत्पादों एवं अतिरिक्त लवणों को बाहर त्यागना उत्सर्जन कहलाता है । उत्सर्जन से सम्बन्धित अंगों को उत्सर्जन अंग कहते हैं । उत्सर्जन अंगों को सामूहिक रूप से उत्सर्जन तंत्र कहते हैं । मनुष्य में निम्न उत्सर्जन अंग पाये जाते हैं - वृक्क , मूत्र वाहिनियाँ , मूत्राशय मूत्र मार्ग ।
( 1 ) वृक्क- मनुष्य में एक जोडी वक्क पाये जाते हैं । यह दोनों वृक्क उदर गुहा में स्थित होते हैं । वृक्क गहरे भूरे रंग एवं सेम के बीज की आकृति के होते हैं अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है जिसके मध्य में एक छोटा - सा गड्डा होता है । गड्ढे को हाइलम कहते हैं । हाइलम भाग से वृक्क धमनी प्रवेश करती है । और वृक्क शिरा एवं मूत्र वाहिनी बाहर निकलती हैं ।
( 2 ) मूत्र वाहिनियों - ये वृक्क से निकलकर मूत्राशय तक जाती हैं । इनकी भित्ति मोटी होती है तथा गुहा संकरी होती है । इनकी भित्ति में क्रमानुकुंचन पाया जाता है , जिसके फलस्वरूप मूत्र आगे की ओर बढ़ता है ।
( 3 ) मूत्राशय - यह उदर के पिछले भाग में स्थित होता है । मूत्राशय में मूत्रवाहिनियों आकर खुलती हैं व इसमें मूत्र को संग्रहित किया जाता है । इसलिए इसे मूत्राशय कहते हैं ।
( 4 ) मूत्र मार्ग - मूत्राशय का पश्च छोर संकरा होकर एक पतली नलिका में परिवर्तित हो जाता है जिसे मूत्र मार्ग कहते हैं । मूत्र के निष्कासन की क्रिया को मूत्रण कहते हैं ।
46 . श्वसन की क्रियाविधि को समझाइये । मानव श्वसन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए । ( RBSE मॉडल पेपर 2021 , 2020 , 2018 )
उत्तर - मानव श्वसन तन्त्र की क्रिया विधि- जब हम श्वास अन्दर लेते हैं तो हमारी पसलियां ऊपर उठती है साथ ही डायाफाम चपटा हो जाता है जिससे वक्षगुहिका का आयतन बढ़ने से वायु दाब कम हो जाता है । अतः बाहरी अधिक दाब की वायु नासा से होते हुए अन्दर प्रवेश कर कुपिकाओं को भर देती है । कुपिकाओं में रक्त केशिकाओं का सघन जाल होता है । यहां ऑक्सीजन , कुपिकाओं की महीन झिल्ली से रक्त में विसरित हो जाती है । रक्त में लाल रक्त कणिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन , ऑक्सीजन से जुड़कर इसे कोशिकाओं तक पहुंचाता है । जहां ऑक्सीजन कोशिकाओं में विसरित हो जाती है । ग्लुकोज के ऑक्सीकरण से मुक्त हुई कार्बन डाइऑक्साइड , कोशिकाओं से रक्त में विसरित होकर रक्त प्लाज्मा में मौजूद जल में विलेय हो जाती है । और रक्त द्वारा फेफड़ों तक लायी जाती है जहां यह कुपिकाओं की झिल्ली से कुपिकाओं में विसरित होकर बाहर निकाल दी जाती है । श्वांस बाहर निकालते समय पसलिया अन्दर की तरफ जाती है तथा डायाफ्राम गुम्बदाकार होकर वक्षगुहा का आयतन कम कर देते हैं । आयतन कम होने से वक्षगुहा के अन्दर का वायुदाब , बाहर के वायुदाब से अधिक हो जाता है और इस प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड को नासा द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है । श्वासनली में ' C ' आकृति के उपास्थि के अधूरे छल्ले होते हैं , जो इसमें वायु न होने पर इसकी दीवारों को चिपकने से रोकते हैं । इसके फलस्वरूप वायु की अनुपस्थिति में यह नली पिचकने से बच जाती है । ये छल्ले वायुकोषों में अनुपस्थित होते हैं ।
47 . श्वसन प्रक्रिया के बाह्य व आन्तरिक श्वसन में अन्तर लिखिए ।
उत्तर- श्वसन प्रक्रिया वायुमण्डल व कूपिका के बीच ऋणात्मक दाब प्रवणता व डायफ्राम के संकुचन पर निर्भर करता है । श्वसन प्रक्रिया में दो स्तर होते हैं - बाह्य व आन्तरिक श्वसन ।
( क ) बाह्य श्वसन - यह श्वसन हवा से भरी कूपिकाओं व कोशिकाओं में प्रवाहित रुधिर के मध्य गैसों के आंशिक दाब में अन्तर के कारण होता है । इसमें CO2 गैस को बाहर छोड़ा जाता है ।
( ख ) आन्तरिक श्वसन - यह श्वसन कोशिकाओं में प्रवाहित रक्त व उत्तकों के बीच विसरण के माध्यम से होता है । इसमें o2 , गैस अन्दर ली जाती है ।
48 . मानव नर जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए । ( RBSE 2020 , 2020 su . )
उत्तर- मानव नर जनन तंत्र का नामांकित चित्र स्खलन नतिका मूत्रनलिका मूत्राशय -प्रोस्टेट ग्रन्धि अधिवृषण मूत्रमार्ग शुक्रवाहिनी शिश्न
49 . मानव में पाये जाने वाले प्राथमिक लैंगिक अंग का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- वृषण- मानव नर जनन तंत्र का प्राथमिक लैंगिक अंग वृषण होते हैं । मानव में वृषण दो होते हैं । इनका रंग गुलाबी तथा आकृति में अण्डाकार होते हैं । दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैली में स्थित होते हैं जिसे वृषण कोश कहते हैं । वृषण में पाई जाने वाली नलिकाओं को शुक्रजनन नलिका कहते हैं । जो वृषण की इकाई है । वृषण में शुक्राणुओं का निर्माण होता है । इसके अतिरिक्त नर हार्मोन ( टेस्टोस्टेरॉन ) भी वृषण में बनता है जो लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का नियंत्रण करता है ।
50 . नर में द्वितीयक लैंगिक अंग कौन कौनसे है , वर्णन कीजिए । ( RBSE 2020 su . )
उत्तर- प्राथमिक लैंगिक अंग के अलावा जो भी अंग जनन तंत्र में कार्य करते है उन्हें द्वितीयक लैंगिक अंग कहते है । नर में निम्नलिखित द्वितीयक लैंगिक अंग होते है
( 1 ) वृषणकोष- मनुष्य में दो वृषण पाये जाते हैं , ये दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैले में स्थित होते हैं . जिसे वृषणकोष कहते हैं । वृषणकोष एक ताप नियंत्रक की भाँति कार्य करता है । वृषणों का तापमान शरीर के तापमान से 2-2.5 C नीचे बनाये रखता है । यह तापमान शुक्राणुओं के विकास के लिए उपयुक्त है । ( 2 ) शुक्रवाहिनी- ऐसी वाहिनी जो शुक्राणु का वहन करती है , उसे शुक्रवाहिनी कहते हैं । यह शुक्राणुओं को शुक्राशय तक ले जाने का कार्य करती है । शुक्रवाहिनी मूत्रनलिका के साथ एक संयुक्त नली बनाती है । अतः शुक्राणु तथा मूत्र होते हैं । यह वाहिका शुक्राशय से मिलकर स्खलन वाहिनी बनाती है ।
( 3 ) शुक्राशय- शुक्रवाहिनी शुक्राणु संग्रहण के लिए एक थैली जैसी संरचना जिसे शुक्राशय कहते हैं , में खुलती है । शुक्राशय एक तरल पदार्थ का निर्माण करता है , जो वीर्य के निर्माण में मदद करता है । इसके साथ ही यह तरल पदार्थ शुक्राणुओं को ऊर्जा तथा गति प्रदान करता है ।
( 4 ) प्रोस्टेट ग्रन्थि - यह अखरोट के आकार की ग्रन्थि है । इस ग्रन्थि का स्राव शुक्राणुओं को गति प्रदान करता है तथा वीर्य का अधिकांश भाग बनाता है । यह वीर्य के स्कन्दन को भी रोकता है । यह एक बहिःस्रावी ग्रन्थि है । ( 5 ) मूत्र मार्ग - मूत्राशय से मूत्रवाहिनी निकलकर स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्रजनन नलिका या मूत्र मार्ग बनाती है जो शिश्न के शिखर भाग पर मूत्रजनन छिद्र द्वारा बाहर खुलती है । मूत्र मार्ग एवं वीर्य दोनों के लिए एक उभयनिष्ठ मार्ग का कार्य करता है ।
( 6 ) शिशन- पुरुष का मैथुनी अंग है जो लम्बा , संकरा , बेलनाकार उत्थानशील होता है । यह वृषणों के बीच लटका रहता है । इसके आगे का सिरा फूला हुआ तथा अत्यधिक संवेदी होता है इसे शिशन मुण्ड कहते हैं । सामान्य अवस्था में शिथिल व छोटा होता है तथा मूत्र विसर्जन का कार्य करता मैथुन के समय यह उन्नत अवस्था में आकर वीर्य को मादा जननांग में पहुंचाने का कार्य करता है ।
51 . रक्त की संरचना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए । उत्तरः- रक्त एक प्रकार का तरल संयोजी ऊतक है , जो आवश्यक पोषक तत्व व ऑक्सीजन को कोशिकाओं में तथा कोशिकाओं से चयापयची अपशिष्ट उत्पादों तथा Co , का परिवहन करता है । रक्त की संरचना- रक्त एक तरल संयोजी ऊतक होता है , हमारे शरीर में इसकी मात्रा 5-6 लीटर होती है । रक्त का pH 7.4 ( हल्का क्षारीय ) होता है । रक्त का निर्माण भ्रूणावस्था व नवजात में शिशु के प्लीहा में तथा वयस्क में लाल अस्थिमज्जा में होता है ।
रुधिर के दो भाग होते हैं-
( क ) कोशिकाएँ , ( ख ) प्लाज्मा ।
कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती है
( i ) रक्ताणु ( RBC ) - ये कुल रुधिर का कोशिकाओं 99 % भाग होता है इसमें हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन होने के कारण रुधिर का रंग लाल होता है । इनकी औसत आयु 120 दिन होती है । मनुष्य की RBC में केन्द्रक नहीं होता है ।
( ii ) श्वेताणु ( WBC ) ( ल्यूकोसाइट्स ) – शरीर को रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षित करना । निर्माण - लाल अस्थिमज्जा में । जीवनकाल 5-7 दिन । ये दो प्रकार की होती है ( A ) कणिकामय- न्यूट्रोफिल , इओसिनोफिल , बेसोफिल । ( B ) अकणिकामय- लिम्फोसाइट व मोनोसाइट ।
( iii ) बिम्बाणु ( थ्रोम्बोसाइट्स ) - रुधिर का थक्का बनाना । जीवनकाल 10 दिन ।
52 . मानव में रक्त परिसंचरण तंत्र को समझाइये ।
उत्तर- मानव में रक्त परिसंचरण का चित्र मामय श्वसन फुफ्फुस शिरा धमनी धमनी लाल रक्त आतरिक श्वसन ल -100 रुधिर परिसंचरण तंत्र - मनुष्य में o2 , व CO2 , पोषक पदार्थों , उत्सर्जी पदार्थों तथा नावी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पहुँचाने तथा लाने वाले तंत्र को ही रुधिर रसंचरण तंत्र कहते हैं । मानव में रुधिर परिसंचरण तंत्र में रुधिर बंद नलिकाओं में बहता है इसलिए इसे बंद परिसंचरण तंत्र कहते हैं । परिसंचरण तंत्र के घटक निम्न हैं- रुधिर हृदय . रुधिर वाहिनियों । रुधिर के अतिरिक्त अन्य द्रव्य होता है जिसे लसिका कहते हैं । लसिका रक्त का छना हुआ भाग होता है , जिसमें RBC का अभाव होता है । लसिका का परिसंचरण लसिका तंत्र द्वारा होता है , जो एक खुला तंत्र है । परिसंचरण तंत्र में रुधिर एक तरल माध्यम के तौर पर कार्य करता है , जो परिवहन योग्य पदार्थों के अभिगमन में मुख्य भूमिका निभाता है । हृदय इस तंत्र का केन्द्र है जो रुधिर को निरन्तर रुधिर वाहिकाओं में पम्प करता है । रक्त के प्रमुख कार्य लिखिए । उत्तर- रक्त के प्रमुख कार्य
( i ) o2 व Co2 , का शरीर व वातावरण के बीच आदान - प्रदान करना ।
( ii ) पोषक तत्वों का शरीर में विभिन्न स्थानों तक परिवहन ।
( iii ) उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर करना ।
( iv ) शरीर का ताप नियंत्रण ।
( v ) हार्मोन्स को अन्तःस्त्रावी ग्रन्थि से लक्ष्य अंगों तक परिवहन ।
( vi ) रोगों से रक्षा , प्रतिरक्षण के कार्यों को संपादित करना ।
( vii ) शरीर का pH नियंत्रित करना ।
53 . रक्त के प्रमुख कार्य लिखिए ।
उत्तर- रक्त के प्रमुख कार्य
( i ) 0 , व CO , का शरीर व वातावरण के बीच आदान - प्रदान करना ।
( ii ) पोषक तत्वों का शरीर में विभिन्न स्थानों तक परिवहन ।
( iii ) उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर करना ।
( iv ) शरीर का ताप नियंत्रण ।
( v ) हार्मोन्स को अन्तःस्त्रावी ग्रन्थि से लक्ष्य अंगों तक परिवहन ।
( vi ) रोगों से रक्षा , प्रतिरक्षण के कार्यों को संपादित करना ।
( vii ) शरीर का pH नियंत्रित करना ।
प्रश्न 54. मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र सहित वर्णन करो । ( RBSE 2018 , 2020 su . )
उत्तर - मादाओं में प्राथमिक लैंगिक अंग के रूप में एक जोड़ी अंडाशय पाए जाते है । अंडाशय के दो प्रमुख कार्य होते है
1. मादा जनन - कोशिकाओं अथवा अण्डाणु का निर्माण करना ।
2. एक अन्तःस्त्रावी ग्रन्थि के रूप में एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान हार्मोन का उत्पादन करना । लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अण्डाणु होते हैं । यौवनारंभ में इनमें से कुछ परिपक्व होने लगते हैं । दो में से एक अंडाशय द्वारा प्रत्येक माह एक अण्डाणु परिपक्व होता है । अण्डवाहिनी ( फेलोपियन ट्यूब ) द्वारा यह अण्डाणु गर्भाशय तक ले जाए जाते हैं । दोनों अंडवाहिनीयाँ संयुक्त होकर एक लचीली थैलेनुमा संरचना का निर्माण करती हैं जिसे गर्भाशय कहते हैं । गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है । अण्डाशय द्वारा मादा हार्मोन एस्ट्रोजन का नावण किया जाता है जो मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का नियमन करता है ।
55 . मादा में द्वितीयक लैंगिक अंग कौन कौनसे है । समझाइये । ( RBSE 2020 su . )
उत्तर- मादा में निम्नलिखित द्वितीयक लैंगिक अंग होते है
अण्डवाहिनी - प्रत्येक अण्डाशय के समीप एक पतली नली अण्डवाहिनी होती है । प्रत्येक अण्डवाहिनी के सामने वाला सिरा कीपाकार होता है । यह अण्डाशय से निकले अण्डों को अपने में ले लेता है । अण्डवाहिनी की भित्ति कुंचनशील व रोमयुक्त होती है , जिसकी सहायता से अण्डा गर्भाशय की ओर गमन करता है । निषेचन की क्रिया अण्डवाहिनी ( फैलोपियन नलिका ) में ही होती है । दोनों अण्डवाहिनी गर्भाशय में खुलती हैं । गर्भाशय - गर्भाशय एक नाशपाती के आकार की पेशीय , मोटी दीवार वाली एवं थैलेनुमा रचना होती है , जो उदरगुहा के निचले भाग में स्थित होती है । भ्रुण का विकास गर्भाशय में ही होता है । गर्भाशय का निचला सिरा , संकीर्ण भाग , गर्भाशय ग्रीवा कहलाता है । यह बाह्य द्वार द्वारा योनि में खुलता है । योनि- गर्भाशय ग्रीवा आगे बढ़कर एक पेशीय लचीली नलिका रूपी रचना का निर्माण करती है , जिसे योनि कहते हैं । जो स्त्रियों में मैथुन कक्ष के तौर कार्य करती है । योनि में लैक्टोबैसिलस जीवाणु पाए जाते हैं , जो लैक्टिक अम्ल का निर्माण करते है ।
56 .मनुष्य में प्रजनन की विभिन्न अवस्थाएँ समझाइए या मानव प्रजनन की दो अवस्थाओं को समझाइये । ( RBSE 2018 )
उत्तर- मनुष्य में प्रजनन की निम्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं
1. युग्मक जनन - युग्मकों के निर्माण को युग्मकजन कहते हैं । युग्मक दो प्रकार के होते हैं - शुक्राणु व अण्डाणु । नर के वृषण में शुक्राणु के निर्माण की क्रिया को शुक्रजनन कहते हैं । इसी प्रकार मादा के अण्डाशय में अण्डाणु के निर्माण की क्रिया को अण्डजनन कहते हैं । शुक्राणु व अण्डाणु अर्थात् दोनों युग्मक अगुणित होते हैं ।
2 निषेचन - नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक अण्डाणु का आपस में मिलना निषेचन कहलाता है । अर्थात् नर के द्वारा मैथुन क्रिया की सहायता से मादा के शरीर में शुक्राणु छोड़ने के फलस्वरूप अण्डवाहिनी में उपस्थित अण्डाणु से मिलन होना निषेचन कहलाता है । ऐसा निषेचन आन्तरिक निषेचन कहलाता है । निषेचन फलस्वरूप युग्मनज का निर्माण होता है जो द्विगुणित होता है ।
3. विदलन तथा भ्रूण का रोपण - निषेचन के द्वारा निर्मित युग्मनज में एक के बाद एक समसूत्रीय विभाजन द्वारा एक संरचना बनती है जिसे कोरक कहते हैं । इसके बाद यह कारक गर्भाशय के अन्तःस्तर में जाकर स्थापित हो जाता है । इस क्रिया को भ्रूण का रोपण कहते है ।
4. प्रसव- नवजात शिशु का मादा के शरीर से बाहर आना प्रसव कहलाता है । भ्रूण के रोपण पश्चात यह भ्रूणीय विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है । गर्भस्थ शिशु का पूर्ण विकास होने पर शिशु जन्म लेता है । शिशु जन्म की प्रक्रिया को प्रसव कहते हैं ।
57 . मनुष्य में दौंत कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- मनुष्य में दाँत चार प्रकार के होते हैं
1. कृतक -ये सबसे आगे के दाँत होते हैं , जो कुतरने तथा काटने का कार्य करते हैं । ये प्रत्येक जबड़े में 4-4 होते हैं ।
2. रदनक -इनका कार्य भोजन को चीरने व फाड़ने का होता है । ये प्रत्येक जबड़े में 2-2 होते हैं ।
3. अग्र- चवर्णक -ये भोजन को चबाने में सहायक होते हैं । तथा प्रत्येक जबड़े में 4-4 पाए जाते हैं ।
4. चवर्णक -ये दाँत भी भोजन चबाने में सहायक होते हैं । तथा प्रत्येक जबडे में 6-6 पाये जाते हैं ।
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